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केंचुआ खाद - काला सोना : कृषि के लिये वरदान

भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां लगभाग 75 करोड़ टन कृषि अपशिष्ट गांवों में उपलब्ध है. विश्व विख्यात वैज्ञानिक अरस्तु केंचुआ को मिट्टी की आंत के नाम से संबोधित करते हैं. इन्ही केंचुओं द्वारा यह अपशिष्ट उत्तम किस्म की खाद में परिवर्तित हो सकता है, तथा लगभग 2 करोड़ टन पोषक तत्व इस कम्पोस्ट से प्राप्त कर सकते हैं. केंचुओं द्वारा बेकार कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों से जैविक खाद बनाने की क्रिया को वर्मीकम्पोस्टींग कहते हैं तथा कृत्रिम विधि द्वारा केंचुआ पालने को वर्मी कल्चर कहते हैं. ये दो अलग-अलग परन्तु मिली जुली क्रियाएं हैं इस क्रिया को वर्मीटेक्नोलाँजी कहते हैं.

भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां लगभाग 75 करोड़ टन कृषि अपशिष्ट गांवों में उपलब्ध है. विश्व विख्यात वैज्ञानिक अरस्तु केंचुआ को मिट्टी की आंत के नाम से संबोधित करते हैं. इन्ही केंचुओं द्वारा यह अपशिष्ट उत्तम किस्म की खाद में परिवर्तित हो सकता है, तथा लगभग 2 करोड़ टन पोषक तत्व इस कम्पोस्ट से प्राप्त कर सकते हैं. केंचुओं द्वारा बेकार कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों से जैविक खाद बनाने की क्रिया को वर्मीकम्पोस्टींग कहते हैं तथा कृत्रिम विधि द्वारा केंचुआ पालने को वर्मी कल्चर कहते हैं. ये दो अलग-अलग परन्तु मिली जुली क्रियाएं हैं इस क्रिया को वर्मीटेक्नोलाँजी कहते हैं.

केंचुआ अपने आहार के रूप में प्रतिदिन लगभग अपने शरीर के वजन के बराबर मिट्टी व कच्चे जीवांष को निगलकर अपने पाचन नलीका से गुजारते हैं जिससे वह महीन कम्पोस्ट में परिवर्तित होते हैं और अपने शरीर से बाहर छोटे-छोटे कास्टिंग के रूप में निकालते हैं, यही केंचुआ खाद है. इस विधी द्वारा केंचुआ खाद मात्र 47 से 75 दिनों में तैयार हो जाते हैं. उसमें उसके कास्ट, अण्डे, कोकून व सूक्ष्म जीवाणु, पोषक तत्व तथा अपचित जैविक पदार्थ होते हैं. जो लम्बे समय तक मृदा को उपजाऊ रखते हैं.

केंचुआ खाद (वर्मी कम्पोस्ट) के लिए प्रयुक्त केंचुएं के प्रकार :

एपिजिक केंचुएं: कम्पोस्ट बनाने में उपयोगी हैं. ये केंचुए सतह पर (1 मीटर गहराई तक) समूह में रहते हैं. इस जाति के केंचुएं कृषि अपशिष्ट की 90 प्रतिशत एवं मृदा का 10 प्रतिशत भाग खाते हैं. इनमें मुख्यतया आईसीनिया फीटिडा एवं युड्रिलिस यूजिनी प्रमुख प्रजातियां हैं.

इन्डोजिक केंचुएं : ये भूमि में गहरी सुरंग बनाकर मिट्टी भुरभुरी बनाते हैं. ये 90 प्रतिशत जलनिकास व जल संरक्षण में उपयोगी हैं. यह केंचुआ भूमि की खनीजयुक्त परतों में रहते हैं. ये 90 प्रतिशत भाग मिट्टी खाते हैं.

डायोजिक केंचुए: ये केंचुए 1 से 3 मीटर की गहराई पर रहते हैं एवं दोनों प्रजातियों के बीच की

श्रेणी में आते हैं.

तलिका 1: वर्मी कम्पोस्ट एवं अन्य कम्पोस्टों में तुलनात्मक पोषक तत्व   

 

कम्पोस्ट किस्म

पोषक तत्व (प्रतिशत)

नाइट्रोजन

फॉस्फोरस

पोटाश

वर्मी कम्पोस्ट

10 - 20

05 - 10

15-20

गोबर की खाद

0.5

0.25

0.50

नेडेप कम्पोस्ट

0.5 – 1.5

0.50 – 0.90

1.2 -1.4

शहरी कम्पोस्ट

1.5

1.0

1.5

 

केंचुआ खाद के लाभः

केंचुआ खाद अधिक किफायती होने के साथ-साथ भूमि कि उर्वराश्कि भी बढ़ाती है.

इनके प्रयोग से सब्जियों, फल एवं फूलों वाली फसलों में बीज जमाव अपेक्षाकृत जल्दी होता है एवं पौधे की बढ़वार भी अच्छी होती है.

गोबर खाद की तुलना में वर्मी कम्पोस्ट में एक्टीनोमाइसिटिज 8 गुणा अधिक होते हैं. इस प्रकार वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से फसल में बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है. केंचुए मृदा की जलशोषण क्षमता में 20 प्रतिषत तक वृद्धि करते हैं. इससे भूमि का कटाव रूकता है एवं पौधों के लिए जल उपलब्धता में वृद्धि होती है.

वर्मी कम्पोस्ट में पेरीट्रोपिक झिल्ली होने के कारण क्षेत्र के जल वाष्पीकरण में कमी होती है. अतः सिंचाई की संख्याओं में भी कमी आती है.

केंचुआ खाद से खेत में ह्यूमस वृद्धि के कारण वर्षा की बूंदो का अघात सहने की क्षमता साधारण मृदा की अपेक्षा 56 गुणा अधिक होती है. अतः मृदा क्षरण कम होता है.

केंचुआ खाद प्रयुक्त खेत में खरपतवार व दीमक का प्रकोप भी कम होता है.

इससे पैदा किया गया उत्पाद स्वादिष्ट होता है.

दो से चार महीने में केंचुए की संख्या दोगुनी हो जाती है. इस तरह कम्पोस्ट के साथ -साथ केंचुए को बेचकर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं.

केंचुआ खाद बनाने में घरेलू कचरा, खेतों के बेकार अपशिष्ट पदार्थ का इस्तेमाल होता है. जिससे यह प्रदूषण कम करने में सहायक होते हैं.

केंचुआ खाद के रासायनिक गुण :

1- पी.एच.-7-7.5

  1. 2. कार्बनिक पदार्थ – 19-86 %

3.नाइट्रोजन- 1-2 %

4.फॉस्फोरस- 0.5 – 1.0 %

5.पोटास- 1.5-2.0 %

6.कैल्शियम- 1-70 %

7.मैग्नेशियम- 0.80 %

8.सल्फर- 0.8-1.5 %

9.कोबाल्ट, मोलिब्डेनम, बोरॉन- अच्छी मात्रा में

10.आयरन- 74-97 पी.पी.एम

11.कॉपर- 28 पी.पी.एम

12.जींक- 120-3600 पी.पी.एम.

13.मैगनीज- 257 पी.पी.एम.

14.पादप वृद्धि हारमोन्स, ऑग्जीन्स,जिब्रेलिन्स,साइटोकाइकनिन्स, विटामिन्स एवं एमिनो

केंचुआ खाद बनाने के लिए न्यूनतम आवष्यकताएँ :

1.केचुएं के भोजन की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता 

2.पर्याप्त वायु संचार

3.पर्याप्त नमी 40-50 प्रतिशत नमी नियमित बनाएं रखें.

4.उपर्युक्त तापमान -20-300 सेन्टीग्रेड, सूर्य की सीधी किरणों एवं अधिक ताप से बचाएं.

5.उपयुक्त पी.एच. एवं विषैले पदार्थों की अनुपस्थिति : उदासीन पी.एच. हो, परन्तु 4.5 -7.5 तक भी ठीक है.

6.मल्चिंग

7.उपर्युक्त केंचुआ कि प्रजाति का चयन

- आइसीनिया फेटिडा              - लुम्ब्रीकस रूबीलस

-यूड्रीलस यूजेनी                  - पैरियोनिक्स एक्सावेटस

ये सभी प्रजातियां हमारे देश के जलवायु की विभिन्नता को ध्यान में रखते हुए अपशिष्ट पदार्थों के विघटन के लिए आदरश हैं.

8.कार्बनिक व्यर्थ पदार्थों की वर्मी कम्पोस्टिंग हेतु तैयारी  

वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधिः

- वर्मी कम्पोस्ट शेड बनाने हेतु छायादार जगह चुने जहां पानी का भराव नही हो. शेड पानी के स्रोत धौरे के पास हो ताकि पानी देने में आसानी रहे. खाद के गड्ढ़े जल स्रोत से ऊपर वाले क्षेत्र में नही हो अन्यथा रासायनिक तत्व रिसाव से जल को प्रदूषित कर सकते हैं.

- वर्मी कम्पोस्ट बेड बनाने हेतु छायादार शेड.

- सामान्यतः वायुवेग की दिशा में गड्ढ़ो की चौड़ाई रखे तथा आवासीय मकान गड्ढ़ों से निचले क्षेत्र में रखे इससे वायु प्रदूषण द्वारा नुकसान नहीं होगा.

- खाद की आवश्यकतानुसार गड्ढ़ो की संख्या निर्धारित करें.

- गड्ढ़े की लम्बाई कचरे की मात्रानुसार रखें चौड़ाई 1.2 मीटर रखें अन्यथा अपशिष्ट पलटते समय असुविधा रहेगी. गड्ढ़े की गहराई 30 से 45 सेंमी, रखें. वर्मी कम्पोस्ट बेड को छायादार बनाने के लिए उनके ऊपर 2 मीटर की ऊंचाई पर छप्पर डाल दें.

- गड्ढ़ो में भरने हेतु अपशिष्ट इकट्ठा करें ताकि एक ही दिन में भर सकें. सबसे नीचे मोटे कचरे की 5-7.5 से.मी. तह बिछायें.

- इसके ऊपर 10 से.मी. बारीक भूसा फैलाकर पानी से नम करें. नमी लगभग 30 से 40 प्रतिषत तक रहनी चाहिए.

- अब गोबर की 5 सें.मी. की तह समान रूप से बिछायें.

- प्रति वर्गमीटर के लिए केंचुओ की संख्या 1000 रखें. केंचुए अलग-अलग तह में विभाजित करें.

- इस सतह को मिट्टी नीम की पत्तियों एवं राख के मिश्रण से ढ़क दें. यह सतह पोषक तत्वों को स्थिर रखेगी.

- क्र.सं. 5 से 8 तक की क्रियाएं दोहराये जब तक कि गड्ढ़े भर न जाये.

- सबसे ऊपर सड़ा हुआ गोबर व पत्तियां रखें ताकि मध्य में ऊंचा रहे एवं किनारे वाले हिस्से को नीचे रखे ताकि उसमें पानी नही भरें.

- जूट या टाट से मिश्रण को ढ़क दें. इससे नमी संरक्षित रहेगी.

- गर्मी में प्रतिदिन व सर्दी में 2 से 3 दिन में एक बार पानी देकर उचित नमी बनाये रखें.

- हर महीने मिश्रण को पलटें ताकि वायु का संचार हो सके एवं केंचुओं का संवर्धन भी होता रहे.

- भुरभुरा, भूरे काले रंग का खाद बन जाने पर पानी देना बंद करें. मिश्रण को रेती छानने की छलनी में छानकर बोरों में भरें अथवा उपयोग मे लें. खाद में 10 से 20 प्रतिशत नमी रहनी चाहिए. कचरे की किस्म के अनुसार वर्मी कम्पोस्ट 75 से 90 दिन में तैयार हो जाता है. केंचुए पुनः खाद बनाने हेतु काम में लें.

केंचुआ खाद बनने की पहचान

केंचुआ खाद बनाने हेतु सतही भक्षण करने वाले केंचुए प्रयुक्त होते हैं अतः यह फीडिंग पदार्थ को उपर से खाते हुए धीरे -धीरे नीचे जाते हैं. अतः सबसे पहले उपर का व्यर्थ पदार्थ कम्पोस्ट में बदलता है. यह देखने में काला चाय के गोल दाने जैसा छूने में हल्का भूरभूरा एवं दूर्गन्धरहित होता है. अगर डीप फिडर केंचुआ का प्रयोग करते हैं तो वर्मी कम्पोस्ट लीफ चाय की तरह दुर्गंधरहित बनेगा.

केंचुआ खाद को अलग करना

वैसे तो केंचुआ खाद को पुरा तैयार होने में लगभग दो माह का समय लगता है. परन्तु वर्मी कंपोस्ट जैसे-जैसे तैयार हो उसे अलग कर देना चाहिए क्योंकि इस उर्त्सजित कास्ट का उपयोग केंचुएं नहीं करते हैं. और उनके लिए यह हानिकारक भी होते हैं. यदि इस कंपोस्ट को समय पर नही निकाला जाय तो केंचुए की सक्रियता में शिथिलता आ जाती है, ढेर में वायु संचार अवरूद्ध होता है और वे मरने लगते है, उनपर चिटियों का आक्रमण बढ़ जाता है.

केंचुआ खाद को अलग करने की दो विधी हैं.

1.परत दर परत - सर्वोतम विधी

2.केंचुआ खाद को एक साथ हटाना

केचुआ खाद की उत्पादन क्षमताः

साधारण तौर पर केंचुआ अपने वजन का 5 गुणा तक (40 प्रतिषत नमी युक्त) एवं दो गुणा तक सूखे रूप में फीडिंग व्यर्थ पदार्थ खाता है तथा अपने वजन के बराबर वर्मीकंपोस्ट उत्सर्जित करता है.

केंचुआ खाद का गुणवत्ता वर्धन

गुणवत्ता वर्धन वाले लगभग एक टन केंचुआ खाद बनाने के लिए 1000 कि.ग्रा. फसल अवशेष एवं अन्य अपशिष्ट पदार्थ, निम्न स्तर का राँक फास्फे (20 प्रतिषत से कम फास्फेट) 200 कि0ग्रा0 अनुपयुक्त माईका (10 प्रतिषत से कम पोटाष) 200 कि.ग्रा. एवं पशुओं का गोबर 1000 कि.ग्रा. प्रयोग करते हैं.

इस गुणवत्ता युक्त कम्पोस्ट की एक टन से लगभग 14-15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 50-60 कि.ग्रा. फॉस्फेट, 25-30 कि.ग्रा. पोटाश एवं अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है. तथा उपरोक्त खाद की एक कि.ग्रा. मात्रा का उत्पादन करने में लगभग 8.20 रूपये की लागत आती है.

वर्मी कम्पोस्ट का उपयोगः

सामान्य फसलें -     5 टन/हैक्टर

सब्जियां -     5-7.5 टन/हैक्टर

फलदार वृक्ष -    5 कि.ग्रा./पौधा

फूलों की क्यारियां- 1-2 कि.ग्रा. / वर्गमीटर

केंचुआ खाद से संबंधित समस्याएं एवं उनका निदानः

लेखक:

प्रियंका रानी एवं डा0 सुमित राय

वीर कुँवर सिंह कृषि महाविद्यालय, डुमरॉव (बिहार कृषि विष्वविद्यालय, सबौर)

जी0 बी0 पन्त हिमालीय पर्यावरण एवं सतत विकास राष्ट्रीय संस्थान, कोषी, कटरमल, अल्मोड़ा

English Summary: Earthworm Fertilizers - Black Gold: A Boat for Agriculture Published on: 12 December 2018, 05:13 PM IST

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