दशकों से सरकारें किसानों की आर्थिक सुदृढ़ता के लिए प्रयास कर रही है. इसके बावजूद किसानों की स्थिति जस की तस बनी हुई है. दरअसल, खेती काफी हद तक मौसम और जलवायु पर निर्भर है. लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों को हर साल बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है.
यही वजह है कि सरकार संरक्षित खेती (Protected Farming) के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. दरअसल, संरक्षित खेती एक नियंत्रित वातावरण में की जाती है. इसमें फसलों पर गर्मी, ठंड या बारिश का असर नहीं होता है. संरक्षित खेती करके किसान फल, फूल और सब्जियां सालभर उगा सकते हैं. आज दुनियाभर के देशों में संरक्षित खेती करके किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. संरक्षित खेती में पॉली हाउस (Polyhouse), शेडनेट हाउस (Shade Net House) और प्लास्टिक मल्चिंग (Plastic Mulching) का उपयोग किया जाता है, जिससे मौसम की मार का असर नहीं होता है और कीट-व्याधियों से फसल का बचाव होता है. तो आइए जानते हैं कि आखिर क्या है संरक्षित खेती? और इसके फायदे क्या है?
मध्य प्रदेश सरकार दे रही सब्सिडी
कृषि जागरण से बात करते हुए मध्य प्रदेश हार्टिकल्चर विभाग के डायरेक्टर आइबी पटेल ने बताया कि संरक्षित खेती किसानों के लिए लाभ का सौदा है. इस तकनीक से टमाटर, शिमला मिर्च, जरबेरा, गुलाब आदि सब्जियों और फूलों की खेती सालभर की जा सकती है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिल सकता है. उन्होंने बताया कि इसके लिए मध्य प्रदेश सरकार 50 फीसदी तक सब्सिडी प्रदान करती है. एक हजार वर्गमीटर क्षेत्र में संरक्षित खेती करने के लिए 9 लाख का खर्च आता है. किसानों को राज्य सरकार से 4.5 लाख रूपए की सब्सिडी मिल जाती है. किसान एक एकड़ या 4000 वर्गमीटर क्षेत्र पर संरक्षित खेती करके सब्सिडी का लाभ उठा सकते हैं.
कौन-सी फसलों से अधिक लाभ मिलेगा?
सब्जियां-टमाटर, शिमला मिर्च, ब्रोकली, फूल गोभी, पत्ता गोभी, खीरा, मिर्च, अदरक, गाजर, लौकी, करेला, मटर, धनिया, भिंडी, तोरई आदि.
फूल- गुलाब, जरबेरा, गुलदाउदी, लिली, ऑर्किड्स, ट्यूलिप, डेजी, ग्लेडिओलस, फॅर्न, एंथोरियम, फ्रेशिया आदि.
फल- केला, पपीता, स्ट्रॉबेरी, आलू बुखारा, पपीता, खुमानी, अंगूर आदि.
संरक्षित खेती के लिए प्रमुख संरचनाएं
पॉलीहाउस
संरक्षित खेती के लिए आजकल दो तरह के पॉलीहाउस का निर्माण कराया जाता है. एक हाइटेक पॉलीहाउस और दूसरा प्राकृतिक हवादार पॉलीहाउस. हाइटेक पॉलीहाउस काफी महंगा होता है, इसमें तापमान नियंत्रण, सिंचाई समेत विभिन्न कार्यों को कम्प्यूटर की मदद से संचालित किए जाते हैं. इसमें उत्पादन ज्यादा और गुणवत्तापूर्ण होता है. वहीं प्राकृतिक हवादार पॉलीहाउस में सिंचाई, खाद-उर्वरक देना आदि कामों को मैन्युअल किया जाता है. इसमें पॉलिथीन शीट का प्रयोग किया जाता है, जिसकी मदद से कार्बनडाईऑक्साइड को संरक्षण किया जाता है. जो पौधों के विकास में लाभदायक होता है. इसमें हाइटेक पॉलीहाउस की तुलना में कम उत्पादन होता है.
शेडनेट हाउस
शेडनेट हाउस यानी छायादार जालीगृह होता है. जहां पॉलीहाउस में प्लॉस्टिक लगा होता है, वहीं शेडनेट हाउस हरे रंग के मटेरियल से निर्मित किया जाता है. जो अंदर उगाई जाने वाले फसलों की बाहरी प्रतिकुल मौसम से संरक्षित करने में मदद करता है. शेडनेट हाउस लोहे, बांस या लकड़ी की मदद से बना सकते हैं. इसे हवादार नेट से ढंक दिया जाता है. यह ग्रीनहाउस के सिद्धांत पर काम करता है. दरअसल, इसमें तापमान अनुकूल रहता है जिससे गर्मी के मौसम में भी सब्जियां, फल, फूल उगाएं जा सकते हैं. गर्मी के दिनों में हवा का तापमान बढ़ जाता है और प्रकाश की तीव्रता भी बढ़ जाती है. इससे मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है. इससे टमाटर, शिमला मिर्च समेत विभिन्न सब्जियां सुखने लगती है.
प्लास्टिक मल्चिंग
टमाटर, गोभीवर्गीय और कद्दू वर्गीय सब्जियों के लिए प्लास्टिक मल्चिंग का उपयोग बेहद फायदेमंद होता है. प्लास्टिक मल्चिंग के उपयोग से खरपतवार नियंत्रण, मिट्टी कटाव और पौधों को लंबे समय सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है. इस तकनीक का प्रयोग करके 30 से 40 फीसदी उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है. वहीं 30 से 40 फीसदी खाद एवं सिंचाई के जल की बचत होती है.
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