सोयाबीन भारत की तिलहनी फसलों में प्रमुख फसल है. इसमें 20 प्रतिशत तेल और 40 प्रतिशत हाई क्वालिटी का प्रोटीन पाया जाता है. यह भारत वर्ष के अधिकांश राज्यों में उगाई जाती है तथा इसके अलग-अलग प्रकार से खाने के उपयोग में लाया जाता है.
भारत विश्व में सोयाबीन उत्पादन (soybean production) में चौथे स्थान पर है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, सोयाबीन में सबसे अधिक प्रोटीन पाया जाता है. यह एक मात्र ऐसी फसल है, जिसमें प्रोटीन के अलावा मिनरल्स, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स और विटामिन-ए भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इसमें इतने गुण मौजूद होने के कारण सोयाबीन को पीला सोना भी कहा जाता है.
अगर हम खेती की बात करें तो सोयाबीन की खेती (soybean cultivation) में किसानों के लिए अपार संभावनाएं है. इसकी खेती कर किसान अधिक मुनाफा कमा सकते है.
तो आइए आज हम इस लेख में सोयाबीन की खती (soybean cultivation) के बारे में विस्तार से जानते हैं, जिससे किसान भाई सोयाबीन की खेती सरलता से कर सके.
इस लेख में हम जानेंगे
- सोयाबीन फसल के लिए उपयुक्त जलवायु
- खेती करने के लिए मिट्टी
- खेत की तैयारी
- बीज और बुआई के लिए समय
- बीज उपचार (Seed treatment)
- सोयाबीन की उन्नत किस्में
- खेत की सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
- फसल में लगने वाले कीट और रोग के लिए रोकथाम
- सोयाबीन फसल की कटाई का उपयुक्त समय
- सोयाबीन खेती के लाभ
- सोयाबीन खेती मेंलागत और कमाई
सोयाबीन खेती पर एक नजर
बता दें कि देश में सबसे अधिक सोयाबीन का उत्पादन मध्यप्रदेश में होता है तथा सोयाबीन अनुसंधान केंद्र भी मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में है. भारत में इसकी खेती सबसे अधिक मध्य प्रदेश के साथ महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, कर्नाटक राजस्थान एवं आंध्रप्रदेश में की जाती हैं.
सोयाबीन की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for soybean crop)
सोयाबीन एक गर्म जलवायु वाली फसल है. इसलिए इसकी खेती के लिए 18°C से 38°C औसत तापमान को उत्तम माना जाता है. भारत में खरीफ मौसम में किसान सोयाबीन की खेती (Soyabean Ki Kheti) शुरू कर सकते हैं.
खेती करने के लिए मिट्टी (soil for cultivation)
वैसे तो सोयाबीन की खेती के लिए लूमी और बालू मिट्टी उपयुक्त होती है. ऐसी जगह पर हमें सोयाबीन की खेती नहीं करनी चाहिए जहां पानी रूकता है क्योंकि अधिक पानी देने से फसल खराब हो जाती है. बुवाई से पहले यदि हम गहरी जुताई करते हैं, जिसमें जैविक सड़ी हुई गोबर की खाद 500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालते है, तो इसकी खेती से अच्छा उत्पादन पाया जा सकता है.
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अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ दोमट मिट्टी में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है.
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सोयाबीन की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का pH 6 से 7.5 अनुकूल होता है.
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जल जमाव, खारी और क्षारीय मिट्टी सोयाबीन की खेती के लिए अनुकूल नहीं होती.
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कम तापमान भी इस फसल को गंभीर रूप से प्रभावित करता है.
खेत की तैयारी (farm preparation)
जैसे कि हमने आपको ऊपर बताया कि सोयाबीन की खेती खरीफ के मौसम में की जाती है. इसलिए बारिश होने से पहले खेत में अच्छे से 2 से 3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए. जिससे खेत में मौजूद हानिकारक कीट नष्ट हो जाए. इसके बाद अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए खेत में जुताई के समय गोबर खाद डालें.
बीज और बुवाई के लिए समय (Seed and sowing time)
सोयाबीन की खेती जून से जुलाई के पहले सप्ताह में सबसे अच्छी होती है. खेत में अधिकतम बीज दर प्रति हेक्टेयर 55-65 किग्रा/हेक्टेयर बीज की बुवाई दर को सोयाबीन के लिए अच्छा माना जाता है. अच्छा उत्पादन लेने के लिए एक पौधे से दूसरे पौधे के बीच 30-45 सेंटीमीटर की दूरी बनाना चाहिए और साथ हाथ बीजों की गहराई 2.5 सेमी से 5 सेमी तक होनी चाहिए.
बीज उपचार (Seed treatment)
बीज उपचार करने से कम से कम 15 से 20 प्रतिशत अधिक उत्पादन पाया जा सकता है. इसके लिए राइजोबियम (400 ग्राम प्रति 65-75 किलोग्राम बीज), फास्फोरस सॉल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया (PSB) और कवकनाशी (थिरम + कार्बेन्डाजिम) या ट्राइकोडर्मा विरिडी 8-10 ग्राम / किग्रा बीज का उपचारित करना चाहिए.
सोयाबीन की खेती के लिए उन्नत किस्म के बीज (varieties of seeds for soybean cultivation)
अगर आप भी सोयाबीन की खेती से अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं, तो इसके लिए उन्नत किस्म के बीजों का चुनाव करना बेहद जरूरी है. जो कुछ इस प्रकार से है...
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जे. एस-335
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जे.एस. 93-05
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एन.आर.सी-86
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एन.आर.सी-12
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जे. एस. 95-60
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एन.आर.सी-7
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जे.एस. 20-29
यह सभी बीज 90 से 100 दिनों के अंदर तैयार हो जाते हैं. इन बीजों में अन्य किस्में के बीजों के मुकाबले रोग प्रतिरोधक की क्षमता सबसे अधिक पाई जाती है. इसके अलावा इन बीजों में उत्पादन क्षमता लगभग 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है.
खेत की सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
जैसे बाकी फसलों में सिंचाई की आवश्यकता होती है. ठीक सोयाबीन फसल में भी सिंचाई की बेहद आवश्यकता होती है. इसकी खेती में 12 से 15 दिनों के अंतराल पर कम से कम 5 से 6 सिंचाई करनी होती है. सोयाबीन के खेत में नमी होने पर पैदावार अच्छी होती है. अच्छी फसल के लिए खेत के प्रति हेक्टेयर में 10 से 15 किलो नाइट्रोजन खाद को डालें की सिफारिश कर सकते हैं साथ ही आप 2 किलो प्रति हेक्टेयर व पोटाश 15 किलो प्रति हेक्टेयर भी डाल सकते हैं. ध्यान रहे इसे खेत में तभी मिलाए तब मिट्टी में पोटाश और फास्फोरस की कमी खेत में हो अन्यथा इसका उपयोग नहीं करें.
अगर हम अरहर को सोयाबीन के साथ सहफसल (Inter cropping) के रूप में लगाते है, तो इस फसल व मिट्टी पर जोखिम का प्रभाव कम रहता है.
पोषक तत्व प्रबंधन: उत्तर के मैदानों में एन: पी: के: एस की 25: 60: 40:30 किग्रा / हेक्टेयर की अनुशंसित खुराक और बेहतर पैदावार के लिए जिंक सल्फेट के माध्यम से 5 किलो जेडएन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेती कर सकते हैं.
खरपतवार प्रबंधन: खरपतवारों के नियंत्रण के लिए पूर्व-उभरने वाले खरपतवारनाशकों (पेंडामेथालिन / मेटोलाक्लोर / डाइक्लोसुलम) का इस्तेमाल खेती में कर सकते हैं.
जल प्रबंधन: प्रभावी जल प्रबंधन के लिए ब्रॉड-बेड-फ़रो/रिज-फ़रो सिस्टम को अपनाना चाहिए. ऐसा करने से फली शुरू होने और दाना भरने पर जीवन रक्षक सिंचाई बेहतर उपज देती है. लंबे समय तक सूखे के दौरान एंटी-पारदर्शी जैसे KNO3 1% या MgCO3 या ग्लिसरॉल के स्प्रे का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
सोयाबीन फसल में लगने वाले कीट और रोग के लिए रोकथाम
किसान भाइयों को सोयाबीन की खेती पर विशेष तौर पर सबसे अधिक ध्यान रखने की जरूरी होती है, क्योंकि इसकी फसल में सबसे अधिक और खतरनाक कीट लगते है. जो फसल को पकने से पहले की खराब कर देते हैं.
देखा जाए तो सोयाबीन की खेती दो तरह के ही अधिकतर रोग देखने को मिलते हैं.
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पत्तियों पर धब्बा वाला रोग
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पीला मोजेक वाला रोग
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पौध बीमारी
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रस्ट रोग
पत्तियों पर धब्बा वाला रोग (Leaf spot disease)
इस तरह के रोग से फसल की पत्तियों और तने पर हल्के लाल और कत्थई रंग के धब्बे दिखाई देने वाला होता है, जो पत्तियों को समय से पहले ही टूटने पर मजबूर कर देता है. इसके बचाव के लिए किसानों को अपने खेत में समय रहते कार्बेन्डाजिम या थायोफिनेट मिथाइल का 0.05 % घोल का छिड़काव बुआई के 30 दिन पर और फिर 15 दिनों के बाद फिर से पूरे खेत में अच्छे से करें.
पीला मोजेक वाला रोग (Yellow mosaic disease)
पीला मोजेक रोग एक तरह का वायरस रोग है, जो फसल में बहुत तेजी से फैलता है. इस रोग में मक्खी तने पर अंडे देकर एक इल्ली का निर्माण करती है. जो फसल की जाइलम को अंदर से पूरी तरह से नष्ट कर देती है. इसी कारण से फसल पीली पड़ना शुरू होती है. इसके बचाव के लिए किसानों को अपने खेत का निरीक्षण समय समय पर करते रहना चाहिए. ताकि इस तरह का एक भी पौधा आपको दिखाई दें तो उसे तुरंत उखाड़ कर दूर दबा दें. इसके अलावा फसल में इमिडाक्लोप्रीड, लैम्ब्डा सिहलोथ्रिन का छिड़काव करते रहे.
कीट और रोग प्रबंधन : गहरी जुताई और बीज उपचार के अलावा खेत में जेएस 335, पीके 262, एनआरसी 12, एमएसीएस 124 स्टेम-फ्लाई, एनआरसी 7, एनआरसी 37, जेएस 80-21, पूसा 16 जैसी प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें. पूसा 20, पूसा 24, पीएस 564, पीके 472 डिफोलिएटर के खिलाफ, जेएस 71-05 करधनी बीटल के खिलाफ, जेएस 80-21, पीके 1029, पीके 1024, सोयाबीन रस्ट के खिलाफ इंदिरा सोया 9, पीके 262, पीके 416, पीके 472, पीके 1042, कॉलर-रोट के खिलाफ एनआरसी 37, पीके 416, पीके 472, पीएस 564 बैक्टीरियल पस्ट्यूल के खिलाफ, और पीएस 564, पीके 1024, पीके 1029, पीएस 1042, पीएस 1092, एसएल 295 पीले मोज़ेक वायरस के खिलाफ भी इसका उपयोग कर सकते हैं.
सोयाबीन फसल की कटाई का उपयुक्त समय (Suitable time for harvesting soybean crop)
जैसे की आप ने ऊपर पढ़ा कि सोयाबीन के उन्नत किस्म के बीज (Soybean improved variety seeds) बोने से फसल 90 से 100 दिनों के अंदर पूरी तरह से पककर कटने के लिए तैयार हो जाती है. वैसे आपको बता दें कि जब सोयाबीन के पत्ते (soybean leaves) सूख के नीचे गिरने लगे और साथ ही फलिया सुख जाए, तो इस समय को ही सोयाबीन की कटाई का सबसे अच्छा माना जाता है. कटाई करने के बाद इसकी फसल को धूप में अच्छे से सूखने दें. अंत में इसे एकत्रित कर थ्रेशिंग करवाएं.
सोयाबीन खेती के लाभ (benefits of soybean farming)
इसकी खेती में बाकी फसल की खेती के तुलना में कम मेहनत और धन का खर्च होता है. इसके अलावा बाजार में भी इसके उत्पादों की अच्छी मांग होने कारण किसानों को अच्छा लाभ मिलता है. सोयाबीन की फसल की सबसे अधिक खासियत यह है कि इसे लंबे समय कर किसान भाई एक स्थान पर भंडारण करके रख सकते हैं.
सोयाबीन का सेवन करने से कई तरह की बीमारियां दूर होती है और डॉक्टर भी इसका सेवन करने की सलाह देते है. क्योंकि इसे मानसिक रोग व दिल से संबंधित बीमारी कम होने की संभावना होती है.
सोयाबीन की फसल (soybeancrop) का इस्तेमाल आप बहुत सारे उत्पाद को बनाने के लिए भी किया जाता है. जैसे कि खाद्य तेल, सोया आटा, सोयाबीन चाप (soybean arc), सोया दूध, टोफू, सोया बड़ी, सोयाबीन पनीर आदि. इसके कारण से बाजार में सोयाबीन की कीमत अधिक होती है.
सोयाबीन खेती में लागत और कमाई (Cost and Earnings in Soybean Farming)
किसानों के लिए सोयाबीन की खेती (soybean cultivation) कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाकर देने वाली फसल है. देखा जाए, तो इसकी खेती में प्रति हेक्टेयर लगभग 30 से 40 हजार रुपए खर्च आता है. अगर उपयुक्त बातों को ध्यान में रखें तो किसानों को प्रति हेक्टेयर लागत के हिसाब से दुगना मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं. बारानी परिस्थितियों में - 1600-2000 किग्रा / हेक्टेयर और सिंचित स्थिति के तहत - 2000-2500 किग्रा / हेक्टेयर का उपज को प्राप्त कर सकते हैं. इसलिए सोयाबीन की खेती किसानों के लिए फायदे की खेती माना जाती है.
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