बैंगन भारत में उगाई जाने वाली सब्जियों में से एक है. भारत में बैगन की खेती लगभग सभी क्षेत्रों में की जाती है. इसे भारत के भिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जैसे- बंगाल में इसे बेगुन, गुजरात में रिंगना , कन्नड में बदाने, हिंदी में बैगन जाना जाता है.
बैंगन की खेती कम सिंचाईं वाले शुष्क क्षेत्रों में की जाती है. इसकी पत्तियों में विटामिन सी पाया जाता है, इसलिए इसमें विटामिन और खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा मे पाया जाता है. इसकी खेती पूरे साल की जाती है. चीन के बाद भारत बैंगन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है. भारत में प्रमुख बैंगन उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश हैं.
बैंगन की खेती के लिए मिट्टी (Soil for brinjal cultivation)
बैंगन की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है. चूंकि यह एक लंबी अवधि की फसल है, इसलिए इसे अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है जो इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है और साथ ही अच्छी उपज भी देती है. इसकी अच्छी उपज के लिए मिट्टी का पीएच 5.5 से 6.6 होना चाहिए. इसके अलावा, मिट्टी में कार्बिनक पदार्थ की मात्रा पर्याप्त होनी चाहिए.
बैंगन की खेती के लिए मौसम (Seasons for brinjal cultivation)
बैंगन की खेती मैदानी इलाके में पूरी साल की जा सकती है, लेकिन इसकी खेती के लिए रबी का मौसम सबसे अच्छा होता है.
बरसात का मौसम - जून - जुलाई
सर्दी का मौसम - अक्टूबर - नवंबर
ग्रीष्म ऋतु - फरवरी - मार्च
बैंगन का पौधा तैयार करना (Preparing Brinjal Plant)
बैंगन के बीजों को नर्सरी क्यारियों में बोया जाता है, ताकि खेत में आसानी से रोपाई की जा सके. भारी मिट्टी में जलजमाव की समस्या से बचने के लिए उठी हुई क्यारियाँ आवश्यक होती है. हालांकि, रेतीली मिट्टी में, समतल क्यारियों में भी बुवाई की जा सकती है. अच्छी पौध के लिए 7.2 x 1.2 मीटर और 10-15 सेंटीमीटर ऊंचाई के आइस्ड बेड तैयार किए जाते हैं. इस प्रकार, एक हेक्टेयर क्षेत्र में रोपण के लिए पौधे उगाने के लिए ऐसे 10 बेड तैयार किए जाते हैं. बीजों को 2-3 सेंटीमीटर की गहराई पर बोया जाता है और मिट्टी की एक महीन परत से ढक दिया जाता है और उसके बाद पानी से हल्की सिंचाई की जाती है. अंकुरण पूरा होने तक आवश्यकतानुसार पानी के कैन से पानी देना चाहिए. इसके बाद अंकुरण पूर्ण होने के तुरंत बाद सूखे भूसे या घास का आवरण हटा दिया जाता है. पौध रोपण के 4-6 सप्ताह के भीतर रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं.
भूमि की तैयारी
रोपाई से पहले मिट्टी को 4-5 बार गहरी जुताई करके और समतल करके मिट्टी को अच्छी तरह तैयार कर लेना चाहिए. जब खेत अच्छी तरह से तैयार और समतल हो जाता है, तो रोपाई से पहले उपयुक्त आकार की क्यारियों को खेत में बना दिया जाता है. फिर मैदान को बेड्स और चैनलों में विभाजित किया जाता है.
अंतर- इसकी अच्छी उपज पौध के बीच दूरी उगाई जाने वाली किस्म के प्रकार और रोपण के मौसम पर निर्भर करता है. आमतौर पर लंबी फल वाली किस्मों को 60 x 45 सेमी, गोल किस्मों को 75 x 60 सेमी और अधिक उपज देने वाली किस्मों को 90 x 90 सेमी की दूरी पर प्रत्यारोपित किया जाता है. भारी मिट्टी के मामले में हल्की मिट्टी में और मेड़ के किनारे पर रोपों में रोपाई की जाती है. रोपाई से 3-4 दिन पहले पूर्व-भिगोने वाली सिंचाई दी जाती है. रोपाई के समय पौध की जड़ों को बाविस्टिन (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल में डुबो देना चाहिए. इसकी रेपाई अधिकांश शाम को की जानी चाहिए.
खाद एवं उर्वरक
उर्वरक की मात्रा मिट्टी की उर्वरता और फसल में प्रयुक्त जैविक खाद की मात्रा पर निर्भर करती है. इसकी अच्छी उपज के लिए 15-20 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई एफवाईएम को मिट्टी में मिला दिया जाता है आमतौर पर, अच्छी उपज के लिए इसमें 150 किग्रा N, 100 किग्रा P205 और 50 किग्रा K2O के आवेदन की सिफारिश की जाती है. इसमें N 25 2 की आधी मात्रा और P और K की पूरी खुराक रोपण के समय दी जाती है और N का शेष आधा भाग 3 बराबर विभाजित खुराकों में दिया जाता है. पहली विभाजित खुराक रोपाई के डेढ़ महीने बाद, दूसरी खुराक पहले आवेदन के एक महीने बाद और अंतिम खुराक रोपाई के साढ़े तीन महीने बाद दी जाती है.
सिंचाई
पौधे के जड़ क्षेत्र के आसपास नमी की निरंतर आपूर्ति बनाए रखनी चाहिए. रोपाई के बाद पहले और तीसरे दिन हल्की सिंचाई करनी चाहिए. इसके बाद सर्दियों में 8-10 दिन और गर्मी में 5-6 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए.
तुड़ाई
बैगन की तुड़ाई इनके फल जब मुलायम व चमकदार अवस्था मे आ जाते है तब इनकी तुड़ाई करनी चाहिए, क्योंकि तुड़ाई में देरी करने से ये बदरंग और सख्त हो जाते हैं, साथ ही इनके अंदर बीज का विकास बढ़ जाता है.
भारत में बैंगन की किस्में (Brinjal Varieties in India)
पूसा पर्पल लॉन्ग- यह जल्दी पकने वाली और लंबे समय तक फलने वाली किस्म है. इसके फल चमकदार, हल्के बैंगनी रंग के, 25-30 सेमी लंबे, चिकने और कोमल होते हैं. इसकी फसल 100-110 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है
पूसा पर्पल क्लस्टर- यह जल्दी पकने वाली लंबी फल वाली किस्म है . इसका फल छोटे, गहरे रंग के होते हैं और गुच्छे में नुकीले होते हैं. इसकी फसल रोपाई के 75 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है
पूसा क्रांती- इस प्रकार वैराइटी में एक बौना और फैला हुआ विकास हैबिट है .इसका फल आयताकार और स्टॉकी होते हैं फिर आकर्षक गहरे बैंगनी रंग के साथ पतले होते हैं .
पूसा बरसती- यह किस्म बौनी होती है. फल मध्यम लंबे और बैंगनी रंग के होते हैं.
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