
DSR Method of Rice Cultivation: खेती में हो रहे लगातार बदलावों के बीच वैज्ञानिक और सरकारें अब पानी की बचत करने वाली तकनीकों को बढ़ावा दे रही हैं. धान की पारंपरिक खेती में पानी की खपत अधिक होती है, वहीं भूजल स्तर भी लगातार गिर रहा है. ऐसे में धान की सीधी बुआई विधि (Direct Seeding of Rice - DSR) को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसमें नर्सरी और रोपाई की जरूरत नहीं होती. यह तकनीक समय और श्रम दोनों की बचत करती है. कुछ राज्य सरकारें सीधी बुवाई विधि को अपनाने पर किसानों को सहायता राशि और सब्सिडी भी प्रदान कर रही हैं.
हालांकि, इस तकनीक को अपनाने के दौरान किसानों को कुछ अहम चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे खरपतवार नियंत्रण, मिट्टी की नमी बनाए रखना और उच्च तापमान में बीज का जमाव. इस लेख में हम सीधी बुवाई (डीएसआर) विधि की प्रमुख चुनौतियों और उनके व्यावहारिक समाधानों की विस्तार से चर्चा करेंगे.
डीएसआर विधि क्या है?
डीएसआर यानी Direct Seeding of Rice धान की सीधी बुवाई की वह तकनीक है जिसमें धान के बीजों को सीधे खेत में बोया जाता है. इस विधि में न तो पहले धान की नर्सरी बनानी होती है और न ही पौधों की रोपाई की जाती है. बीजों को मशीन या हाथ से सीधे खेत में बो दिया जाता है. यह विधि पारंपरिक रोपाई की तुलना में सस्ती, तेज और कम पानी खर्च करने वाली होती है.
डीएसआर विधि की प्रमुख चुनौतियां
1. खरपतवार की समस्या
डीएसआर में सबसे बड़ी चुनौती खरपतवारों की होती है. क्योंकि इसमें धान के साथ-साथ खेत में अन्य अनचाही घासें भी उग आती हैं, जो फसल से पोषक तत्व, पानी और धूप के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं. इससे उत्पादन में गिरावट आ सकती है.
2. तापमान और जमाव की समस्या
उत्तर भारत के राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में डीएसआर की बुआई का उचित समय 20 मई से 10 जून के बीच अनुशंसित है. इसी समय यहां सबसे ज़्यादा गर्मी और सूखा मौसम होता है. इसका असर यह होता है कि बीज अच्छे से नहीं उगते, फसल की शुरुआत में पौधे ज्यादा नहीं टिक पाते और खेत मे नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई भी बार-बार करनी पड़ती है.
3. मिट्टी की स्थिति
कई क्षेत्रों की मिट्टी सघन होती है, जिसमें जल धारण क्षमता कम और कार्बनिक पदार्थों की मात्रा भी कम होती है. इससे फसल की शुरुआती वृद्धि प्रभावित होती है और मानसून आने से पहले फसल को संभालना कठिन हो जाता है. जड़ों का समुचित विकास ना होने के कारण बाली आने के समय पौधे गिरने की समस्या भी आती है.
4. सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी
कम नमी वाली मिट्टी में पौधों की समुचित जड़ों के वियकस ना होने का एक परिणाम विभिन्न सूक्ष्म तत्वों जैसे Fe (लोहा) और Zn (जस्ता) जैसे पोषक तत्वों को अवशोषित करना मुश्किल हो जाता है. इससे पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनकी बढ़वार रुक जाती है.
इन चुनौतियों के समाधान
1. खेत की तैयारी के समय जायटॉनिक तकनीक का उपयोग
ज़ायडेक्स कंपनी द्वारा विकसित जायटॉनिक एक बायोडिग्रेडेबल पॉलिमर आधारित तकनीक है जो मिट्टी को नरम और छिद्रपूर्ण बनाती है. इसके प्रयोग से:
-
अंकुरण दर 95% तक बढ़ जाती है.
-
जल धारण क्षमता में सुधार होता है.
-
उच्च तापमान में भी कम सिंचाई की आवश्यकता होती है.
-
जड़ क्षेत्र बड़ा होता है जिससे पौधे गिरते नहीं और पोषण अधिक मात्रा में मिल पाता है.
-
सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ने से जैविक रूप से पोषण मिलता है.
2. डीएसआर के लिए उपयुक्त बीज
किसानों को डीएसआर विधि में उपयुक्त बीजों का चयन एक महत्वपूर्ण कार्य है. सीधी बुवाई मे पौधों की संख्या अधिक होने के कारण सीधे पौधे वाले बीज बेहतर होते हैं. खरपतवार के प्रभावी नियंत्रण के लिए हर्बिसाइड टॉलरेंट वैरायटी (Herbicide Tolerant Variety) का उपयोग एक बेहतर विकल्प है. इसका का मतलब है ऐसी प्रजातियाँ जो खरपतवार नाशक (हर्बिसाइड) के प्रति सहनशील होती हैं, यानी उन पर खरपतवार नाशक का असर नहीं होता, जिससे किसानों को फसल को सुरक्षित रखते हुए खरपतवार को आसानी से नियंत्रण करने में सहायता मिलती है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) और कई निजी कंपनियों द्वारा ऐसे बीज विकसित किए गए हैं जो हर्बिसाइड टॉलरेंट वैरायटी हैं और डीएसआर तकनीक के अनुकूल हैं.
3. नमी बनाए रखने के उपाय
जायटॉनिक के खेत की तैयारी के समय प्रयोग से मिट्टी नर्म और हवादार हो जाती है. इससे मिट्टी की जल धरण क्षमता भी बढ़ती है और खेत मे नमी को लंबे समय तक बनाए रखा जा सकता है. इसके अलावा, जैविक मल्चिंग (Organic Mulching) और खेत की समय-समय पर गीली मिट्टी से क्यारी बनाना भी मददगार साबित हो सकता है.
डीएसआर में सिंचाई का समय और तरीका बेहद अहम होता है. हल्की सिंचाई (Light Irrigation) करना चाहिए ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे और बीज अच्छे से जमें. मानसून आने तक एक समयांतराल पर हल्की सिंचाई फायदेमंद होती है.
4. उपयुक्त पोषण
सीधी बुवाई मे नौरसेरी ना होने के कारण, प्राथमिक अवस्था मे ही उपयुक्त पोषण प्रदान करना आवश्यक है. मुख्य रूप से नाइट्रोजन, फॉसफोरस, आयरन (लोहा) और जिंक प्रारम्भिक अवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं. इनका सही समय पर उचित मात्रा मे प्रयोग करें. अधिक मात्रा में नाइट्रोजन का प्रयोग बीमारियों को बढ़ सकता है. मिट्टी के नर्म और हवादार होने से जड़ों का बेहतर विकास होता है जिससे Fe और Zn जैसे पोषक तत्वों का अवशोषण बेहतर होता है.
सरकार की सहायता और प्रोत्साहन
राज्य सरकारें डीएसआर को बढ़ावा देने के लिए किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान कर रही हैं. पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में किसानों को प्रति एकड़ 1,500 से 4,000 रुपए तक की सब्सिडी दी जा रही है. साथ ही, कृषि विभाग द्वारा प्रशिक्षण, डेमो प्लॉट और तकनीकी मार्गदर्शन भी उपलब्ध कराया जा रहा है.
डीएसआर विधि के लाभ
-
कम पानी की जरूरत – पारंपरिक रोपाई की तुलना में डीएसआर विधि में लगभग 30-35% पानी की बचत होती है.
-
कम श्रम लागत – नर्सरी और रोपाई की आवश्यकता नहीं होने से मजदूरों की जरूरत कम होती है.
-
कम खर्च लागत- जुताई-बुवाई का खर्च कम आता है, जिससे ईंधन की भी बचत होती है.
-
जल्दी परिपक्वता – फसल लगभग 7-10 दिन पहले तैयार हो जाती है, जिससे अगली फसल की तैयारी समय पर हो जाती है.
-
कम मीथेन उत्सर्जन – डीएसआर से मीथेन गैस का उत्सर्जन कम होता है, जो पर्यावरण हित में है.
-
फसल चक्र में लचीलापन – फसल जल्दी तैयार होने से रबी सीजन की फसलें समय पर बोई जा सकती हैं.
डीएसआर विधि कृषि के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम है जो जल संकट के दौर में किसानों को राहत पहुंचाने में मदद कर सकती है. हालांकि इसे सफलतापूर्वक अपनाने के लिए किसानों को कुछ तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, परंतु जायटॉनिक जैसी उन्नत तकनीकों, सही बीजों के चयन, और सरकार की सहायता से ये चुनौतियां दूर की जा सकती हैं. यदि किसान सही समय, सही बीज और उचित देखरेख के साथ इस तकनीक को अपनाते हैं, तो वे न केवल लागत बचा सकते हैं बल्कि पैदावार भी बढ़ा सकते हैं.
Share your comments