ज्यादातर लोग प्राकृतिक खेती को भूलकर रासायनिक खेती को ही ज्यादा महत्व देते है. आज का किसान भी खेतों में उगने वाली चीज़ें अपने बच्चों को बाजार से खरीद के खिला रहा है. वह इस महंगे ज़हर के साथ खेती करने के लिए तैयार है, पर कम खर्च पर खुद को स्वस्थ रखना उनको मंजूर नहीं है. रासायनिक खेती बहुत महंगी है. किसान फसल में ज्यादा पैदावार लेने के लिए इसका प्रयोग बहुत अधिक मात्रा में करने लगे है. जिस कारण किसानों का खर्च तो बढ़ ही रहा है और साथ में उनका क़र्ज़ भी बढ़ रहा है. इन खतरनाक कीटनाशकों के ज्यादा इस्तेमाल से खेतों की मिट्टी और पानी दोनों नष्ट हो रहे है. इसकी वजह से कई प्रकार के रोग पनप रहे है. जो भविष्य में बहुत बड़ा ख़तरा साबित हो सकते है. जैसे- बांझपन, कैंसर आदि समस्या हो रही है. इनकी वजह से मनुष्य से लेकर पशु- पक्षियों की भी जीवनशैली पर भी प्रभाव पड़ रहा है. रासायनिक खादों का निर्माण भी पेट्रोलियम पदार्थो पर निर्भर है.जो जल्द ही ख़त्म होने वाले है. फिर भी तो हमें इनके बिना खेती करनी ही पड़ेगी.
जब कुछ किसानों को फसलों में रासायनिक खेती की वजह से नुकसान होने लगा तो उन्होंने प्राकृतिक खेती की ओर रुख कर लिया और सही समय पर भटकने से बच गए. इस खेती में लागत जरूर कम होती है, पर इसके उत्पादन और किसान की आय में कमी नहीं आती. जैविक उत्पाद बिकते भी महंगे है. क्योंकि उनमें कोई रासायनिक ज़हर नहीं होता. कई ऐसे राज्य है, जो प्राकृतिक खेती को अपना चुके है. जैसे कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात आदि राज्यों में 30 प्रतिशत से ज्यादा किसान इस खेती में सफलता पा रहे है और देश को रासायनिक मुक्त बनाने में अपनी पहल कर रहे है .
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मनीशा शर्मा, कृषि जागरण
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