धान खरीफ सीजन की एक प्रमुख फसल है. देश के अधिकतर किसान इस फसल की खेती करते हैं. धान की रोपाई करने में अधिक संख्या में मजदूरों की आवश्यकता पड़ती है. इससे किसानों का समय और लागत, दोनों अधिक लगता है. ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किसानों के लिए धान की रोपाई करने के लिए एक नई तकनीक विकसित की गई. इस तकनीक को श्री विधि का नाम दिया गया है. खास बात है कि इस तकनीक से प्रति एकड़ खेत में धान की रोपाई करने के लिए सिर्फ 2 किलो बीज का उपयोग करना पड़ता है. आइए किसान भाईयों को श्री विधि से धान की रोपाई करने की पूरी जानकारी देते हैं.
धान की नर्सरी तैयार करना (Paddy Nursery Preparation)
धान की खेती में सबसे पहले भूमि से 4 इंच ऊंची नर्सरी तैयार करनी पड़ती है. इसके चारों ओर नाली बनानी होगी. इसके बाद नर्सरी में गोबर की खाद या फिर केंचुआ खाद डाल दें और भूमि को भुरभुरा बना लें. अब नर्सरी की सिंचाई कर दें. इसके उनमें बीज का छिड़काव कर दें.
खेती को तैयार करना (Farming Preparation)
धान के खेत की तैयारी परंपरागत तरीके से की जाती है, इसलिए सबसे पहले भूमि को समतल बना लें. ध्यान दें कि पौध रोपण के 12 से 24 घंटे पहले खेत में 1 से 3 सेमी से ज्यादा पानी न रखें. इसके साथ ही पौधा रोपण से पहले खेत में 10 गुणा 10 इंच की दूरी पर निशान लगा लें.
पौधा उठाने का तरीका (Plant raising method)
उपयुक्त सभी कार्यों के लगभग 15 दिन के बाद पौधा रोपण किया जाता है. जब पौधे में लगभग 2 पत्तियां निकल आती हैं. बता दें कि नर्सरी से पौधों को उठाते समय खास सावधानी बरतनी चाहिए. पौधों को एक-एक करके आसानी से अलग करना चाहिए. इनको लगभग 1 घंटे के अंदर लगा देना चाहिए.
पौधों की रोपाई करने का तरीका (Method of transplanting plants)
पौधे की रोपाई के समय हाथ के अंगूठे और वर्तनी अंगुली का उपयोग करना चाहिए. ध्यान दें कि खेत में बनाए निशान की हर चौकड़ी पर एक पौधे की रोपाई करें. इसके साथ ही नर्सरी से निकाले पौधों को मिट्टी समेत ही लगाएं. बता दें कि धान के बीज समेत पौधे को ज्यादा गहराई पर नहीं रोपा जाता है.
खरपतवार का नियंत्रण (Weed control)
इस विधि में खरपतवार नियंत्रण के लिए हाथ से चलाए जाने वाले वीडर का उपयोग किया जाता है. इससे खेत की मिट्टी हल्की हो जाती है, साथ ही उसमें हवा का आवागमन ज्यादा हो पाता है.
सिंचाई एवं जल प्रबंधन (Irrigation and Water Management)
खेत में पौधों की रोपाई के बाद सिंचाई की जाती है, लेकिन उतनी ही जिचनी पौधों में नमी बनी रहे.
रोग व कीट प्रबंधन (Disease and Pest Management)
खास बात है कि इस विधि में रोग और कीट लगने का खतरा कम रहता है, क्योंकि पौधों की दूरी ज्यादा होती है. इसमें जैविक खाद का उपयोग भी सहायक माना जाता है.
अन्य ज़रूरी जानकारी (Other important information)
श्री विधि से धान की खेती करने पर बेहतर उत्पादन प्राप्त होता है. इससे किसानों को कई लाभ मिलते हैं, जैसे बीज की संख्या कम लगती है, साथ ही मजदूर भी कम ही लगते हैं. इसके अलावा खाद और दवा का कम उपयोग करना पड़ता है.
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