सेब की खेती ठंडे क्षेत्रों में ही की जाती है. भारत में पहाड़ी क्षेत्रो पर मुख्य रुप से सेब की खेती की जाती है. इसके लिए 100 से 150 सेंटीमीटर बारिश की जरुरत होती है. मार्च-अप्रैल के समय में सेब के पौधे मार्च से अप्रैल महीने के बीच आना शुरू हो जाते हैं.
उत्तराखण्ड प्राकृतिक सम्पदा और भौगोलिक विविधता के लिए जाना जाता है. यहा की जलवायु फल के उत्पादन के लिए काफी उपयुक्त मानी जाती है. उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों के अधिकांश भागों में सेब उत्पादन किया जाता है. आज के युग में घरेलू बाजार में सेब की बढ़ती मांग को देखते हुए इसके उत्पादन में वृद्धि करना एक बड़ी चुनौती है. ऐसे में पारंपरित तरीकों के साथ-साथ सेब की नवीनतम प्रजातियों की खेती करना बहुत ही आवश्यक होता जा रहा है. नवीनतम तकनीकों के साथ-साथ यह भी बहुत आवश्यक है कि ऐसी प्रजातियों का रोपण किया जाये जो अधिक उपज के साथ-साथ अच्छी गुणवत्ता के फल भी प्रदान करें. ऐसे में उत्तराखंड के किसानों ने सेब के विभिन्न प्रकार की प्रजातियों की खेती करना शुरु कर दी है.
शीघ्र पकने वाली सेब की प्रजातियाँ
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अर्ली शनवरी
यह अगेती प्रजाति की श्रेणी में आता है. इसका फल गोल और छिलका लाल और हल्के पीले रंग का होता है. यह फल स्वाद में खट्टा मीठा होता है. इसका फल जून के दूसरे सप्ताह तक पककर तैयार हो जाता है. पके फल को 4 से 6 सप्ताह तक रखा जा सकता है.
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फैनी
इस प्रकार के वृक्ष कुछ अधिक ऊंचाई के होते हैं और यह फल नियमित रूप से फल देता रहता है. यह फल गोल, चपटा, मध्यम आकार का होता है. इसका छिलका पीले रंग का धारीदार होता है और गूदा कुरकुरा हल्की खटास का होता है. फल जून मध्य से अन्तिम सप्ताह तक पककर तैयार हो जाता है.
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बिनौनी
इस किस्म के वृक्ष की भी ऊँचाई अधिक होती है. इसका फल गोल चपटा, त्वचा चिकनी पीले रंग की होती है और गूदा रसीला खट्टा-मीठा स्वाद का होता है. फल जुलाई के प्रथम सप्ताह में पकना शुरु हो जाते हैं.
मध्य में पकने वाली प्रजातियां
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रॉयल डेलीशस
इस प्रजाति के पौधे नियमित रुप से फल देते हैं और इनकी पैदावार भी अधिक होती है. इसके फल का आकार बड़ा और अण्डाकार होता है. फल का रंग लाल, चमकीला, गूदा नरम, रसीला एवं बहुत मीटे स्वाद को होता है. इसका फल अगस्त के अन्तिम सप्ताह से लगने शुरु हो जाते हैं.
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रिच एरैस
यह वृक्ष मध्यम ऊँचाई तथा फैलाव वाले होते हैं. यह फल गोल, अण्डाकार, तिकोने तथा निचले भाग पर पांच उभार वाले होते हैं. इसका गूदा रसदार, हल्का पीलापन लिए हुए, खाने में मीठा होता है. फल अगस्त के अन्तिम सप्ताह में पक कर तैयार हो जाते हैं.
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वास डेलीशस
यह अधिक उपज देने वाली प्रजाति है. इसका फल शकुवाकार तथा छिलका लाल रंग का होता है. इसके फल अगस्त के द्वितीय सप्ताह में पककर तैयार हो जाते हैं.
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