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तितली मटर की खेती किसानों को करेगी मालामाल, एक फसल से हैं 3 फायदे

मटर की खेती देश में एक प्रमुख दलहनी फसल के रूप में की जाती है, और इसमें तितली मटर एक बहुउद्देशीय दलहनी कुल का पौधा है, तितली मटर औषधीय गुणों के कारण दुनिया भर में मशहूर है औषधीय के अलावा इसका उपयोग बहुत जगह किया जाता है इसलिए इसकी खेती भी मुनाफेमंद है.

राशि श्रीवास्तव
तितली मटर की खेती
तितली मटर की खेती

देश में किसानों के बीच औषधीय फसलों की खेती तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है सरकार भी एरोमा मिशन के तहत इन फसलों की खेती को बढ़ावा दे रही है.  तितली मटर भी कुछ इसी तरह की फसल हैइसकी गिनती दलहनी और चारे वाली फसलों में भी होती है. इसके-मटर और फलियां जहां भोजन बनाने में काम आती हैं इसके फूलों से ब्लू टी यानी नीली चाय बनाई जाती है जो डायबिटीज जैसी बीमारियों के खिलाफ फायदेमंद है पौधे के बाकी बचे भाग को पशु चारे के तौर पर उपयोग कर सकते हैं ऐसे में एक फसल काम और तीन गुना ज्यादा मुनाफा देती है. तो किसान तितली मटर की खेती से काफी मुनाफा कमा सकते हैं.

उपयुक्त जलवायु

इस फसल के लिए नम और ठंडी जलवायु की जरूरत होती है. देश में अधिकांश स्थानों पर मटर की फसल रबी की ऋतु में उगाई जाती है. इसकी बीज अंकुरण के लिए औसत 20 से 22 डिग्री सेल्सियस और अच्छी वृद्धि के साथ पौधों के विकास के लिए 10 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है. जहां वार्षिक वर्षा 60 से 80 सेंटीमीटर तक होती है वहां मटर की फसल सफलता पूर्वक उगाई जा सकती हैमटर के लिए अधिक बारिश हानिकारक है. 

उपयुक्त मिट्टी

तितली मटर को हर तरह की मिट्टी जैसे रेतीली मिट्टी से लेकर गहरी जलोढ़ दोमट और भारी काली मिट्टी में उगा सकते हैं. मिट्टी का पीएच मान 4.7 से 8.5 के बीच हो तितली मटर का पौधा जल मग्र की स्थिति के प्रति अति संवेदनशील होता हैइसकी खेती के लिए जलनिकास वाली मिट्टी उपयुक्त होती है.

खेत की तैयारी

सबसे पहले हल से 1-2 जोताई कर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लें. फिर खेत में 10 से 15 टन पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देजिसके बाद से जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करेंहर जुताई के बाद खेत में पाटा चलाना जरूरी हैजिससे ढेले टूट जाते हैं  और भूमि में नमी का संरक्षण होता है. बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना जरूरी है.

बीजों की मात्रा और बीजोपचार

एक हेक्टेयर (शुद्ध फसल) के खेत में तकरीबन 20 से 25 किलोग्राम, 10 से 15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर (मिश्रित फसल) के खेत में, 4 से किलों बीज प्रति हेक्टेयर (स्थायी चारागाह) और से 10 किलो बीज प्रति हेक्टेयर (अल्पावधि चरण चारागाह) के खेत के लिए लगते हैं इन बीजो को खेत में लगाने से पहले राइजोबियम की उचित मात्रा से उपचारित करते हैं. 

बुवाई का समय और विधि

तितली मटर के बीजो की रोपाई के लिए ड्रिल विधि का इस्तेमाल करना चाहिए. इसके लिए खेत में पंक्तियों को एक फीट की दूरी रखते हुए तैयार करना चाहिएइन पंक्तियों में बीजो को से सेमी की दूरी पर लगाते हैं. बीज की गहराई 2.5 से सेमी रखना चाहिए. अगेती किस्म की रोपाई के लिए अक्टूबर से नवंबर और पछेती किस्मों के लिए बीज की रोपाई नवंबर के आखिरी में की जाती है.

ये भी पढ़ेंः तितली मटर की खेती आज ही करें शुरू, इसके फूलों से बनती है चाय, किसानों को मिलेगा 3 गुना अधिक मुनाफा

सिंचाई प्रबंध

मटर की देशी और उन्नतशील जातियों में दो सिंचाई की जरूरत होती है. पहली सिंचाई फूल निकलते समय बोने के 45 दिन बाद और दूसरी सिंचाई जरूरत पड़ने पर फली बनते समयबोने के 60 दिन बाद करते हैं. सिंचाई हमेशा हल्की करनी चाहिए.

English Summary: Butterfly pea cultivation will benefit farmers, there are 3 benefits from one crop Published on: 13 March 2023, 04:39 PM IST

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