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करेला की फसल में लगने वाले रोग और प्रबंधन

करेला गर्मी और बारिश दोनों मौसम में उगाई जाने वाली फसल है. आइये इसमें लगने वाले रोगों के प्रबंधन के बारे में आपको बताते हैं.

रवींद्र यादव
करेला में लगने वाले रोग
करेला में लगने वाले रोग

करेला एक फाइबर युक्त सब्जी होती हैं. इसके अलावा इसमें पोटेशियम, जिंक, मैग्नेशियम, फास्फोरस, कैल्शियम, आयरन, कॉपर और मैगनीज जैसे तत्व भी पाए जाते हैं. इसके अलावा विटामिन सी, विटामिन ए भी इसमें प्रचुर मात्रा में पाई जाती है. यह गर्मी और बारिश दोनों मौसम में उगाया जा सकता है. फसल में अच्छी पैदावार के लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस के तापमान की आवश्यकता होती है.

करेला में लगने वाले लगे

रेड बीटल

यह एक ऐसा हानिकारक कीट है, जो करेला में प्रारम्भिक अवस्था में ही लग जाता है. यह कीट पत्तियों के साथ-साथ इसकी जड़ों को भी काटकर नष्ट कर देती है. रेड बीटल से करेले के फसल की बचाव के लिए निम्बादी कीट रक्षक का प्रयोग कर सकते हैं. आप 5 लीटर कीटरक्षक को 40 लीटर पानी में घोलकर, सप्ताह में दो से तीन बार छिड़काव कर सकते हैं.

पाउडरी मिल्ड्यू रोग

इसकी वजह से करेले की बेल एंव पत्तियों पर सफेद गोलाकार जाल फैल जाते हैं. जो बड़े होकर कत्थई रंग के हो जाते हैं. इस रोग में पत्तियां पीली हो जाती है और फिर सूख जाती हैं. यह रोग एरीसाइफी सिकोरेसिएटम नामक बैक्टेरिया के कारण होता है. करेले की फसल को सुरक्षित रखने के लिए 5 लीटर खट्टी छाछ लें. इसमें 2 लीटर गौमूत्र और 40 लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करने से इससे छुटकारा मिल जाता है.

एंथ्रेक्वनोज रोग

यह रोग करेला में सबसे अधिक पाया जाता है. इस रोग से ग्रसित पौधे में पत्तियों पर काले धब्बे बन जाते हैं, जो इसकी प्रकाश संश्लेषण क्रिया में बाधा उत्पन्न करता है, जिसके फलस्वरुप पौधे का विकास अच्छी तरह से नहीं हो पाता है. इस रोग से बचाव के लिए 10 लीटर गौमूत्र में 4 किलोग्राम आडू पत्ते और 4 किलोग्राम नीम के पत्ते और लहसुन को उबाल कर ठण्डा कर लें और इसे 40 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से इस रोग से उपचार पाया जा सकता है.

चूर्णिल आसिता

इस रोग के लगने से करेले की पत्तियां और तनों की सतह पर सफेद धुंधले धुसर दिखाई पड़ने लगते हैं और कुछ दिनों के बाद वे धब्बे चूर्ण युक्त हो जाते हैं, जिस कारण इसकी पत्तियां झरने लगती हैं. इसकी रोकथाम के लिए रोग ग्रस्त पौधों को खेत में इकट्ठा करके जला देना चाहिए. इसके अलावा रासायनिक फफूंदनाशक दवा जैसे ट्राइडीमोर्फ या माइक्लोब्लूटानिल के घोल को सात दिन के अंतराल पर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए.

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मोजेक विषाणु रोग

यह रोग विशेषकर नई पत्तियों में चितकबरापन और सिकुड़न आ जाती हैं और पत्तियां छोटी एवं पीली रंग की हो जाती हैं और उसकी वृद्धि रूक जाती हैं. इस रोग के नियंत्रण के लिए खेत में से रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए. इसके अलावा आप इमिडाक्लोरोप्रिड के घोल को पौधो पर दस दिन के अन्तराल पर छिड़काव कर सकते हैं.

English Summary: Bitter gourd diseases and management Published on: 27 January 2023, 11:42 AM IST

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