हरियाणा के कुल भौगोलिक क्षेत्र में से, 80 % भू-भाग पर खेती की जाती है और उसमे से 84% क्षेत्र सिंचित खेती के अंदर आता है। राज्य की फसल गहनता 181 % है और कुल खाद्यान्न उत्पादन 13.1 मिलियन टन है। प्रमुख फसल प्रणालियां चावल-गेहूं, कपास-गेहूं और बाजरा-गेहूं हैं। राज्य का लगभग 62% क्षेत्र खराब गुणवत्ता वाले पानी से सिंचित किया जाता है। इसके बावजूद भी किसान धान की खेती करता है। राज्य में चावल की खेती के तहत लगभग 1 मिलियन हेक्टेयर है, जो ज्यादातर सिंचित है। राज्य की औसत उत्पादकता लगभग 3.1 टन/हेक्टेयर है। धान की लगातार खेती और इसमें सिंचाई के लिए पानी के इस्तेमाल से लगातार भूजल का स्तर गिरता जा रहा है। धान के उत्पादन में प्रमुख बाधाएं हैं. पानी की कमी, मिट्टी की लवणता क्षारीयता, जिंक की कमी और बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट। इस लेख में धान की खेती में पानी की बचत करने के बारे में बताया गया है।
कम अवधि वाली किस्में
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (SAU) ने पूसा बासमती 1509 (115 दिन), पूसा बासमती 1692 (115 दिन) और पूसा बासमती 1847 (125 दिन) और पूसा बासमती 1847 (125 दिन) सहित उच्च उपज वाली कम अवधि वाली बासमती चावल की किस्में विकसित की हैं। गैर-बासमती श्रेणी में सुगंधित चावल की किस्में PR 126 (120-125 दिन), पूसा एरोमा 5 (125 दिन) और पूसा 1612 (120 दिन) आती है। जल्दी पकने वाली ये किस्में लगभग 20-25 दिन पहले परिपक्व हो जाती हैं जो किसानों को पुआल प्रबंधन के लिए समय देती है इसके साथ गेहूं की बुवाई के लिए खेतों की तैयार करने का भी समय मिल जाता है। दो से पांच सप्ताह कम समय की वजह से पानी की लागत भी कम हो जाती है।
प्रत्यारोपण का समय
उच्च बाष्पीकरणीय मांग की अवधि (जून) के दौरान चावल की रोपाई के परिणामस्वरूप बहुत अधिक भूजल का खनन हो सकता है। भारतीय राज्य हरियाणा, पंजाब, दिल्ली में जल स्तर वर्तमान में 0.5-1.0 मीटर प्रति वर्ष की दर से गिर रहा है। अनाज की पैदावार बढ़ाने और पानी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए पानी की बचत की तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है। धान की रोपाई जून के आखिरी सप्ताह या जुलाई के पहले सप्ताह में करनी चाहिए। ऐसा करने से वाष्पीकरण से उड़ने वाले पानी की बचत होती है और पैदावार का भी ज्यादा नुकसान नहीं होता।
वैकल्पिक गीली सूखी विधि (AWD)
वैकल्पिक गीली सूखी (AWD) विधि धान की खेती में जल को बचाने के साथ-साथ मीथेन के उत्सृजन को भी नियंत्रित करती है। इस विधि का उपयोग तराई में रहने वाले किसान सिंचित क्षेत्रों में अपने पानी की खपत को कम करने के लिए कर सकते हैं। इस तकनीक का उपयोग करने वाले चावल के खेतों को बारी-बारी से पानी से भरा जाता है और सुखाया जाता है। AWD में मिट्टी को सुखाने के दिनों की संख्या मिट्टी के प्रकार और धान की किस्म के अनुसार 1 दिन से लेकर 10 दिनों से अधिक तक हो सकती है।
कृषि से 10 % ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए चावल की खेती जिम्मेदार है। AWD को नियंत्रित सिंचाई भी कहा जाता है। सुखी और कठोर मिट्टी में सिंचाई के दिनों की संख्या 1 से 10 दिनों से अधिक हो सकती है। AWD तकनीक को लागू करने का एक व्यावहारिक तरीका एक साधारण वॉटर ट्यूब का उपयोग करके क्षेत्र में जल स्तर की गहराई का ध्यान रखना पड़ता है। जब पानी का स्तर मिट्टी की सतह से 15 से0मी0 नीचे होता है, लगभग 5 से0मी0 तक सिंचाई करने की आवश्यकता होती है। ऐसा हमे धान में फ्लॉवरिंग के समय करना चाहिए। पानी की कमी से बचने के लिए चावल के खेत में पानी की गहराई 5 सें0मी0 होनी चाहिए, जिससे चावल के दाने की उपज को नुकसान नहीं होता। 15 सें0मी0 के जल स्तर को ‘सुरक्षित AWD‘ कहा जाता है, क्योंकि इससे उपज में कोई कमी नहीं आएगी। चावल के पौधों की जड़ें तर बतर मिट्टी से पानी लेने में सक्षम होती है।
धान की सीधी बिजाई (डीएसआर)
यहां पहले से अंकुरित बीजों को ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन द्वारा सीधे खेत में डाला जाता है। इस पद्धति में कोई नर्सरी तैयार करने या रोपाई शामिल नहीं है। किसानों को केवल अपनी भूमि को समतल करना है और बिजाई से पहले एक सिंचाई करनी होती है।
यह पारंपरिक पद्धति से किस प्रकार भिन्न है?
धान की रोपाई में, किसान नर्सरी तैयार करते हैं जहाँ धान के बीजों को पहले बोया जाता है और पौधों में खेतों में रोपाई की जाती है। नर्सरी बीज क्यारी प्रतिरोपित किए जाने वाले क्षेत्र का 5-10% है। फिर इन पौधों को उखाड़कर 25-35 दिन बाद पानी से भरे खेत में लगा दिया जाता है।
डीएसआर का लाभः
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पानी की बचत:डीएसआर के तहत पहली सिंचाई बुवाई के 21 दिन बाद ही आवश्यक है। इसके विपरीत रोपित धान में, जहां पहले तीन हफ्तों में जलमग्न/बाढ़ की स्थिति सुनिश्चित करने के लिए व्यावहारिक रूप से रोजाना पानी देना पड़ता है।
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कम श्रम:एक एकड़ धान की रोपाई के लिए लगभग 2,400 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से तीन मजदूरों की आवश्यकता होती है। डीएसआर में इस श्रम की बचत हो जाती है।
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डीएसआर के तहत खरपतवार नाशी की लागत 2,000 रुपये प्रति एकड़ से अधिक नहीं होगी।
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खेत के कम जलमग्न होने के कारण मीथेन उत्सर्जन को कम होता है और चावल की रोपाई की तुलना में मिट्टी के साथ ज्यादा झेडझाड़ भी नहीं होती।
रिज बेड ट्रांसप्लांटिंग
कठोर बनावट वाली मिट्टी में सिंचाई के पानी को बचाने के लिए धान को मेड़ों/क्यारियों पर लगाया जा सकता है। खेत की तैयारी के बाद (बिना पडलिंग किए), उर्वरक की एक बेसल खुराक डालें और रिजर गेहूँ की क्यारी बोने की मशीन से मेड़ों/क्यारियों तैयार करें। रिज में सिंचाई करें और मेड़ों/क्यारियों के ढलानों (दोनों तरफ) के मध्य में पौधे से पौधे की दूरी 9 सें.मी. प्रति वर्ग मीटर 33 अंकुरों को सुनिश्चित करके रोपाई करे।
लेजर भूमि समतल
धान की रोपाई के बाद स्थापित होने के लिए पहले 15 दिनों के लिए धान के खेत को जलमग्न रखने की आवश्यकता होती है। अधिकतर नर्सरी के पौधे या तो खेत में पानी की कमी या अधिकता के कारण मर जाते हैं। इस प्रकार, उचित पौधे के खड़े होने और अनाज की उपज के लिए भूमि का समतलीकरण करना बहुत आवश्यक है। अध्ययनों ने संकेत दिया है कि खराब फार्म डिजाइन और खेतों की असमानता के कारण खेत में सिंचाई के दौरान पानी की 20-25 % मात्रा बर्बाद हो जाती है।
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लेजर लेवेलर के फायदे निम्नलिखित हैः
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सिंचाई के पानी की बचत करता है।
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खेती योग्य क्षेत्र में लगभग 3 से 5% की वृद्धि होती है।
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फसल स्थापना में सुधार होता है।
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फसल परिपक्वता की एकरूपता में सुधार होता है।
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जल अनुप्रयोग दक्षता को 50% तक बढ़ाता है।
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फसल की पैदावार में बढ़ोतरी होती है (गेहूं 15%, गन्ना 42%, चावल 61% और कपास 66% )
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खरपतवार की समस्या कम होती है और खरपतवार नियंत्रण दक्षता में सुधार होता है।
नरेंद्र कुमार, देवेंद्र जाखड़, सुनील कुमार
कृषि विज्ञान केंद्र, सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
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