आलू एक ऐसी सब्जी है जिसका इस्तेमाल अमूमन हर घर की रसोई में होता है, इसलिए इसका उत्पादन भी किसान बड़े पैमाने पर करते हैं. साथ ही आलू की उत्पादन और भंडारण क्षमता भी अन्य सब्जियों की तुलना में अधिक होती है. इसमें पोषक तत्वों का भी भंडार है जो बच्चों से लेकर बूढ़ों के शरीर को भरपूर पोषण देता है. बढ़ती आबादी को कुपोषण और भुखमरी से बचाने वाली लगभग यह एक मात्र सब्जी है. इसलिए कृषि वैज्ञानिक आए दिन इस पर प्रयोग करते हैं और नई प्रजाति विकसित करने की कोशिश करते हैं. इस बीच वैज्ञानिकों ने आलू की नई प्रजाति को विकसित किया है इसलिए बिहार में किसान काले आलू के बाद अब गुलाबी आलू की खेती भी कर सकेंगे.
गुलाबी आलू
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक ने आलू की एक नई प्रजाति को विकसित किया है. इस प्रजाति को युसीमाप और बड़ा आलू 72 नाम दिया है. जिसका बिहार के लखीसराय जिले के हलसी प्रखंड में स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र में सफल उत्पादन हुआ है. उत्पादन में उम्मीद के अनुरूप सफलता मिलने के बाद वैज्ञानिकों में काफी खुशी है और जल्द ही यह आलू की प्रजाति किसानों के खेतों तक भी पहुंच जाएगी. जिसका उत्पादन कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. वैज्ञानिक की मानें तो यह आलू सामान्य आलू की तुलना में अधिक पौष्टिक है। साथ ही सामान्य आलू की अपेक्षा कार्बोहाइड्रेट और स्ट्राच की मात्रा कम होती है जो लोगों की सेहत के लिए काफी फायदेमंद है.
गुलाबी आलू की भंडारण क्षमता अधिक
सामान्य आलू की तुलना में गुलाबी आलू की सेल्फ लाइफ ज्यादा होती है. जिसकी वजह से गुलाबी आलू को कई महीनों तक आसानी से स्टोर करके रखा जा सकता है. आमतौर पर गर्मी के मौसम में आलू में सड़ने की समस्या अधिक आती है लेकिन आलू की इस प्रजाति में यह समस्या नहीं होती. इसलिए आसानी से इसका कई महीनों तक भंडारण किया जा सकता है.
पिंक पोटैटो में प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा- कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो पिंक पोटैटो में प्रतिरोधक क्षमता सामान्य आलू से ज्यादा होती है. इसलिए इसमें लगने वाले अगेता झुलसा रोग, पिछेती झुलसा रोग, पोटैटो लीफ रोल रोग आदि रोग नहीं लगते हैं. विषाणुरहित होने के करण इसमें विषाणुओं से पनपने वाले रोग भी नहीं लगते हैं. वैज्ञानिक बताते हैं कि इसका रंग गुलाबी है जो काफी चमकीला दिखता है. काफी पौष्टिक होने के साथ ही आकर्षक भी दिखता है. जिसके कारण लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. इसलिए बाजार में सामान्य आलू से ज्यादा गुलाबी आलू की मांग रहती है इस वजह से किसानों को अच्छा मुनाफा भी मिलेगा.
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पिंक पोटैटो से किसान होंगे मालामाल
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक मैदानी इलाकों के साथ-साथ पहाड़ी इलाकों में भी बड़े पैमाने पर गुलाबी आलू की खेती (Potato Cultivation) की जा सकती है. सामान्य आलू की फसल अमूमन 90 से 105 दिनों में तैयार होती है जिसके बाद आशानुरूप उत्पादन हो पता है, जबकि गुलाबी आलू महज 80 दिनों में ही पूरी तरह से तैयार हो जाता है और फिर उपज लगभग 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. लेकिन सामान्य आलू की खेती में किसानों को कई समस्याएं भी झेलनी होती हैं। आलू की फसल में कई रोग भी लग जाते हैं जो फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर देते हैं और किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ता है. हालांकि पिंक पौटेटो में रोग लगने की संभावना ना के बराबर है.
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