तमिलनाडु की 'आश्चर्यजनक घास' के नाम से विख्यात 'वेटिवर' तेजी से अन्य राज्यों में फ़ैल रही है. इस घास में मिटटी का क्षरण रोकने के अलावा औषधीय और कॉस्मेटिक उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले कई खास गुण शामिल होते हैं. यह घास पांच फ़ीट तक बढ़ती है और इसकी जड़ें 10 फ़ीट गहराई तक चली जाती हैं. पूरी दुनिया में सुगंधित सामग्री बनाने वाले उद्योग में इस घास की भारी मांग है.
इस घास की लोकप्रियता इसलिए भी अधिक बढ़ रही है क्योंकि यह मिट्टी के कटान से निपटने और कार्बन डाई ऑक्साइड को अवशोषित करने के लिए अनुकूल है. इसको लगाने से मिट्टी से कार्बन का खात्मा हो जाता है और भूमि का उपजाऊपन बना रहता है. पिछले कुछ सालों में वेटिवर में कुछ अन्य गुणों को जोड़कर कई विशेष उत्पादों का निर्माण किया गया है.
भारत में अधिकतर किसान छोटी जोत वाले हैं. आईसीएआर की रिपोर्ट के अनुसार देश के 90 फीसदी से अधिक किसानों के पास 5 हेक्टेयर से भी कम जमीन है. साथ ही गेहूं, जौ, कपास, बाजरा और धान जैसी मुख्य फसलों में लागत ज्यादा आती है और अधिक उत्पादन के चलते इन फसलों का सही दाम भी नहीं मिल पाता है. ऐसे में किसानों के लिए जीविका चलाना मुश्किल हो जाता है. इन परिस्थितियों में जरुरत इस बात की होती है कि कुछ ऐसी फसलों और खेती के मुनाफा देने वाले तरीकों को अमल में लाया जाए जो किसानो को तो फायदा पहुंचाएं ही साथ ही जमीन के लिए भी फायदेमंद हों. वेटिवर ऐसी ही एक फसल है जो किसानों को अधिक फायदा दे सकती है.
इंडिया वेटिवर नेटवर्क (आईवीएन) और तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय मिलकर इस घास की खेती को लोकप्रिय बनाने के लिए काम कर रहे हैं. आईवीएन के अशोक कुमार कहते हैं कि समुद्री तट रेखा वाले क्षेत्र इस घास की पैदावार के लिए अधिक उपयुक्त हैं. क्योंकि इस घास को पनपने के लिए रेतीली मिट्टी की जरुरत होती है. देश का बड़ा हिस्सा समुद्री तट से जुड़ा हुआ है. तटीय हिस्सों के किसान इस घास की फसल उगा सकते हैं.
अधिक मुनाफा देने वाली इस फसल की खेती करना बहुत आसान है. वेटिवर की पैदावार लेने के लिए लंबी तटरेखा का उपयोग किया जा सकता है. यह उन युवाओं के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है जो कृषि क्षेत्र में नवाचार करने और नए उद्योग लगाने की दिशा में काम कर रहे हैं. साथ ही तटीय इलाकों के लोग मछली पकड़ने का काम करते हैं उनके लिए भी यह कारगर तरीका साबित हो सकता है.
इस घास का उपयोग दूषित जल स्रोतों को साफ़ करने में किया जा सकता है. खास तौर से यह घास मंदिरों के तालाबों को शुद्ध करने में उपयोगी हो सकती है. इसके साथ ही तटीय इलाकों जैसे -केरल और कोडाईकनाल क्षेत्रों में मिट्टी के कटान को रोकने के लिए इस घास का इस्तेमाल किया जा सकता है. इन्हीं गुणों के चलते यह घास अब अन्य राज्यों के किसानों के बीच भी लोकप्रिय हो रही है. हालाँकि, तटीय इलाकों की तुलना में बाकी जगहों पर इस घास की उपज कम रहती है लेकिन इसकी गुणवत्ता उतनी ही रहती है.
तटीय क्षेत्रों में यह प्रति एकड़ 2 से 2.5 लाख टन की उपज देती है जबकि अन्य राज्यों में इसकी औसत पैदावार 1.5 लाख टन तक रहती है. लेकिन तटीवर्ती हिस्सों में पैदा हुई इस घास से निकलने वाले तेल का प्रतिशत 0.8% जबकि बाकी क्षेत्रों में 1.4 9% है. इसके एक किलोग्राम तेल की कीमत 30,000 से 58,000 रूपये के बीच होती है. खास बात यह है कि एक किलोग्राम वेटिवर घास से 300 ग्राम तेल निकलता है. कुल दस महीने की फसल अवधि वाली वेटिवर घास से एक एकड़ में 1.5 लाख तक का मुनाफा लिया जा सकता है.
बता दें कि इस घास में नमी धारण करने की क्षमता पायी जाती है जिसके चलते यह मृदा सरंक्षण और भूमिगत जलस्तर को बढ़ाने के लिए कारगर है. सूखाग्रस्त या कम जल उपलब्धता वाले क्षेत्रों में इस घास की जैविक तरीके से पैदावार की जा सकती है. जाहिर तौर पर सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए यह घास किसी वरदान से कम नहीं है. इथेनॉल निष्कर्षण, पशुओं के लिए चारा और हस्तशिल्प बनाने के लिए भी इस घास का इस्तेमाल किया सकता है. इसके अलावा इसमें औषधीय गुण भी पाए जाते हैं.
रोहिताश चौधरी, कृषि जागरण
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