हर व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई उसका आदर्श होता है, जिससे प्रभावित हो कर वह वैसा ही बनना चाहता है। पर क्या कभी आपने सुना हो या किसी ने आपसे कहा हो की किसान उसका रोल मॉडल है? शायद नहीं, हाँ नेताओ के भाषणों में ज़रूर सुना होगा जो की वह किसान को रुझान के लिए चुनाव के समय करते हैं।
आज के इस दौर में युवा पढ़ाई-लिखाई कर मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करना चाहते हैं या फिर गवर्नमेंट जॉब में करियर बनाना चाहते हैं, लेकिन कोई भी युवा किसान नहीं बनना चाहता। अब अगर बात करे किसानो की तो वह भी अपने बेटे या बेटी को किसान नहीं बनाना चाहता।
भारत की लगभग 70 प्रतिशत आबादी किसी न किसी तरह से खेती से जुड़ी हुयी है जो की धीरे-धीरे कम हो रही है। कुछ मुख्य कारण की एक किसान का बेटा किसान नहीं बनना चाहता है.
खेती एक घाटे का व्यापार बनता जा रहा है:
सस्ती दरों पर कृषि आयात किसानों के घाटे का एक प्रमुख कारण है। भारत घनी जनसँख्या के वजह से विश्व भर में एक बड़े बाजार के तौर पर देखा जाता है। पिछले कुछ समय में देखा गया है की कई विकसित देशों की बड़ी कम्पनियाँ कृषि उत्पादों को भारत में आयात कर रही हैं, जिसके वजह से देश के किसानों को उनके फसलों का उचित दाम नहीं मिल पाने से घाटा हो रहा है।
मानसून पर आश्रित है खेती:
इसके अलावा अगर मौसम की बात करें तो हम सभी जानते हैं की खेती पूरी तरह से मौसम पर आश्रित है और कुदरती आपदा में इजाफा, लगातार हो रही तापमान में वृद्धि, जलवायु परिवर्तन इन सब कारणों से भी किसान खेती में घाटा सह रहे हैं। मानसून का चक्र लगातार बिगड़ता दिख रहा है, जिसके वजह से कई गांव जो सिर्फ प्राकृतिक तरीके से खेती पर निर्भर थे उन गांवों को इसका खासा प्रभाव हुआ है और खेती में किसानों को नुकसान हुआ है।
कृषि ऋण भी किसानों को देता है घाटा:
कृषि ऋण देश के किसानों के लिए एक बड़ा मुद्दा है। ऋण/कर्ज की मार से झिझकता किसान कभी नहीं चाहता उसका बेटा भी इस क़र्ज़ का बोझ ढोये। छोटे-छोटे खेतों में काम करने वाले किसानों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है जिससे वो बैंको से ऋण लेने को मजबूर होते हैं। किसान अलग अलग कार्य जैसे खेती, बागवानी, पशुपालन, सिंचाई, इत्यादि के लिए बैंको द्वारा लोन प्राप्त करते है। ऋण लेकर खेती की शुरुआत करने वाले किसानों को अगर फसल में नुकसान होता है और ये उनको आत्महत्या करने पर मजबूर करती हैं। किसान का बेटा शायद इन सभी बातों को अपने आस-पास होता देख खेती से बचना चाहता है।
किसान आत्महत्या भी एक बड़ी वजह:
किसान का बेटा अगर खेती नहीं करना चाहता तो उसके पीछे सबसे बड़ी वजह है किसान आत्महत्या। NCRB के आंकड़ों के अनुसार किसानों की आत्महत्या की दरें लगातार बढ़ती जा रही हैं। जिसमे महाराष्ट्र के किसान सबसे ज्यादा आत्महत्या कर रहे हैं।
साल 2015 में महारष्ट्र में 4,291 किसानों ने आत्महत्या की।
किसानों के आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र के बाद कर्नाटक का नंबर आता है,
कर्नाटक में साल 2015 में 1,569 किसानों ने आत्महत्या कर ली।
तेलंगाना (1400), मध्य प्रदेश (1290), छत्तीसगढ़ (954), आंध्र प्रदेश (916) और तमिलनाडु (606) भी इसमें शामिल है।
एनसीआरबी के रिपोर्ट के मुताबिक किसानों और खेतों में काम करने वाले मजदूरों की आत्महत्या का कारण कर्ज, कंगाली, और खेती से जुड़ी दिक्कतें हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में रहना, एक आधुनिक जीवनशैली से दूर और पिछड़ा माना जाता है:
गांव में रहकर ही खेती की जा सकती है। किसान को अपना जीवन गांव में रहकर व्यतीत करना पड़ता है लेकिन अब उनके बच्चे गांव से शहर की ओर पलायन कर रहे हैं। वजह है की गांव आज भी कई तरह के मूलभूत (बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वस्थ्य सेवाएं, सुरक्षा) सुविधाओं से वंचित और पिछड़ा माना जाता है।
बिजली लोगों के लिए बिजली मूलभूत सुविधाओं में से एक है लेकिन आज भी देश में कई ऐसे गांव हैं जहां बिजली की उचित व्यवस्था नहीं है या यूं कहें की गांव में बिजली नहीं पहुंची है। बिजली नहीं होने के कारण गांव के लोगों को कई तरह के परेशानियों का सामना पड़ता है जिससे उनकी गांव से लगाव कम हो जाता है।
पानी अगर गांव में पानी की बात करें तो पानी की हालत भी ग्रामीण इलाकों में बहुत अच्छी नहीं है और लगातार जल स्तर के नीचे गिरने से खेती में भी किसानों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
शिक्षा ग्रामीण इलाकों में शिक्षा से जुडी समस्याएं बहुत बार सामने आयी हैं। ग्रामीण इलाकों में आज भी उच्च शिक्षा के लिए कोई विकल्प नहीं देख किसानो के बेटे गांव में रुक कर खेती करना नहीं चाहते हैं। उन्हें लगता है की वो बेहतर और गुणवत्ता शिक्षा सिर्फ और सिर्फ शहर से प्राप्त कर सकते हैं।
स्वास्थ्य सेवाएं ग्रामीण क्षेत्रों में जो सबसे बड़ी और प्रमुख समस्या है वो है स्वास्थ्य सेवाओं की। क्षेत्रों में अच्छे अस्पताल ना होने की वजह से लोगों को कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हर छोटे-बड़े इलाजों के लिए उसे शहर का रूख करना पड़ता है।
किसानों के प्रति शहर के लोगों का नज़रिया:
किसान के बेटे अब शायद इसीलिए भी खेती नहीं करना चाहते हैं क्यूंकि शहर में रहने वाले लोगों का किसानों के प्रति नज़रिया। उन्हें यही लगता है की किसान मतलब पिछड़े और गांववासी। गांव में रह रहे युवाओ को भी शहर में रह रहे लोगों के तौर तरीके भाते हैं, जो की एक किसान के जीवन से बहुत अलग होता है।
किसान खुद नहीं चाहता है की उसका बेटा किसान बने:
शायद ये सुनने में थोड़ा अजीब हो लेकिन किसान खुद नहीं चाहता है की उसका बेटा किसान बने। खेती में कई तरह के जोखिम और घाटे को झेल चूका किसान अपने बेटों को खेती से दूर रखना चाहता है। किसान चाहता है की उसका बेटा भी खेती छोड़ कर पढाई करे और डॉक्टर या इंजीनियर बने। और शायद यही वजह है की किसान अपने बच्चों को शहर पढाई करने के लिए भेज देते हैं।
- जिम्मी गुप्ता [email protected]
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