अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करते हुएए केंद्र सरकार ने हाल ही में घोषणा किए उसने 14 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य ;एमएसपीद्ध में वृद्धि की है. खरीफ सीजन की मुख्य फसलए धान के लिए एमएसपी लगभग 12 फीसदी बढ़ी हैए जबकि बाजरा में 96 फीसदी से अधिक की वसूली होगी. यह भारत भर में कृषि संकट को कम करने के लिए एक सराहनीय कदम है और 2022 तक किसान की आमदनी को दोगुना करने की दिशा में निश्चित रूप से एक सराहनीय कदम साबित होगा.
हालांकिए सरकार को अन्य संबंधित मुद्दों को भी देखने की जरूरत है जैसे किए किसानों के लिए औपचारिक बैंकिंग प्रणाली की विफलताए सिंचाई की बाधाएंए एमएसपी के अलावा अन्य लोगों के बीच खेती को बढ़ावा देने के लिए सस्ती प्रौद्योगिकी की पहुंचए इत्यादि. ये सभी मुद्दे अभी भी समस्त भारत में किसान समुदाय के लिए एक प्रमुख चिंता के विषय हैं. इसके अलावाए बहुत अधिक एमएसपी भी मुद्रास्फीति में वृद्धि कर सकती हैए जिससे किसानों को उत्पादन की लागत बढ़ाने और उच्च एमएसपी वाले उत्पादों के साथ बाजार में कमी आएगी.
गेहूं और चावल को छोड़ दें तो अन्य फसलों की एमएसपी पर सार्वजनिक खरीद अभी भी एक चुनौती बनी हुयी है. इसके लिए कोई उचित तंत्र नहीं हैए परिणामस्वरूप किसानों को अपने उत्पाद को कम कीमत पर निजी खरीदारों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है. वर्तमान मेंए किसानों के लिए 42ए000 मंडियों की जरुरत के एवज में अपने उत्पाद बेचने के लिए भारत में सिर्फ 7ए000 मंडियां हैं.
ज्यादातर मामलों मेंए किसान इसके बारे में अभी जानते नहीं हैं. 2016 में निति आयोग द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट में कहा गया है किए 81 प्रतिशत किसानों को एमएसपी के बारे में पता थाए जबकि बुवाई के मौसम से पहले केवल 10 प्रतिशत किसान ही इस सन्दर्भ में अपडेट किए गए थे. इतना ही नहींए 62 प्रतिशत किसानों को इसके बारे में उस समय पता चला जब बुवाई का मौसम पहले ही खत्म हो चुका था. किसानों से बात करने पर पता चला किए केवल 7 प्रतिशत को एमएसपी के बारे में पता चला और वह भी राज्य शासन अधिकारियों के माध्यम से जबकि भारत के खाद्य निगम से 11 प्रतिशत किसानो को इसके बारे में जानकारी मिली . आज भीए अधिकांश जानकारी गांव के प्रधानए स्कूल शिक्षकोंए ग्राम सेवक या सरपंच से हमारे किसानों को मिल पाती है. इसलिएए एमएसपी प्रणाली को बढ़ावा देने और भारत के गांवों में इसके बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक आधिकारिक प्रशासनिक प्रणाली शुरू करने की जरूरत है. हमें ग्रामीण समुदाय के लिए संचार के अधिक प्रभावी चैनलों को तलाश करने की जरूरत है.
एमएसपी के भुगतान में देरी भी चिंता का एक विषय है जो बढ़ते कृषि तनाव में योगदान देती है. मौजूदा एमएसपी घोषणा से पूर्वए किसानों के लिए यह आम बात थी कि वे अपनी उपज का दाम एक हफ्ते या उससे अधिक समय में प्राप्त करते थेए जोकि चिंता का एक विशेष पहलू हैण्
अधिक एमएसपी अब किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेगा. यह देखते हुए कि इस साल मानसून का पूर्वानुमान सामान्य हैए यह तथ्य निश्चित रूप से खाद्यान्न उत्पादन अधिशेष को बढ़ावा देगा. हालांकिए अच्छी खबर का यह मामला खराब खरीद प्रक्रियाए खाद्यान्नों को स्टोर करने के लिए बुनियादी ढांचे की कमी और अपर्याप्त विपणन सुविधाओं की कमी के साथ.साथ चलेगा. अतः अकेले एमएसपी बढ़ाना पर्याप्त नहीं होगा. इससे पहले कि ऊपर दिए गए अन्य कारकों से भी अपेक्षित सकारात्मक परिणाम के लिए प्रयास किया जाना चाहिए.
इसके अलावाए देश को कृषि उत्पादों के प्रतिबंधित निर्यातध्व्यापार नीतियों में आवश्यक परिवर्तन लाकर अंतरराष्ट्रीय बाजार खोलने पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है. अतीत मेंए इन तथ्यों ने किसानों को मूल्य के सन्दर्भ में नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है. अबए बफर स्टॉक का प्रबंधन करने के लिएए वैश्विक मानकों के अनुरूप कृषि.खाद्य वस्तुओं के लिए उच्च कीमतों को प्राप्त करने के लिए भारतीय कृषि को दुनिया के अन्य हिस्सों के साथ एकीकृत किये जाने की आवश्यकता है. इस प्रकारए कृषि उद्योगए अनुसंधान से लेकर बुनियादी ढांचे और बाजार के निर्माण के लिए अधिक निवेश की मांग करता हैय इन सभी नीतियों को किसानों को लाभ पहुँचाने के लिए लागू किया जाएगा.
उच्च एमएसपी किसानों के लिए अच्छा है क्योंकि यह निश्चित रूप से उनकी खरीद क्षमता में वृद्धि करेगा. इस प्रकार उर्वरकों और कीटनाशकोंए जड़ी.बूटियोंए कीटनाशकोंए पशु चारा इत्यादि जैसे अन्य कृषि.इनपुट की मांग में वृद्धि होगी क्योंकि वे अपनी फसलों के लिए अधिकतम मूल्य प्राप्त करने के लिए उत्पादकता और पैदावार में वृद्धि करना चाहेंगे. यद्यपि यह एक आवश्यक कदम थाए लेकिन प्रभावी वित्तीय योजना के कार्यान्वयन की आवश्यकता अभी जस की तक बनी हुयी है. इस सन्दर्भ में सही और प्रभावी कार्यान्वयन यह सुनिश्चित करेगा कि किसानों की लागत को कवर करने के लिए उन्हें किस चीज की जरुरत है.
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