कई बार ऐसे हादसों में आपने सुना होगा कि जीवन और मौत की जंग से लड़ रहें व्यक्ति को भगवान ने बचा लिया. कई बार तो लोग मौत के बहुत करीब होकर भी जिन्दगी की जंग जीत जाते हैं, ऐसे लोग अक्सर अपने अनुभव में बताते हैं कि उन्हें एक गहरी काली अँधेरे में डूबी सुरंग नजर आई, और इस सुरंग के दूसरे छोर पर बहुत तेज प्रकाश दिख रहा था! कुछ ने तो बताया की उनका शरीर हवा में तैर रहा था! तो कई लोगों को इस अवस्था में अपने करीबी लोग के दिखाई देने का अनुभव हुआ, जोकि काफी समय पहले मर चुके थे है. कई को तो बड़ी दाड़ी वालें बाबा जीवन मरण का हिसाब करते हुए दिखाई दिए.... इन अनुभवों को लेकर कई बार हिंदी फिल्मों में भी काल्पनिक दृश्य दिखाए जाते रहे हैं.
ऐसी ही कई कहानियां अलग-अलग प्रान्त के लोगों द्वारा सुनाई गई, जिनमे इतनी समानताएं होना साधारण नहीं माना जा सकता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि इतने विविध लोगों द्वारा सुनाई गई कहानियों में समानता के पीछे कोई ठोस कारण है, जोकि मनुष्य के शारीरिक या मस्तिष्क में मौजूद हो सकता है, जिसका रहस्य अभी विज्ञान जगत खोज नहीं पाया है.
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‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकैडमी ऑफ साइंस' पत्रिका में हाल ही में प्रकाशित एक शोध पत्र में कुछ ऐसे ही चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं, जिसमें मिशिगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ऐसे मृत्यु के समय होने वालें कुछ अनुभवों का कारण तलाशने का प्रयास किया है. वैज्ञानिकों ने कई ऐसे मरीजों पर शोध किया जोकि अपनी मृत्यु के बेहद करीब थे. उन्होंने चार ऐसे मरते हुए मरीजों का अध्ययन किया जोकि वेंटिलेटर पर थे. उन्होंने इस दौरान पाया जीवन से मृत अवस्था की तरफ जाते हुए व्यक्ति के मस्तिष्क में कई गतिविधियां बहुत तेजी से हुई. जिन गतिविधियों का संबंध मनुष्य की चेतना से था.
हालाकिं ऐसे शोध कई बार किये जा चुके हैं, परन्तु इस शोध में बहुत ख़ास और नए नतीजे सामने आये हैं. शोध पत्र में मुख्य शोधकर्ता जीमो बोरिजिन बताती हैं कि इस शोध में बहुत बारीक जानकारियां प्राप्त हुई हैं, जोकि अब से पहले किसी शोध में नहीं मिली. आपको बता दें जीमो बोरिजिन की प्रयोगशाला मनुष्य की चेतना के न्यूरोबायोलॉजिकल आधार को समझने के लिए शोध कर रही है.
इस शोध में वैज्ञानिकों ने चार ऐसे लोगों के रिकॉर्ड्स को चुना, जिनकी मौत ईईजी करते हुए हुई थी, यानि जिस वक्त उन लोगों की धडकनों को रिकॉर्ड किया जा रहा था. ये ऐसे मरीज थे जोकि कोमा में थे, और जिनका लाइफ सपोर्ट सिस्टम डॉक्टर की सलाह पर हटा दिया गया था. वैज्ञानिकों ने इन लोगों के रिकार्ड्स का अध्ययन किया और जो सामने आया उसे सभी ने चौंका दिया.
शोध के दौरान जब इन चारों मरीजों के वेंटिलेटर हटाए गए दो महिला मरीज के दिलों की धड़कनें बहुत तेज हो गईं और मस्तिष्क में तेजी से गतिविधियां बढ़ गईं. इनमें से एक मरीज की उम्र 24 और दूसरे मरीज की उम्र 77 साल थी. वैज्ञानिकों ने देखा की इन दोनों महिलाओं के ब्रेन में गामा फ्रीक्वेंसी की किरणें तेजी से दौड़ी, जोकि मस्तिष्क की सबसे तेज गतिविधि मानी जाती है तथा जिसे शरीर की चेतना से जोड़कर देखा जाता है. भारत के हिंदू ग्रंथो में इस चेतना आत्मा कहा गया, जोकि मृत्यु के दौरान बहुत तेजी से शरीर से बाहर निकल जाती है.
हालाकिं इससे पहले हुए शोध में भी मरने से ठीक पहले व्यक्ति के ब्रेन में गामा किरणों की गतिविधि दर्ज की गई है. वर्ष 2022 में जब एक 87 वर्षीय व्यक्ति की मौत गिरने से हुई थी, तब भी उसके ब्रेन में ठीक ऐसी ही गामा किरणों की गतिविधियां दर्ज की गई थीं. मिशिगन विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ ने इस प्रकार की गतिविधियों का अध्ययन गहराई से किया. शोध में एक्सपर्ट ने समझा कि इन गतिविधियाँ के दौरान मस्तिष्क का वह हिस्सा अधिक सक्रिय था उसका सम्बन्ध चेतना से जुड़ा हुआ था. इस हिस्से को Posterior Cortical Hot Zone कहा जाता है, मनुष्य के शरीर में यह हिस्सा ठीक पीछे का हिस्सा होता है.
बोरिजिन कहती हैं, "शोध के दौरान मस्तिष्क के इस हिस्से में इतनी ज्यादा सक्रियता थी कि वो पूरा गरम हो गया था, इतना कि जैसे आग लगी हुई हो. उन्होंने बताया कि यह मस्तिष्क का वो पार्ट है जो अगर सक्रिय रहता है, तो माना जाता है कि मरीज कुछ देख-सुन रहा है और अपने शरीर में संवेदनाओं को भी महसूस कर रहा है.”
इस शोध के दौरान मरीजों के मस्तिष्क और दिल में होने वाली हर हलचल पर मृत्यु होने तक नज़र रखी गई. जिससे इस पहेली को सुलझाने में थोड़ी बहुत मदद मिल सके, लेकिन यह गतिविधि सिर्फ दो ही मरीज में सामान रूप से हुई, बाकि दो मरीजों में यह गतिविधि क्यों नहीं हुईं, वैज्ञानिक अभी इस बात का जवाब देने की स्थिति में नहीं हैं. हालाकिं बोरिजिन का अनुमान है कि इन मरीजों में दौरा पड़ने से मौत होना इसकी समस्या रही होगी, जिसके कारण शोध में नतीजों में अंतर रहा.
हालांकि विशेषज्ञ बताते हैं मृत्यु जैसी विराट पहेली को सुलझानें के लिए या किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने हेतु इस शोध का सैंपल साइज सूक्ष्म है. इससे यह बता पाना भी मुश्किल है कि उस वक्त मरीजों ने वाकई में क्या कुछ देखा या सुना होगा. परन्तु बोरिजिन को पूरी उम्मीद है कि विज्ञान के इस आधुनिक युग में इस तरह के शोध से सैकड़ों लोगों का डेटा उपलब्ध किया जा सकता है. जिनकी मदद से मृत्यु की गहराई को समझने में मदद मिल सकेगी.
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