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सुरक्षित भविश्य के लिए जल संचयन

कृषि क्षेत्र की वृद्धि के लिए पानी सबसे महत्वपूर्ण तत्वोंमें से एक है। यहां तक कि अच्छी गुणवत्ता के बीज और उर्वर कभी किसी काम के नहीं होंगे अगर पौधेको पर्याप्त मात्रा में पानीन हीं मिले। पशुपालन और मछलीपालन भी काफी हद तक पानी पर निर्भर है। शोध से पता चलता है कि भारत में दुनिया की 17 फीसदी आबादी बसती है लेकिन दुनिया के ताजे पानी के सिर्फ 4 फीसदी संसाध नही भारत में मौजूद हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत के पास बड़े पैमाने पर जल संसाधनतो हैं लेकिन देश के विस्तृतभूगोल के मुकाबले इनका समान वितरण नहीं है।

कृषि क्षेत्र की वृद्धि के लिए पानी सबसे महत्वपूर्ण तत्वोंमें से एक है। यहां तक कि अच्छी गुणवत्ता के बीज और उर्वर कभी किसी काम के नहीं होंगे अगर पौधेको पर्याप्त मात्रा में पानीन हीं मिले। पशुपालन और मछलीपालन भी काफी हद तक पानी पर निर्भर है। शोध से पता चलता है कि भारत में दुनिया की 17 फीसदी आबादी बसती है लेकिन दुनिया के ताजे पानी के सिर्फ 4 फीसदी संसाध नही भारत में मौजूद हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत के पास बड़े पैमाने पर जल संसाधनतो हैं लेकिन देश के विस्तृतभूगोल के मुकाबले इनका समान वितरण नहीं है।

लगातार बढ़ती आबादी के कारण जल संसाधनों की बढ़ती मांग, खतरनाक होते प्रदूषण स्तरों के कारण मौजूदा जल संसाधनों की बिगड़ती गुणवत्ता ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जहां पानी का उपभोग हरदिन बढ़ रहा है लेकिन इस की आपूर्ति अब भी एक विवाद का प्रश्न बना हुआ  है।टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) द्वारा किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि ज्यादातर शहरों में पानी की कमी है। शहरी भारत में पानी की करीब 40 फीसदी जरूरत भूमिगत जल से पूरी होती है।परिणाम स्वरूप ज्यादातर शहरों में भूमिगत जल का स्तर प्रत्येक वर्ष 2-3 मीटर के खतरनाक दर से गिरता जा रहा है।हैदराबाद, चेन्नई, कोयंबटूर, विजयवाड़ा, अमरावती, सोलापुर, शिमला, कोच्चि जैसे ज्यादातर बड़े शहर पानी के गंभीर संकट की ओर बढ़ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन, समय से पहले गर्मी, बारिश में कमी, कम होता पानी का स्तर, बढ़ती आबादी और जल प्रबंधन नीतियों की कमी शहरों के स्थानीय निकायों के लिए पानी की बढ़ती मांग को पूरा करना मुश्किल करती जा रही है।विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक कम से कम 21 भारतीय शहर 2020 तक शून्य भूमिगत जल स्तर की ओर बढ़ रहे हैं जिससे नीति निर्माताओं और शहरों के योजनाकारों के लिए चेतावनी के संकेत बन चुके हैं।

पानी की कमी के कारण पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव काफी अधिक हैं। यह झीलों, नदियों, नमजमी नें और ताजे पानी के अन्य संसाधनों समेत पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। सिर्फ यही नहीं यह  भी पाया गया कि भारत में कई जगहें ऐसी हैं जो पानी के अधिक इस्तेमाल के कारणपानी की कमी से जूझ रही हैं। ऐसा ज्यादातर सिंचाई कृषि के इलाकों में होता है और इससे पारितंत्र को अधिक लवणता, पोशक प्रदूशण समेत कई तरीकों से नुकसान होता है और बाढ़ से प्रभावित होने वाले मैदानों और नम जमीनों को नुकसान होता है।

इसके अलावा पानी की कमी प्रवाह प्रबंधन की प्रक्रिया को भी प्रभावित करती है और शहरी धाराओं के पुनर्वास में बाधाएं भी पैदा करतीहै। खराब जल संसाधन प्रबंधन प्रणाली और जलवायु परिवर्तन के कारण भारत को लगातार पानी की कमी का सामना करना पड़ताहै।ओईसीडी एनवायर्न मेंटल आउटलुक 2050 की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत को 2050 तक पानी की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ेगा।

लातूर के बारे बात करें जो महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र का एक जिला है। खराब मानसून, भूमिगत जल का अत्यधिक उपयोग और नीति योजनाओं की कमी के कारण लातूर नगर पालिका परिषद् को यह घोषणा करने के लिए मजबूर होना पड़ा कि वे महीने में सिर्फ एक बार पानी मुहैया करा सकतेहैं। इस संकट ने सरकार को रेलवे के माध्यम से पानी भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा और बड़ी संख्या में किसानों और निवासियों को शहर की अर्थव्यवस्थाको स्थिरता देने के लिए शहर से पलायन करना पड़ा।चूंकि सामान्य तौर परपूरा ध्यान मराठवाड़ा और खासतौर पर लातूर पर रहा, महाराष्ट्र की कुलपानी की कमी 30 फीसदी तक के स्तर पर पहुंच गई और कई जिलों में पानी के स्रोत पूरी तरह सूख चुके हैं।वल्र्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के कुल क्षेत्रफल का 54 फीसदी हिस्सा पानी की अत्यधिक समस्या से ग्र्रसित है। इस अध्ययन से पता चलाकि 2030 में भारत में पानी की मांग 1.5 लाख करोड़ क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाएगी जबकि फिलहाल भारत में पानी की आपूर्ति महज 740 अरब क्यूबिक मीटरहै।

भारत के आधिकारिक भूमिगत जल संसाधन विश्लेशण के मुताबिक देश की भूमिगत जल आपूर्ति के 1/6 हिस्से का फिलहाल जरूरत से अधिक इस्तेमाल हो रहा है जिसके कारण शहरों को जल आयात जैसे अस्थाई उपायों का सहारा लेना पड़ता है जिसके आर्थिक असर होते हैं।विश्व बैंक द्वारा किया गया एक अन्य अध्ययन बताता है कि पानी की कमी लंबी अवधि में आर्थिकवृद्धि की संभावनाओं को भी प्रभावित कर सकती है।अगर भारत जल संसाधनों का दुरुपयोग कर नाजारी रखता है तो 2050 तकपानी की कमी की लागत भारत के लिए इस के जीडीपी के 6 फीसदी के बराबर तक हो सकती है।  सबसे अधिक प्रभाव स्वास्थ्य, कृषि, आय और संपत्ति पर होगा।

हम एक धधकते हुए ज्वाला मुखी पर बैठे हैं जिसका नाम पानी है जो कि सीभी समय फट सकताहै। अब समय आ गया है जब हम पानी के उचित उपयोग और बारिश के पानी के संरक्षण के बारे में कुछ सोचें और कुछ करें। अगर प्रत्येक यह प्रण ले किहम बारिश की प्रत्येक बूंद को सहेजेंगे तो हम बारिश के पानी का 70 फीसदी सुरक्षित रख पाएंगे, जो नदियों से होते हुए समुद्रत कपहुंच जाता है और हम अपनी पानी की जरूरतें पूरी कर सकने के साथ ही पृथ्वी पर पानी का दबाव भी कम कर  सकेंगे।जैसा कि हम 2010 में 251 अरब क्यूबिक मीटर्स (बीसीएम) भूमिगत जल का इस्तेमाल कर रहे थे जबकि अमेरिका सिर्फ 112 बीसीएम का इस्तेमाल कर ताथा। इसके अलावा भारत की उत्खननदर ने 1980 में 90 बीसीएम के आधार से तेजी से वृद्धि की जबकि अमेरिका में यह दर 1980 से लगभग समानदर पर बनी हुईहै।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने इस वर्ष ’’सामान्य’’ मानसून की भविश्यवाणी की है। इस वर्ष बारिश लान्ग पीरियड एवरेज (एलपीए) के 97 फीसदी होने का अनुमान है जो कृषि क्षेत्र और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक  सकारात्मक संकेत है। मानसून केरल तक पहुंच चुका है और उम्मीद है कि जल्द ही पूरा भारत बारिश की बूंदों के साथ खुश होगा। इसलिए चलो इस मानसून से ही पानी का संचयन शुरू करते हैं और आने वाली पीढ़ी के लिए एक सुरक्षित भविष्य की बुनियाद रखते हैं।     

English Summary: Water harvesting for safe future Published on: 09 July 2018, 08:39 IST

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