अपने खेतों की उत्पादकता बढ़ाने के लिये इस वैज्ञानिक युग में विभिन्न रसायनों का इस्तेमाल करके हम फसलों का अधिक उत्पादन ले रहे हैं। आज खेती के लिए आवश्यक खाद एवं कीटनाशक रसायनों की बढ़ती हुई खपत ने कई जटिल समस्याओं को जन्म दिया है। जैसे- प्रदूषण का फैलना, उपजाऊ भूमि का उसड़ होना, जल की कमी, कूड़ा-करकट तथा कचरे की मात्रा में हो रहे लगातार वृद्धि जैसी समस्याओं ने मनुष्य और पर्यावरण के समक्ष भयंकर स्थिति उत्पन्न कर दी है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिये यह जरूरी हो गया है कि हम वैकल्पिक साधनों का प्रयोग अभी से प्रारम्भ कर दें।
जैविक खाद के साथ संतुलित मात्रा में उर्वरक:-
भारत कृषि प्रधान देश है यहाँ के लगभग 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। दिन प्रतिदिन जनसंख्या में वृद्धि के कारण यह आवश्यक है कि फसल उत्पादन में वृद्धि उसी अनुपात में अधिक से अधिक की जाय।
वैज्ञानिक विधि से जैविक खाद के साथ संतुलित मात्रा में उर्वरक का व्यवहार किया जाय तो अधिकतम उत्पादन किया जा सकता है जो उर्वरक फसल के उत्पादन में व्यवहार किया जाता है उसका 40-50 प्रतिशत नत्रजन, 15 से 20 प्रतिशत फासफेट एवं 60 से 70 प्रतिशत पोटास उपयोग होता है। शेष किसी न किसी रूप में नुकसान हो जाता है।
रसायन खादों का प्रभाव:-
उन्नत बीज एवं अधिक उर्वरक का व्यवहार तथा सिंचाई विधि में सुधार से फसल उत्पादन में काफी प्रगति हुई है। जितना उर्वरक फसल में दिया जाता है। उससे अधिक पोषक तत्वों को फसल ग्रहण करते है। जिसके कारण दिन प्रतिदिन मिट्टी की उर्वराशक्ति खत्म होती जा रही है तथा भौतिक एवं रसायनिक गुणों पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है। पोषक तत्व प्रबन्ध के द्वारा खेती कि जाय ताकि उर्वरक के व्यवहार में कमी की जा सकें एवं मिट्टी की उर्वराशक्ति बनी रहे।
जैविक खाद:-
रसायनों खाद और दवा के प्रयोग से खेती में विकास तो हुआ लेकिन साथ-साथ किट व बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ा है। नतीजन तमाम तरह के रसायनों का अंधाधुंध इस्तेमाल होने लगा हैं
अब हालत यह है कि ये तमाम रसायन भी असरहीन हो रहे हैं। क्योंकि कीटों ने अपने शरीर को प्रतिरोधक कूवत बढ़ा ली है इस हालत मेंजैव उत्पाद जैसे वर्मी कम्पोस्ट, कम्पोस्ट न नील हरित शैवाल, नीम के बने उत्पाद, लहसुन से बने उत्पाद, गोमूत्र अन्य पौधों या जन्तु उत्पादों का इस्तेमाल काफी फायद मंद साबित हो रहा है। हरि खाद-ढैंचा, उर्द, मूंग, सनिई एवं लोबीया खेत बोने से खेत कि उर्वराशक्ति बढ़ती है।
अतः उर्वरक का प्रयोग जैविक खाद के साथ मिलाकर करें ताकि इसका उपयोग फसलों के द्वारा अधिक से अधिक हो सके। रासायनिक उर्वरक को जैविक खाद हरी खाद एवं जीवाणु खाद के साथ मिलकर व्यवहार करने से उर्वरक की उपयोगिता फसलों के द्वारा अधिक से अधिक दिनों तक बनी रहती है। केवल जैविक खाद का उपयोग संभव नहीं है।
क्योंकि इसमें पोषक तत्वों की मात्रा बहुत ही कम होती है तथा पोषक तत्व पौधों को धीरे-धीरे कम मात्रा में प्राप्त होते है। रासायनिक खाद के प्रयोग से पौधों को सिर्फ एक या दो पोषक मिलते है।
कृषि वैज्ञानिक का मत है कि रासायनिक उर्वरक को 10 टन प्रति हेक्टेयर नील हरित शैवाल के साथ धान की फसल में प्रयोग करने से अनुशासित उर्वरक की चैथाई मात्रा (20 किलो ग्राम यूरिया 8 किलोग्राम डी0ए0पी0 8 किलोग्राम पोटास) मक्का एवं गेहू भी कम किग्रा जा सकता है। जैविक खाद के व्यवहार से धान रबी मक्का एवं गेहू में क्रमशः 3.0, 5.0 तथा 2.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अन्न की अधिक उपज भी होती है।
पोषक तत्व प्रबन्धन के द्वारा धान-गेंहू फसल चक्र में नत्रजन एवं फास्फेट की उपयोग क्षमता में क्रमशः 8.6 तथा 2.6 प्रतिशत और धान-मक्का फसल चक्र में 10.2 तथा 4.7 प्रतिशत की वृद्धि होती है। जिससे कृषि उत्पादन में उर्वरक कि खपत एवं पूजी को बचाते हुए अधिक उपज ले सकते है। इस प्रकार कम उर्वरक के उचित उपयोग से भी अधिक उपज प्राप्त किया जा सकता है। जैविक खादों का प्रभाव लम्बे समय तक रहता है। इससे बलुअहट मिट्टी में पानी एवं पोषक तत्वों के धारण करने की क्षमता भी बढ़ जाती है। जैविक खाद मिट्टी की संरचना को ठीक करता है। यह मिट्टी के जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि करता है।
हरी जैविक खाद:-
जैविक खाद तथा हरी खाद जैसे ढैचा, उर्द, मूग सनई एवं लोविया का प्रयोग करने से मिट्टी में नत्रजन फास्फेट जस्ता, लोहा एवं अन्य सूक्षम पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है। यह प्रयोग ज्ञात हुआ है। कृषि वैज्ञानिक कहते है कि चुनायुक्त मिट्टी में नेत्रजन की अमोनिया गैस के रूप में बर्बादी होती है। रासायनिक उर्वरको को जैविक खाद एवं जीवाणु खाद के साथ व्यवहार करने पर धान, गेहू एवं धान रबी मकई फसलो चक्रो में 2 प्रतिशत नत्रजन अमोनिया गैस के रूप में होने से बच जाता है। इसके अतिरिक्त जैविक खाद एवं हरी खाद फास्फेट पोट्स जस्ता लोहा एवं अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को मिट्टी के स्थिरीकरण होने से रोकता है एवं मिट्टी में फास्फेट जस्ता तथा लोहा की उपलब्धता को बढ़ाता है चुनायुक्त मिट्टी एवं अम्लीय मिट्टी में फास्फेट स्थिर हो जाता है तथा पौधो को प्राप्त नही होता है। जैविक खाद के साथ फास्फेट को घुलनशील बनाने वाले फास्फो वैक्टेरिया जीवाणु के साथ व्यवहार करने से चुनायुक्त एवं अम्लीय मिट्टी में प्राप्त फास्फेट की मात्रा बढ़ती है। फास्फेट का विकल्प जैविक खाद हो सकता है। पांच टन जैविक खाद प्रति हेक्टेयर के प्रयोग से चुनायुक्त मिट्टी में फास्फेट की कमी को दूर क्या जा सकता है। तीन वर्ष में धान एवं गेहू के फसल अवशेष को लगातार व्यवहार करने से 50 प्रतिशत उर्वरक को बचाया जा सकता है। दस टन जैविक खाद तथा धान, गेहूं के अवशेषों को तीन वर्ष तक लगातार व्यवहार करने के उपरान्त नब्बे प्रतिशत उर्वरक को बचाया जा सकता है।
दस टन जैविक खाद तथा धान एवं गेहू के अवशेषों को तीन वर्षो तक लगातार व्यवहार करने के उपरान्त नब्बे प्रतिशत उर्वरक को बचाया जा सकता है। अतः फसल अवशेष बातें को लगातार व्यवहार करने से काफी उर्वरक बचत की जा सकती है। इसके अलावे मिट्टी की उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है। धान की कटनी के उपरान्त धान की जड़ एवं तना के द्वारा उपज का बीस से पच्चीस प्रतिशत मिट्टी में रह जाते है। धान के द्वारा अवशोषित सत्तर से अस्सी प्रतिशत पोटैशियम धान के पुआल में रह जाते है। करीब 80 प्रतिशत पानी में घुलनशील पोटैशियम पुआल में रहता है। धान के द्वारा पोटास उपयोग क्षमता करीब 50 से 60 प्रतिशत है। अतः धान एवं गेहू के पुआल को मिट्टी में डालने से धान एवं गेहू को पोटास की आवश्यकता काफी हद तक पूरी हो जाती है।
इस प्रकार हम जीवाणु खाद जैविक खाद एवं हरी खाद का प्रयोग उर्वरकों के साथ मिलाकर करे तो अधिक से अधिक उपज की प्राप्ति के साथ-साथ मिट्टी का स्वास्थ्य टिकाउ बना रहता है।
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