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जहरीले रसायनों का विकल्प, उत्तम गुणवत्ता वाली कम्पोस्ट बनाने के तरीके एवं सावधानियां

आज के युग में कृषि की पैदावार बढ़ाने में अच्छी भूमि, स्वस्थ बीज, आधुनिक कृषि यंत्र, उन्नत खाद, उपुक्त कीट व रोग नाशक दवाएं तथा समुचित पानी की आवश्यकता होती है. पिछले कई वर्षों से गोबर की खाद की जगह रासायनिक खादों ने ले ली है. जिसके परिणामस्वरूप भूमि की उरवरा शक्ति तथा उसमें पाये जाने वाले अनेकों जीव, जंतु व सूक्ष्म जीवों में भारी कमि पाये जाने लगी है तथा भूमि से पैदावार पर असर पड़ने लगा है

आज के युग में कृषि की पैदावार बढ़ाने में अच्छी भूमि, स्वस्थ बीज, आधुनिक कृषि यंत्र, उन्नत खाद, उपुक्त कीट व रोग नाशक दवाएं तथा समुचित पानी की आवश्यकता होती है. पिछले कई वर्षों से गोबर की खाद की जगह रासायनिक खादों ने ले ली है. जिसके परिणामस्वरूप  भूमि की उरवरा शक्ति तथा उसमें पाये जाने वाले अनेकों जीव, जंतु व सूक्ष्म जीवों में भारी कमि पाये जाने लगी है तथा भूमि से पैदावार पर असर पड़ने लगा है जो कृषि वैज्ञानिकों एवं किसानों के लिए एक समस्या बनने लगी है. अतः भूमि की गुणवत्ता पुनः प्राप्त करने के लिए जैविक खादों का उपयोग बहुत आवश्यक है.

अनेक फसलों के अवशेष किसान खेतों में ही जला देते हैं. इस क्रिया से उनमें उपस्थित पोषक तत्वों के साथ खेतों में पाये जाने वाले बहुत से लाभकारी जीवाणू एवं कीट भी समाप्त हो जाते हैं और इनका फसल एवं मिट्टी पर प्रतिकूल असर पड़ता है. इनको ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों ने विविध प्रकार की तकनिकीयों का विकास किया है.  इस क्रिया से शाख-सब्जी, कपास, सरसों, धान एवं गन्ना के कार्बनिक अवशेषों को कार्बनिक खाद (कम्पोस्ट) में परिवर्तित किया जा सकता है. कार्बनिक खाद एवं कम्पोस्ट के प्रयोग से पैदावार में वृद्धि होती है, पोषक तत्वों का नुकसान कम होता है एवं खाद पदार्थों की गुणवता बढ़ती है.

कार्बनिक खादः-

कार्बनिक खाद कई प्रकार की होती हैं जैसे गोबर की खाद कम्पोस्ट एवं हरी खाद ये विभिन्न प्रकार की खाद मिट्टी को पोषक तत्व प्रदान करती है एवं कार्बनिक पदार्थ अधिक मात्रा में प्रदान करती हैं. इनके कार्बनिक गुण मिट्टी में पोषक तत्वों को बांध कर भी रखते हैं. अतः पोषक तत्वों की घुलन शिलता या वाष्पीकरण की क्रिया से उन्हें होने वाले नुकसान से बचाते हैं.

कम्पोस्ट बनाने की पिट या गड्डा विधि :-

सर्व प्रथम किसानों को पानी के स्रोत एवं पशु बाड़े के पास बनाना चाहिए. गड्ढा जमीन की सतह से ऊपर होना चाहिए, जिससे बाहरी पानी गड्ढ़े के अंदर न आ सके. इसके अलावा गड्ढ़े के ऊपर तीन या खपरेल या एस्बेस्टस की छत का निर्माण करना चाहिए. छत से दो फायदे होते हैं- पहला वर्षा का पानी नहीं गिरता और दूसरा चील, कौए एवं अन्य पक्षी कोई भी अवांछितः पर्दाथ जैसे मरे चूहे, छिपकली एवं हड्डियों इत्यादि नहीं फेंक सकते तथा पक्षियों की बीट (मल) उसके ऊपर नहीं गिरता जिससे खरपतवार नहीं उग पाते. गड्ढ़े पक्के बनाने से पानी एवं पोषक तत्वों का जमीन के अंदर रिसाव होता है.

गड्ढ़े की गहराई 10 मीटर, चौड़ाई 20 मीटर तथा लम्बाई कम से कम 80 मीटर होनी चाहिए. जब भी गड्ढ़ा भरना हो उसे 24 घंटे में सम्पूर्ण कर देना चाहिए. गड्ढ़े को दो तरीकों से भरा जा सकता है.

(क) परत दर परत - इसमें सबसे पहले धान के पुआल या सूखी पत्तियों की 3-4 परत फैलाई जाती है. फिर इसमें गोबर फार्म यार्ड मेन्योर कुक्कुट बीट एवं पूसा कम्पोस्ट कल्चर (टीका) पुरान सड़ा गला खाद उर्वरक मिट्टी का घोल बना कर एक समान तरीक से छिड़काव किया जाता है. इस प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है जब तक गड्डा पूरा न भर जाये.

(ख) मिश्रण विधि - इस विधि में फसल के अवशेष, गोबर या कुक्कुट बीट, पुराना कम्पोस्ट एवं उर्वरक मृदा का अनुपात 8:1:0:5:0:5 (क्रमानुसार) रखा जाता है. सूखे पुआल के लिए कम से कम 90 प्रतिशत नमी रखनी चाहिए, पानी की मात्रा अधिक नहीं होनी चाहिए एक मुठ्ठी में मिश्रण को दबा कर से बूँद-बूँद पानी गिरना चाहिए. सारे मिश्रण को गड्ढ़े में पूसा कम्पोस्ट कल्चर (टीका) के साथ मिला कर गलने के लिए छोड़ देना चाहिए. अधिक गर्मि या सर्दि होने पर सबसे उपर एक हल्की परत मिट्टी की डालनी चाहिए. इससे नमि की मात्रा कम नहीं होती है.

15 दिनां के अंतराल पश्चात, गड्ढ़े के अन्दर पलटाई करनी चाहिए और इसी तरह अगले 15 दिनों के अन्तराल पर तीन पलटाईयाँ जरूरी होती है धान का पुआल 90 दिनों में तथा हरी सब्जियों के अवशेष 45 दिनों में पूर्णतया विघटित हो जाते है और उत्तम गुणवत्तायुक्त कम्पोस्ट तैयार हो जाती है. तैयार खाद गहरी भूरी, भुरभुरी एवं बदबू रहित होती है.

कम्पोस्ट बनाने की ढेर विधि :-

फसल अवशेष को ढ़ेर विधि द्वारा भी खाद में परिवर्तित किया जा सकता है. ढ़ेर की बुनियाद 20 मीटर के लगभग 15 मीटर ऊचाई तथा 20 मीटर लम्बाई रखी जाती है. ढ़ेर को खुले में बनाया जाता है. ढ़ेर का शीर्ष 05 मीटर सकीर्ण (एक छोटी पहाड़ी की तरह) रखा जाता है. ढेर की पलटाई करने के बाद इसके रिक्त स्थान पर एक नया ढ़ेर बना दिया जाता है.  इससे समय-समय पर कई ढ़ेर तैयार हो जाते हैं किन्तु इसके लिए अधिक भूमि की जरूरत होती है. इसके आस पास मिट्टी की एक ऊंची मेढ़ बनानी चाहिए. जिससे पोषक तत्व एवं पानी बह कर बाहर ना जा सके.

कम्पोस्ट बनाने की विहरो/ लम्बा ढ़ेर विधि -

बड़े पैमाने पर खाद बनाने के लिए विठरों लम्बे ढ़ेर विधि का प्रयोग किया जाता है लेकिन ये कृषि के अनुपयुक्त भूमि पर तैयार करना चाहिए, इस विधि में 20 मीटर आधार , 1.5 मीटर उपरी सतह तथा 10 मीटर ऊंची समतुल्य चतुर्भूजाकार लम्बा ढ़ेर बनाते हैं. इसमें मिश्रण को यांत्रिक लोडर कि सहायता से उचित आकार दिया जाता है और जब भी पलटाई करनी होती है कम्पोस्ट टर्नर कम मिक्सर यंत्र का प्रयोग किया जाता है. यह ढ़ेर को उलट-पलट कर देता है. छोटे और मध्यम श्रेणी के किसान भाई गड्ढ़े विधि को सरलता से अपना सकते हैं. और प्रगतिशील किसान एवं समुदाय गांव इत्यादि यंत्रीकृत खाद विधि अपना सकते हैं.

किसान ऊपर चर्चित की गई विधि को अपनांए किंतु पलटाई अति आवश्यक है. इससे सड़ा गला, आधा सड़ा गला एवं न सड़ने वाला जैविक पदार्थ इत्यादि सभी ऊपर नीचे हो कर एक समान मिल जाता है. और हर पलटाई के बाद उसमें उपस्थित जीवाणू सक्रिय होकर पुनः कार्य करने लगते हैं.

कम्पोस्ट के लाभ :-

कम्पोस्ट के उपयोग से मिट्टी अपने अन्दर अधिक मात्रा में कार्बनिक कार्बन का संगठन करती है जिसके बहूत लाभकारी प्रभाव होते हैं.

निरंतर कम्पोस्ट का प्रयोग करने से मिट्टी के अपने अन्दर हवा और पानी समाये रखने की क्षमता एवं मात्रा बढ़ जाती है.

भूमि नरम हो जाती है पौधो की जड़े गहराई तक जाती है, जुताई आसानी से हो जाती है.

मिट्टी का पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है, पोषक तत्वों से समृद्ध खाद के प्रयोग से मिट्टी के स्वास्थ्य में काफी सुधार को जाती है.

खाद के प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों की बचत हो जाती है जिससे खेती की लागत में बचत होती है.

खाद की गुणवता को बढ़ाने के लिए अन्य खनिजों और सूक्ष्म जीवाणुओं (नाईट्रोजन स्थिर करने वाले,फास्फोरस घुलनशील बेक्टीरिया और पोटाश घुलनशील जीवाणू) के साथ समृद्ध बनाया जा सकता है.

कम्पोस्ट की एक विशेषता होती है कि वह अपने वनज से चार गुना पानी सोख लेती है. निरंतर कम्पोस्ट का प्रयोग करने से मृद्धा के जल धारण शक्ति बढ़ जाती है.

कम्पोस्ट बनाना एवं बेचना एक सफल व्यवसाय भी है और ये देश के युवाओं की बेरोजगारी दूर करने में सहाक होगा. अच्छी गुणवता वाला कम्पोस्ट काला भूरा रंग का होना चाहिए.

इसमें कोई दुर्गन्ध नहीं होनी चाहिए, मिट्टी या हूयमरा जैसी गंध होती है. पी.एच. या अम्लता 6.5 से 7.5 सबसे बढ़िया होती है, कार्बन नत्रजन का अनुपात 20.1 या कम नमी 15.0 से 25 प्रतिशत तक होनी चहिए.

इसके विपरीत खराब गुणवता वाला कम्पोस्ट विभिन्न प्रकार के रंग का बदबूदार होता है, पी.एच. या अम्लता 6 से कम एवं 8.0 से ज्यादा होती है, कार्बन, नत्रजन का अनुपात 20.1 से ज्यादा एवं नमी 30 प्रतिशत से ज्यादा होती है.

लेखकः-

हरीश कुमार रछोयॉ मुकेश शर्मा एवं डॉं.वी.के.सैनी

वैज्ञानिक शस्य विज्ञानपोद्य संरक्षण एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक

कृषि विज्ञान केंन्द्र,सरदारशहर ,चूरू (राजस्थान)

Email: hrish.rachhoya@gmail.com

Mobile No: 9636442846

English Summary: The option of toxic chemicals, methods and precautions for making the best quality compost Published on: 16 October 2018, 04:22 IST

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