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झूम कृषि में फसल नहीं खेत बदलते हैं किसान, जानें भारत में कहां होती है ऐसी खेती

भारत के कई हिस्सें ऐसे हैं जहां के किसान अभी भी झूम खेती करते हैं. लेकिन आप में से शायद बहुत कम लोगों ने झूम खेती का नाम पहले सुना होगा. तो चलिए इस लेख में झूम खेती से जुड़ी हर एक जानकारी आपको देते हैं.

अनामिका प्रीतम
अनामिका प्रीतम
Jhum agriculture in India
Jhum agriculture in India

जैसा की भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां की लगभग आधी आबादी इसी पर निर्भर है. इसलिए भारत में कृषि क्षेत्र में लगातार प्रयोग किए जाते रहे हैं. पुराने समय में कृषि यानी खेती-बाड़ी कई अलग-अलग तरीकों व पद्धतियों को अपनाकर की जाती थी.  उनमें से आज भी कई ऐसी पद्धतियां हैं जिसे किसानों द्वारा कृषि में अपनाया जाता है. इन्हीं में से एक झूम कृषि भी है. झूम कृषि पुरानी कृषि का एक प्रकार है. कृषि के इसी प्रकार व तरीके के बारे में हम आज इस लेख में जानेंगे.

झूम खेती आदिवासियों के लिए वरदान
झूम खेती आदिवासियों के लिए वरदान

झूम कृषि क्या है? (What is Jhum farming?)

जब मानव आदिम अवस्था में था...उसकी आबादी उतनी नहीं थी और प्रकृति पर इतना ज्यादा भार नहीं था तब खेती के इस तरीके को अपनाया जाता था. इसमें जंगल के छोटे-छोटे जगह को हटा कर या जलाकर उपजाऊ भूमि बनाया जाता हैजंगल जलाने से मिट्टी में पोटाश जुड़ जाता हैजो बदले में मिट्टी की उर्वरता और पोषक तत्व को बढ़ाता है. इसके बाद इसी खाली जगह पर तब तक खेती की जाती है जब तक मिट्टी की उर्वरता रहती हैजब उर्वरता खत्म हो जाती तो जगह बदल दिया जाता है. यानी इस कृषि की प्रक्रिया को अपनाने पर बार-बार खेत बदला जाता है.

झूम खेती को आसान भाषा में समझें

अगर दूसरे भाषा में समझें तो खेती के इस तरीके में जंगलों के वृक्षों और वनस्पतियों को काटकरजलाकर खेत व क्‍यारियां बनाई जाती हैं और साफ की गई भूमि को पुराने कृषि उपकरणों (हाथ के औजारों) की सहायता से जुताई करके फसल व बीज बोई जाती है. ये फसलें पूर्ण रूप से प्रकृति पर निर्भर होती हैं. इसमें किसी भी तरीके का कोई भी खाद इस्तेमाल नहीं किया जाता है. इससे फसलों से उत्पादन बेहद कम होता है. इस भूमि को 2-3 साल बाद जब जमीन की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है तब इसे छोड़ दिया जाता हैइसके बाद ऐसी भूमि पर फिर से धीरे-धीरे घास और अवांछित वनस्पतियां उग जाती हैं और फिर से जंगल बन जाता है.

झूम खेती आदिवासियों के लिए वरदान
झूम खेती आदिवासियों के लिए वरदान

इसके पश्चात् किसान फिर से जंगल के किसी दूसरे स्‍थान को साफ करके उसपर भी कुछ सालों तक खेती करते हैं और फिर कुछ सालों बाद भूमि से उर्वरता जाने पर छोड़ देते हैं. इसलिए इस प्रकार की खेती को स्थानांतरण कृषि (shifting cultivation) भी कहते हैं.  इसमें थोड़े-थोड़े समय के अंतराल पर खेत बदलते रहते हैं.

ये भी पढ़ें: झूम कृषि प्रणाली छोड़ किसान अपना रहे इंटीग्रेटेड फार्मिंग, हो रही लाखों रुपए की कमाई

भारत में कहां होती है झूम कृषि?

झूम खेती को लेकर बहस और चर्चा हमेशा से होती आई है. लेकिन फिर भी देश के कई कोनों में आज भी झूम खेती की जाती है. अभी भी उत्तर पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों जैसे उड़ीसामध्य प्रदेशआंध्र प्रदेश और केरल के कुछ हिस्सो में छोटे पैमाने पर की जाती है.

इसके साथ ही मेघालय,नागालैंड,अरूणाचल प्रदेश जैसे पूर्वोत्‍तरी राज्‍यों व आंशिक रूप से छत्तीसगढ़ के बस्तर के अबूझमाड़ क्षेत्र में की जाती है. यहां के "आदिवासी समूहों" में आज भी झूम खेती प्रचलित है. भारत के अलावा स्थानांतरण कृषि को श्रीलंका में चेनाहिन्देसिया में लदांग और रोडेशिया में मिल्पा के नाम से जानते हैं.

What is Jhum farming
What is Jhum farming

झूम कृषि के अनेकों नाम

फसल स्थानांतरण से इस तरीके को असम में झूम खेतीओडिशा और आंध्र प्रदेश में पोडूमध्य प्रदेश में बेवर और केरल में पोनम के नाम से जाना जाता है. इस खेती को अल्पीकरण भी कहा जाता है. चूंकि झूम खेती में जगलों में आग लगाकर खेत बनाई जाती है इसलिए इस खेती की प्रक्रिया को बर्न खेती (burn farming) भी कहा जाता हैं.

झूम खेती आदिवासियों के लिए वरदान

जैसा की जानते हैं कि आदिवासी लोग जंगलों में रहते हैं. इसलिए इस खेती के तरीके को सबसे ज्यादा आदिवासियों द्वारा ही अपनाया जाता है. आदिवासी समुदाय के लोग जंगलों को साफ करके खेती करते है और कुछ सालों बाद उस जगह को छोड़कर वहां से दूसरी जगह चले जाते हैफिर वहां पर भी यही प्रक्रिया दोहराते हैं.

झूम कृषि क्या है?
झूम कृषि क्या है?

झूम खेती को लेकर चर्चा और बहस क्यों?

झूम खेती को लेकर हमेशा से दावा किया जाता रहा है कि झूम के कारण जंगलों के बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान हुआ है. यहीं वजह है कि खेती के इस तरीके को निरुत्साहित कर आधुनिक खेती को बढावा दिया जाने लगा और धीरे-धीरे अब खेती का ये तरीका खत्म होने लगा है. जैसा की आज भी देश के कई जगहों के आदिवासी समुदाय द्वारा झूम खेती की जाती है. क्योंकि आदिवासियों के लिए अपना पेट पालना एक बड़ी चुनौती है. उनके पास कृषि के लिए इतनी तकनीक और प्रशिक्षण भी नहीं है इसलिए वो सिर्फ अपना पेट पालने के लिए मजबूरन आज भी झूम खेती पर निर्भर हैं. 

English Summary: Jhum agriculture in india: Farmers do not change crops in Jhum agriculture, know where such farming takes place in India Published on: 12 October 2022, 05:52 IST

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