भारत कृषि प्रधान देश ही नहीं कृषि वैज्ञानिक प्रधान देश भी है.सर्वजन सुखाय सर्वजन हिताय के लिए निरंतर चिंतन करने वाला अर्थात वैज्ञानिक, यह मनुष्य के चित में कल्याणकारी विचारों का रोपण करते हैं. इनसे मिला ज्ञान हमारे मन को संतुष्ट करता है. कृषि से मिला धान्य हमारी तनु को पुष्ट करता है, एक ज्ञानदाता होता है दूसरा अन्नदाता. जितना महत्व जन्मदाता और जीवन दाता का होता है उतना ही महत्व ज्ञानदाता और अन्नदाता का होता है.
किसी भी राष्ट्र की समृद्धि का आकलन उस राष्ट्र के नागरिकों के चित्त व वित्त को देखकर किया जाता है. शताब्दियों से कृषि वैज्ञानिक और कृषि भारत की मूल आत्मा है, यदि यह कहूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.
इसलिए पहले सत्ता और शासन वैज्ञानिक और कृषकों को आदर करते थे. मन उन पर आश्रित रहते थे, वे इनके लिए नमन के भाव से भरे रहते थे किंतु आज के इस भौतिकवादी युग में वैज्ञानिक और कृषक जो आश्रय दाता थे उनको सत्ता और शासन का आश्रय लेना पड़ रहा है.
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यदि हम चाहते हैं कि हम विश्व के श्रेष्ठतम राष्ट्र बनें तो हमें समय रहते जय वैज्ञानिक - जय कृषि के कल्याणकारी मंत्र को स्वर देना होगा.
कोरोना काल में यदि आज हम और हमारी संतान अकाल या दुर्भिक्ष का शिकार नहीं हुए हैं. इसके पीछे हमारे यही किसान हैं, जो ठंड गर्मी बरसात में अपने स्वास्थ्य सुविधा और सुरक्षा की परवाह किए बिना सीमित साधनों और प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद भी ध्यान लगाकर कृषि कर्म में लगे रहे.
कृषि मात्र कर्म नहीं, यह प्रकृति के मर्म और धर्म, मनुष्य की समझ व सभ्यता के विकास का विज्ञान है. सभ्यता के प्रारंभिक दिनों में मनुष्य से लेकर सभी जीव जंतु अपनी प्रकृति और शारीरिक क्षमता के अनुसार एक दूसरे का शिकार करके अपनी उदर पूर्ति करते थे. यह पशुता की प्राथमिक अवस्था थी किंतु प्रकृति के निरंतर सानिध्य के प्रभावों में मानो जिसे ईश्वर की श्रेष्ठ रचना माना जाता है, वह पशुता से मनुष्यता की ओर अग्रसर होने लगा और उसने प्रकृति से लड़कर नहीं जुड़ कर अपने जीवित रहने की दिशा में प्रयास करने आरंभ कर दिए. इसलिए कृषि कर्म मनुष्य की, वह परिपक्व अवस्था है जो उसे पशु से पशुपति में रूपांतरित करती है. कृषि एक ऐसी साधना है जो हमें अस्तित्व से सह अस्तित्व की ओर ले जाती है.
सृष्टि के सारे ग्रह पुलिंग है. किंतु एकमात्र पृथ्वी ही है जिसे स्त्रीलिंग कहा गया है क्योंकि पृथ्वी पर जीवन है, अर्थात वह स्त्री होती है जो हमारे जन्म जीवन का कारण होती है.
लेखक
रबीन्द्रनाथ चौबे, कृषि मीडिया, बलिया, उत्तरप्रदेश
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