देशभर में एक के बाद एक हो रहे किसान आंदोलन से एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि अगर अन्नदाता ही खुशहाल नहीं तो क्या देश खुशहाल होगा ?
नाबार्ड यानी राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक ने जनवरी से जून 2017 के बीच एक सर्वे किया, इस सर्वे के मुताबिक देश के 87 फिसदी किसानों के पास 2 हेक्टेयर यानी 2 एकड़ ज़मीन है. ( NSS0 ) यानी नैशनल सैंपल सर्वे ऑफिस ने साल 2012 - 13 में ऐसा ही एक सर्वे किया और इस सर्वे के मुताबिक 86.5 प्रतिशत किसानों के पास 2 हेक्टेयर या इससे कम ज़मीन थी.
किसानों के आंदोलन का जायज़ होना वैचारिक असंतुलन ही नहीं अपितु सामाजिक और आर्थिक असंतुलन है. किसान आंदोलन की अहम बातें :
1. बिजली और डीज़ल में रियायत.
2. किसानों को सामाजिक सुरक्षा.
3. न्यूनतम समर्थन मूल्य को वैधानिक दर्जा.
4. स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू करना.
- इस आंदोलन से जुड़ी अहम मांगें :-
1. कृषि को राज्यों की सूची के बजाय समवर्ती सूची में लाया जाए ताकि केंद्र व राज्य सरकार दोनों किसानों की मदद पूरे समन्वय से कर सके.
2. किसानों को बेहतर क्वालिटी के बीज कम से कम दाम पर मुहैया हो.
3. किसानों को कृषि की जानकारी व उपज संबंधी जागरुकता, क्योंकि कृषि संबंधी जानकारी का किसान के पास अभाव नहीं होना चाहिए.
4. अतिरिक्त व बेकार भूमि को भूमिहिन किसानों में बांटा जाए और कॉपोरेट सेक्टर के लिए गैर- कृषि कार्यों के लेकर मुख्य कृषि भूमि और वनों का डायवर्जन न किया जाए.
5. फसल का बर्बाद होना किसानों की एक प्रमुख और विकट समस्या है, इसलिए किसान सामाजिक सुरक्षा की मांग कर रहे हैं जिसके तहत प्राकृतिक आपदा के आने पर किसानों को मदद मिल सके.
6. छोटे व मझोले किसानों के लिए भी बड़ी सिफारिश की है. सरकार खेती के लिए कर्ज की व्यवस्था करे, ताकि गरीब और जरुरतमंद किसानों को दिक्कत न हो.
7. एक मांग किसान की तरफ से साफ़ - साफ़ यह की गई है कि किसानों के कर्ज की ब्याज दर 4 प्रतिशत तक लाई जाए.
- इस किसान आंदोलन ने निश्चित तौर पर वर्तमान भारतीय कृषि स्थिति और किसानों के जीवन की त्रासदी बंया की है.
गिरीश, कृषि जागरण
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