किसान अपने खेत में फसल उगाने में कड़ी मेहनत करता है लेकिन जब किसान को किसी समस्या का सामना करना पड़ता है तो उस समय किसानों को बड़ी परेशानी होती है. इस समय एक ऐसी ही समस्या सामने आई है जिससे किसान के साथ आम आदमी भी परेशान नजर आ रहा है. लेकिन आम आदमी से कहीं ज्यादा परेशान किसान है। यह समस्या है फसल के बचे हुए अवशेषों को जलाने की। जिससे कुछ लोगो सांस लेने में परेशानी हो रही है। यह मसला पिछले काफी समय से चला आ रहा है। सरकार भी इस परेशानी से अच्छी तरह वाकिफ है, लेकिन अभी तक इस समस्या का सटीक समाधान नहीं मिल पाया है, फसल अवशेष जलाने की समस्या सिर्फ एक या दो राज्यों में नही बल्कि देश के कई राज्यों में है सभी जानते हैं कि देश के अलग-अलग राज्यों में कई तरह की फसलें उगाई जाती हैं, लेकिन कुछ फसलों की कटाई के बाद उनके अवशेष को किसान जला देते हैं।
इन फसलों में मुख्य रूप से गन्ना, धान, गेहूं, कपास और दलहन आदि हैं। फसल के अवशेष को जलाने की जो समस्या है वो पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश सहित देश के लगभग सभी प्रदेशों में है। किसानों द्वारा फसल के अवशेषों को जलाने पर पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है इससे वातावरण प्रदूषित होता है। अब जब पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पर मंथन कर रहा है ऐसे में इस समस्या पर विचार किया जाना आवश्यक है. अब यह मामला सुप्रीमकोर्ट में लंबित है हालांकि इस समस्या के लिए कई बार किसानों को दोषी ठहराया गया है। लेकिन इसके लिए सिर्फ किसानों को दोषी ठहराना उचित नहीं होगा, न ही यह इसका समाधान है। क्योंकि किसान अभी भी इन समस्याओं के विषय में पूरी तरह से जागरूक नहीं है. यदि किसानों को जागरूक किया जाए तो इस समस्या का समाधान किसानों के पास ही है।
इन फसल अवशेषों को जलाने के बजाए किसान उपयोग में ला सकते हैं या फिर फसल अवशेषों को इंधन के ब्लाक बनाकर बोयलर्स को बेंचकर अतिरिक्त आय अर्जित की जा सकती है किसान धान के अवशेष को जलाने के बजाए पशुओं के चारे के काम में ला सकते हैं, गेहूं के बचे हुए अवशेषों को खेत में ही जुतवाकर उसको खाद के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं इसके अलावा चारे में इस्तेमाल किया जा सकता है। फिर गन्ने की सूखी हुई पत्तियों को खेत में ही छोड़कर उसको मल्चिंग के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे खेत में खरपतवार पर भी नियंत्रण किया जा सकता है। फसलों के अवशेषों का भी कम्पोस्ट बनाकर इस्तेमाल किया जा सकता है। इस समस्या से निपटने के लिए कई निजी कृषि कंपनिया भी काम कर रही हैं। यह निजी कंपनिया किसानों को ऐसे कृषि उपकरण और कृषि इनपुट्स उपलब्ध करा रही हैं जिनसे बचे हुए अवशेष को कम्पोस्ट बनाकर इस्तेमाल किया जा सकता है। कृषि यंत्रों के माध्यम से बचे हुए अवशेषों को खेत में ही काटकर उसको मिटटी में मिला देने से मिटटी में जीवांश की मात्रा बढती है। ठीक उसी प्रकार कुछ निजी कंपनियां एवं राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र गाजियाबाद द्वारा तैयार सूक्ष्म जीवों के इस्तेमाल से अवशेष को खेत में ही सडाकर कम्पोस्ट बनाया जा सकता है। इस समस्या से निजात पाने का यही एकमात्र तरीका है कि किसानों को इसके समाधान के विषय में जागरूक किया जाए।
यदि किसानों को इसके विषय में जागरूक नहीं किया जाता है तो यह समस्या और बढ़ेगी. फसल के अवशेषों को जलाने से प्रदूषण काफी बढ़ रहा है इस परिस्थिति को देखते हुए एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने किसानों द्वारा फसल अवशेषों को जलाने पर पेनल्टी भी लगा रखी है। इससे स्थिति थोडा नियंत्रण में है। इसको पूरी तरह से नियंत्रण में लाने के लिए सरकार को कुछ और वैकल्पिक समाधान ढूँढने होंगे।
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