छत्तीसगढ़ प्रचुर संभावनाओं वाला प्रदेश है. यहां की अनुकूल जलवायु और भौगोलिक स्थितियाँ गांजा-भांग (Cannabis sativa) की खेती के लिए देश में सबसे ज्यादा उपयुक्त हैं. यहां यह समझना भी जरूरी है कि देवाधिदेव महादेव की बूटी के नाम से प्राचीन काल से विख्यात विख्यात वाले गांजा और भांग दरअसल एक ही प्रजाति के पौधे हैं. इन दोनों में उपयोग किए जाने वाले पौधे के भाग तथा उपयोग विधि का अंतर है. विशेषकर दंडकारण्य का पठार तथा बस्तर क्षेत्र, अमरकंटक और जशपुर-अंबिकापुर सहित छत्तीसगढ़ के अधिकांश भागों में इसकी खेती बिना किसी विशेष प्रयास के सफलतापूर्वक की जा सकती है.
भांग न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके औद्योगिक और औषधीय उपयोग भी इसे एक महत्वपूर्ण बहुउपयोगी पौधा बनाते हैं. पुलिस की तमाम जी तोड़ कोशिशों के बावजूद बस्तर से लगे उड़ीसा के सीमावर्ती क्षेत्रों से पिछले काफी वर्षों से इसकी अवैध तस्करी हो रही है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इस पौधे की खेती इस क्षेत्र में भली-भांति हो सकती है.
भांग के औषधीय एवं औद्योगिक उपयोग
भांग का पौधे के साथ यह विडंबना जुड़ी हुई है कि यह पौधा मानव जाति के लिए अति उपयोगी होने के बावजूद विश्व में उच्चतम निंदा के साथ ही भारी मांग वाले पौधों में से एक है. इसके पत्ते, बीज, तना, फूल, और जड़ सभी अत्यंत उपयोगी हैं. यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि धरती पर इसके जोड़ का दूसरा पौधा मिलना मुश्किल है.
प्राचीन आयुर्वेद में यह 'विजया' के नाम से बहुत ही प्रभावी व स्थापित औषधि मानी गई है. दर्जनों आयुर्वेदिक उत्पादों का यह प्रमुख प्रभावी घटक है. इसके कुछ प्रमुख औषधीय तत्वों में कैनाबीडियोल (CBD), टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल (THC), और टेरपेनॉइड्स शामिल हैं, जो विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार में सहायक होते हैं. यह दर्द निवारक, सूजनरोधी, और मानसिक स्वास्थ्य सुधारने तथा पाचन तंत्र को ठीक करने वाले विविध महत्वपूर्ण गुणों के लिए जाना जाता है.
औद्योगिक क्षेत्र में, भांग के तने के रेशों का उपयोग कपड़ा, कागज, निर्माण सामग्री और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के निर्माण में किया जाता है. इसके बीजों का तेल स्वास्थ्यवर्धक होता है और इसका उपयोगिता की अंतहीन श्रृंखला है. यह प्रचुर मात्रा में खाद्य पदार्थों और सौंदर्य प्रसाधनों में होता है. भांग के बीजों की चटनी हिमाचल की एक प्रसिद्ध स्वादिष्ट डिश है, और वहां की पहचान बन गई है.
बिना सिंचाई की फसल
भांग की खेती में बहुत अधिक मेहनत या लागत नहीं लगती. यह एक मौसम वाली फसल है, जिसे वर्षा ऋतु में आसानी से उगाया जा सकता है. यानी कि इसमें सिंचाई की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती और अगर सिंचाई की सुविधा हो जाए, तो उत्पादन और भी बेहतर हो सकता है. यह फसल खरपतवार और कीटों से कम प्रभावित होती है, जिससे किसानों को न्यूनतम रखरखाव में अधिक उत्पादन मिलता है. यह पौधा बंजर और अनुपजाऊ भूमि को भी उपजाऊ बना सकता है, जिससे क्षेत्र की कृषि उत्पादन क्षमता में वृद्धि हो सकती है.
आर्थिक लाभ और तस्करी पर नियंत्रण
छत्तीसगढ़ की उड़ीसा के साथ सबसे लंबी सीमा (लगभग 1,200 किमी) होने के कारण यह राज्य गांजा भांग की तस्करी का प्रमुख केंद्र बन गया है. उड़ीसा में भांग प्राकृतिक रूप से खरपतवार के रूप में उगती रही है, और इसका उपयोग तस्करी में किया जाता है. छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर अवैध रूप से कारों, ट्रकों व विभिन्न माध्यमों से गांजे की तस्करी की जाती है, जिसे यथासंभव पुलिस के द्वारा रोकने का प्रयास भी किया जाता रहा है. कुल मिलाकर राज्य के लिए यह एक गंभीर चुनौती बन गया है.
भांग की खेती को नियंत्रित और वैध रूप से करवाने से इस अवैध तस्करी पर प्रभावी नियंत्रण लगाया जा सकता है. इसके साथ ही राज्य सरकार को भी भारी राजस्व प्राप्त होगा. इसके निर्यात से विदेशी मुद्रा भंडार में भी वृद्धि होगी. प्रदेश के किसानों की आय में वृद्धि होगी. इसके रेशे से वस्त्र निर्माण के कुटीर उद्योगों से नवीन रोजगार का भी सृजन होगा.
उदाहरण के लिए, अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में भांग की वैध खेती से वहां के किसानों और सरकारों को बड़े आर्थिक लाभ मिल रहे हैं.
हिमाचल प्रदेश ने इसी मानसून सत्र में 6 सितंबर को सर्वसम्मति से इसकी खेती करने हेतु एक प्रस्ताव पारित किया है. इसके लिए विधिवत विधायिका लाई जा रही है, जो एक सकारात्मक पहल है.
इसी तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी भांग की नियंत्रित खेती शुरू करने से हजारों किसानों को आर्थिक संबल मिलेगा. यह न केवल उनकी आय में अपेक्षित वृद्धि करेगा, बल्कि उनके लिए कृषि में नए अवसरों के दरवाजे भी खोलेगा. छत्तीसगढ़ सरकार भी इस एनडीपीएस अधिनियम 1985 की धारा 10 के तहत राज्य सरकार को दी गई शक्तियों के अंतर्गत नियंत्रित वातावरण में औषधीय और वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए भांग की खेती, उत्पादन, निर्माण, कब्जा, परिवहन, आयात, निर्यात और बिक्री हेतु अधिनियम लाकर सकारात्मक पहल कर सकती है.
इस संदर्भ में एनडीपीएस अधिनियम 1985 की धारा 14 के तहत, केवल फाइबर या बीज प्राप्त करने या बागवानी और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भांग की खेती की सशर्त अनुमति देने का विधिक प्रावधान भी है.
तकनीकी बिंदु और वैश्विक महत्व:
भांग की खेती के लिए सही विधियों और तकनीकों का उपयोग सरलता से किया जा सकता है. इसके लिए जल निकास वाली भूमि को उपयुक्त माना जाता है, और इस मामले में छत्तीसगढ़ भाग्यशाली है. इसमें फसल लगाने और कटाई के समय का ध्यान रखना चाहिए.
भांग का वैश्विक बाजार लगातार बढ़ रहा है, और इसके उत्पादों की मांग उच्च स्तर पर बनी हुई है. 2022 में वैश्विक भांग बाजार का मूल्यांकन लगभग 17.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, और यह 2030 तक 59.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है.
किसानों द्वारा लंबे समय से इसे कानूनी दर्जा देने की मांग की जाती रही है. इस मामले में सर्वप्रथम हिमाचल प्रदेश ने बाजी मारते हुए सबसे पहले भांग की खेती को वैध बनाने हेतु आवश्यक कानूनी पहल की है और इस पर प्रभावी नियंत्रण हेतु किसानों और उद्योगों से चर्चा करके नियमावली भी बनाई है. तदनुसार ड्रग्स और नारकोटिक्स अधिनियम में भी आवश्यक सुधार किए जा रहे हैं.
अत: यह सही समय है कि छत्तीसगढ़ सरकार भांग की खेती को कानूनी दर्जा देकर राज्य के किसानों के लिए एक नया अवसर खोले. सरकारी नियंत्रण में इसकी खेती न केवल तस्करी पर रोक लगाएगी, बल्कि राज्य को आर्थिक रूप से सशक्त करेगी और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में छत्तीसगढ़ को एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाएगी. इस दिशा में उठाए गए कदम न केवल राज्य के किसानों के लिए लाभदायक होंगे, बल्कि राज्य के समग्र विकास में भी योगदान देंगे.
डॉ. राजाराम त्रिपाठी
सदस्य: मेडिकल प्लांट बोर्ड, आयुष मंत्रालय भारत सरकार
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