Sarson Mandi Bhav: देशभर की मंडियों में जल्द बोई गई रबी फसलों की आवक शुरू हो गई है. इसी बीच सरसों ने मंडियों में दस्तक दे दी है. हालांकि, सरसों की खेती करने वाले किसानों के लिए बुरी खबर है. दरअसल, इस बार सरसों की पैदावार ज्यादा होने का अनुमान है. जिसके चलते देशभर की मंडियों में कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे चल रही हैं. कम कीमत मिलने के चलते किसान निराश नजर आ रहे हैं. किसानों का कहना है की उन्हें घाटा हो रहा है. इस बार सरसों का उत्पादन 14 मिलियन टन (एमटी) तक पहुंच सकता है. वहीं, व्यापारियों का कहना है की सस्ते खाद्य तेलों के आयात के चलते देश में सरसों तेल की खपत कम हुई है. जिस वजह से तिलहन फसलों की कीमतों में सुस्ती देखी जा रही है.
सरसों की बुवाई का रकबा बढ़ा
बिजनेसलाइन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भरतपुर स्थित रेपसीड-सरसों अनुसंधान केंद्र के निदेशक पीके राय ने कहा कि देशभर की मंडियों में सरसों की आवक शुरू हो गई है. शुरुआती रुझान इस ओर इशारा करते हैं की इस साल सरसों का रिकॉर्ड उत्पादन दर्ज किया जाएगा. सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो 2022-23 में सरसों का उत्पादन 12.64 मिलियन टन था और सरकार ने इस वर्ष के लिए लक्ष्य 13.1 मिलियन टन निर्धारित किया है. जबकि, इस बार सरसों की बुवाई 100.44 लाख हेक्टेयर (एलएच) में हुई है. जो पिछले साल 97.97 लाख हेक्टेयर था.
रिकॉर्ड उत्पादन होने का अनुमान
राय ने आगे कहा, "मौजूदा फसल स्थितियों के आधार पर, यह माना जा सकता है कि फसल का आकार 14 मिलियन टन से कम नहीं होगा." उन्होंने इस वृद्धि के लिए विदर्भ और मराठवाड़ा के साथ-साथ झारखंड, असम, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड क्षेत्रों में सरसों के बढ़े हुए रकबे को जिम्मेदार ठहराया है.
सरसों का ताजा भाव (Sarso Bhav)
केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय के एगमार्कनेट पोर्टल के अनुसार, 18-25 फरवरी के दौरान देश भर की मंडियों (कृषि बाजार यार्ड) में पहुंची 1 लीटर सरसों में से 40,000 टन सबसे बड़े उत्पादक राजस्थान से आई है. इसके बाद मध्य प्रदेश में 23,000 टन और 19,000 टन सरसों मंडियों में पहुंची है. वहीं, अगर सरसों की औसतन कीमत की बात करें तो राजस्थान में सरसों का भाव 4,820 रुपये/क्विंटल, मध्य प्रदेश में 4,520 रुपये/क्विंटल, उत्तर प्रदेश में 4,800 रुपये/क्विंटल, पश्चिम बंगाल में 5,000 रुपये/क्विंटल और गुजरात में 4,858 रुपये/क्विंटल चल रहा है. जो इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,650 रुपये/क्विंटल से कम है.
किसानों की सरकार से मांग
किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि किसानों को सरसों बेचने में 1,200 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान हो रहा है, जबकि एमएसपी पर खरीद के सभी वादे केवल कागजों पर ही नजर आ रहे हैं. जाट ने केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा के एमएसपी पर सरसों खरीदने के निर्देश का जिक्र करते हुए कहा, "क्या नौकरशाह कभी मंत्री के आश्वासन को लागू करेंगे."
कम कीमतों का क्या है कारण?
व्यापारियों और प्रसंस्करणकर्ताओं की मानें तो पिछले वर्ष के उत्पादन का कम से कम 15-20 प्रतिशत बाजार तक नहीं पहुंचा. क्योंकि किसान बेहतर कीमतों की उम्मीद में फसल को रोके हुए थे. उन्होंने सरसों की कम कीमतों के लिए दूसरे देशों से सस्ते खाद्य तेलों के "अनियंत्रित आयात" को जिम्मेदार ठहराया है. जबकि, तेल उद्योग और व्यापार के लिए केंद्रीय संगठन के एक पूर्व निदेशक ने कहा, "ऐसा कोई कारण नहीं है कि सरसों के तेल की खपत नहीं बढ़ाई जा सकती, जब इसका उपयोग देश के उत्तर, पूर्व, उत्तर-पूर्व और पश्चिमी क्षेत्रों में खाद्य प्रयोजनों के लिए किया जाता है." उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को सरसों के एमएसपी को ध्यान में रखते हुए सरसों तेल की दर के आधार पर खाद्य तेलों पर आयात शुल्क तय करना चाहिए.
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