Maize Price: कम आपूर्ति और इथेनॉल उत्पादन के अलावा पशुधन फीड निर्माताओं और स्टार्च विनिर्माण जैसे पारंपरिक उपभोक्ता क्षेत्रों से मांग में बढ़ोतरी के बीच अक्टूबर से मक्के की कीमतों में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. अक्टूबर की शुरुआत में मक्के का मॉडल मूल्य (खरीद दर) न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के स्तर से नीचे लगभग 1,850 रुपये प्रति क्विंटल था, लेकिन वर्तमान में ये 2,309 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास है. बाजार विशेषज्ञों की मानें तो देश भर के बाजारों में मक्के की कीमतें बढ़ी हैं और आगे भी इनके स्थिर रहने की उम्मीद है. 2023-24 फसल सीजन के लिए मक्के का एमएसपी 2,090 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है. जबकि, सभी राज्यों में मक्के का दाम MSP से ऊपर ही चल रहा है.
पशुधन चारा क्षेत्र पर पड़ेगा असर
कर्नाटक पोल्ट्री फार्मर्स एंड ब्रीडर्स एसोसिएशन (केपीएफबीए) के अध्यक्ष नवीन पसुपार्थी ने कहा कि मक्के की कीमत बढ़ने से पशुधन चारा क्षेत्र पर असर पड़ेगा. उन्होंने कहा, "खरीफ की फसल खत्म हो गई है और आवक 25 से 27 प्रतिशत कम है. क्योंकि अनियमित मानसून के कारण फसल प्रभावित हुई, जिसके परिणामस्वरूप कीमतों में वृद्धि हुई है." इसके अलावा पसुपार्थी ने कहा कि व्यापारी भी इस धारणा पर स्टॉक रख रहे हैं कि कीमतें और बढ़ेंगी क्योंकि सरकार ने इथेनॉल उत्पादन के लिए मक्का के उपयोग की अनुमति दी है. उन्होंने कहा, "सीएलएफएमए में हमने सरकार से आयात शुल्क हटाने का किया आग्रह किया है. ताकि पोल्ट्री उद्योग को कुछ हद तक की राहत मिल सके."
क्यों कम हुई मक्के का उत्पादन?
वहीं, कर्नाटक पोल्ट्री फार्मर्स एंड ब्रीडर्स एसोसिएशन के महासचिव एमएसआर प्रसाद ने कहा कि सूखे के कारण, मक्के की पैदावार प्रभावित हुई है. सूखे के चलते इस बार उत्पादन कम हुआ है. जबकि इथेनॉल उत्पादन के चलते भी मक्का की मांग बढ़ी है. इसके अलावा, बाजरा, रागी और चावल जैसे वैकल्पिक अनाज की कीमतों में वृद्धि जैसे कारकों ने भी मूल्य वृद्धि में योगदान दिया है. उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि कीमतें आगे भी स्थिर रहेंगी.
मक्का की बुवाई का रकबा घटा
अक्टूबर, 2023 के अंत में जारी कृषि मंत्रालय के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, खरीफ मक्का का उत्पादन 22.48 मिलियन टन कम होने का अनुमान है, जो पिछले साल के रिकॉर्ड 23.67 मिलियन टन से कम है. बिहार के बेगुसराय के एक ब्रोकर संतोष कुमार शर्मा ने कहा कि इथेनॉल के लिए मक्के के इस्तेमाल से कीमतें स्थिर बनी हुई हैं. फीड मिलें 2,400-2,425 रुपये प्रति क्विंटल पर मक्का खरीद रही हैं और आगे भी कीमतें स्थिर रहने की उम्मीद है, क्योंकि नई फसल अभी लगभग 4 से 5 महीने दूर है. नवीनतम रबी बुआई आंकड़ों के अनुसार, 5 जनवरी 2024 तक मक्के का रकबा 18.76 लाख हेक्टेयर था, जो एक साल पहले की समान अवधि के 18.76 लाख हेक्टेयर से ज्यादा था. यानी वर्ष 2023-24 में मक्के की बुवाई कम हुई है. रबी फसल सीजन के लिए सामान्य मक्का क्षेत्र लगभग 20.45 लाख हेक्टेयर है.
पोल्ट्री एसोसिएशन ने सरकार से की ये मांग
बता दें कि मक्के की बढ़ती कीमत के चलते अखिल भारतीय पोल्ट्री ब्रीडर्स एसोसिएशन ने हाल ही में भविष्य की मांग को पूरा करने के लिए मक्का के शुल्क मुक्त आयात को खोलने के लिए सरकार से संपर्क किया है. वर्तमान में, मक्के पर 50 प्रतिशत का सीमा शुल्क लगता है. मक्के की कीमतें बढ़ी हैं क्योंकि मांग की तुलना में उपलब्धता कम है. अनियमित बारिश के कारण खरीफ उत्पादन कम हो गया. चूंकि गन्ने का मौसम जल्दी खत्म होने वाला है और कीमतें बढ़ने के कारण इथेनॉल की मांग बढ़ रही है, इसलिए पोल्ट्री क्षेत्र से आयात खोलने की मांग हो रही है.
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