इस साल गर्मी जमकर पूरे भारत मे अपना कहर बरसा रही है. साल 2019 मे अधिकतम तापमान 50 के पार पहुंच गया है. मौसम विभाग की जानकारी के अनुसार बीते 100 सालों में पांचवी बार जून सबसे सूखा महीना रहा. पूरे देश में इस बार जून के महीने में बारिश औसत से 35 फीसदी कम रही है. अब जून भी खत्म होने वाला है और बारिश की संभावना फिलहाल कम है. देखा जाए तो आमतौर पर जून महीने में 151 मिलीमीटर बारिश होती है. वहीं इस महीने अब तक यह आंकड़ा 97.9 मिलीमीटर ही रहा है. मानसून की मार सबसे ज्यादा किसानों पर पड़ रही है. किसानों को फसल की बोवाई के कार्य में देरी हो रही है.
फिलहाल संभावनाएं है कि इस महीने के अंत तक 106 से 112 मिलीमीटर तक बारिश हो सकती है. मौसम विभाग के अनुसार वर्ष 1920 के बाद से ऐसे 4 ही साल थे जब इस तरह सूखा पड़ा हो. साल 2009 में सबसे कम 85.7 मिलीमीटर, 2014 में 95.4, 1926 में 98.7 मिलीमीटर और 1923 में 102 मिलीमीटर बारिश हुई थी. साल 2009 और 2014 में अल-नीनो के कारण मानसून कमजोर रहा था. इस साल भी ऐसी ही स्थिति है. मौसम विभाग की वरिष्ठ अधिकारी के. साथी देवी ने कहा है कि 'हम 30 जून के बाद मानसून में अच्छी मजबूती की उम्मीद कर रहे हैं.
दरअसल, अल-नीनो के प्रभाव के कारण पूर्वी और मध्य प्रशांत महासागर की सतह में असामान्य रूप से गर्मी की स्थिति होती है. इससे हवाओं का चक्र प्रभावित होता है और भारतीय मानसून पर इसका बेहद ही विपरीत असर पड़ता है. मौसम वैज्ञानिकों ने आशंका जताई थी कि अल-नीनो देर से सक्रिय और कमजोर रहेगा. हालांकि, पिछले हफ्ते ऐसे इलाकों में भी बारिश हुई जो लंबे समय से सूखे की मार झेल रहे थे.
3.50 लाख किसानों के लिए संकट
न के बराबार हुई बारिश के कारण 3.50 लाख किसानों के सामने बोवाई का संकट खड़ा है. कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार किसानों ने धान की नर्सरी तो डाल दी है लेकिन अब धान की रोपाई और अन्य फसलों की बुवाई का कार्य शुरू नहीं हो सका है. गौरतलब है कि इस वक्त खरीफ की बोवाई का सीजन चल रहा है. इस सीजन में धान के अलावा मक्का, ज्वार, बाजरा, उर्द जैसी फसलों की बोवाई की जानी है. बारिश न होने की वजह से धान की रोपाई और फसलों की बोवाई का कार्य प्रभावित है.
पिछले साल यानी 2018 में जून महीने में 25.7 मि.मी बारिश हुई थी. वहीं इस साल अभी तक जून महीने में महज 9.6 मि.मी बारिश ही हुई है. इस वजह से खेती का काम बुरी तरह से प्रभावित है. नहरों में भी पानी नहीं छोड़ा जा रहा है. इस वजह से भी किसानों की मुश्किलें बढ़ गई है. कृषि विभाग ने जो आंकड़े जारी किए है उसके मुताबिक, इस बार कुल फसल का क्षेत्र पिछले साल के मुकाबले 162 लाख हेक्टेयर की तुलना में इस बार महज 146.61 लाख हेक्टेयर रहा है. जिसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर देखने को मिल सकता है.
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