
मध्य प्रदेश के इंदौर जिले से ताल्लुक रखने वाले लखन यादव आज देश के उन चुनिंदा किसानों में शामिल हैं, जिन्होंने पारंपरिक खेती की सीमाओं को लांघकर इसे एक लाभदायक और टिकाऊ व्यवसाय में बदल दिया है. लखन यादव की कहानी सिर्फ खेती तक सीमित नहीं है; यह कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जो बीस साल तक रियल एस्टेट और इंपोर्ट-एक्सपोर्ट जैसे क्षेत्रों में सफल व्यवसायी रहे, लेकिन अंततः अपनी जड़ों की ओर लौटकर खेती में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने का बीड़ा उठाया.
प्रगतिशील किसान लखन यादव किसान परिवार से आते हैं, इसलिए खेती उनके खून में थी. बचपन से ही खेतों के प्रति लगाव था, लेकिन उन्होंने इसे एक पेशेवर व्यवसाय का रूप तब दिया जब उन्हें एहसास हुआ कि कृषि क्षेत्र में न केवल अपार संभावनाएं हैं, बल्कि यह समाज और पर्यावरण दोनों के लिए भी लाभकारी साबित हो सकता है. आज उनके पास 400 एकड़ जमीन है और उनका खेती से जुड़ा व्यवसाय करीब 2 करोड़ रुपये का है.
हाल ही में लखन यादव “ग्लोबल फार्मर बिजनेस नेटवर्क” (GFBN) से जुड़े हैं, जो कि कृषि जागरण की एक राष्ट्रीय पहल है. इसका उद्देश्य भारत में टिकाऊ और सफल कृषि उद्यमिता को बढ़ावा देना है. अब चलिए लखन यादव की सफलता की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं-

रियल एस्टेट से खेतों तक का सफर
साल 2014 में, जब लखन यादव अपने व्यवसाय में अच्छी-खासी सफलता प्राप्त कर चुके थे, उन्होंने खेती की ओर गंभीरता से ध्यान देना शुरू किया. उन्होंने यह समझने की कोशिश की कि क्यों लाखों किसान आज भी आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं जबकि वे दिन-रात मेहनत करते हैं. उन्हें लगा कि कहीं न कहीं खेती के मौजूदा तरीकों में कोई मूलभूत खामी है, जिसे सुधारने की जरूरत है.

इस सोच के साथ, उन्होंने लगभग 30 से अधिक फसलें और विभिन्न खेती की तकनीकें अपनाईं - जिसमें आधुनिक खेती, औषधीय खेती, विदेशी फसलें और बागवानी शामिल थीं. इन प्रयोगों से उन्हें कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलीं, लेकिन उन्हें अब तक वह 'सफलता की चाबी' नहीं मिली थी जिसकी वे तलाश कर रहे थे.

बांस की खेती: एक नई शुरुआत
साल 2018 में, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांस को 'पेड़' के बजाय 'घास' की श्रेणी में शामिल करने की घोषणा की, तब लखन यादव को एक नई दिशा मिली. इस सरकारी निर्णय से बांस की खेती पर लगी कई कानूनी बंदिशें हट गईं और यह व्यापारिक रूप से आसान और आकर्षक बन गई. इसी मौके को भुनाते हुए लखन यादव ने 100 एकड़ भूमि खरीदी और बांस की खेती की शुरुआत की.

हालांकि, बांस की खेती भी आसान नहीं थी. इसकी फसल पहले पांच वर्षों तक कोई प्रत्यक्ष मुनाफा नहीं देती, और इसकी गहरी जड़ें मिट्टी के पोषक तत्वों को धीरे-धीरे खत्म कर देती हैं. परंतु एक बार जब बांस का पौधा परिपक्व हो जाता है, तो उसकी देखभाल में बहुत कम खर्च आता है और इससे साल दर साल स्थायी आमदनी होती है. इस दूरदर्शिता के बलबूते, लखन यादव बांस की खेती में एक अग्रणी नाम बन गए और अन्य किसानों को भी इसकी ओर आकर्षित किया.

प्राकृतिक खेती की ओर एक गंभीर बदलाव
कोविड-19 महामारी के दौरान जब पूरी दुनिया स्वास्थ्य संकट से जूझ रही थी, तब लखन यादव ने महसूस किया कि हमारी जीवनशैली और खानपान में बड़े बदलाव की आवश्यकता है. उन्होंने कहा, “अगर मिट्टी बीमार है, तो उसमें उगाई गई फसलें कैसे स्वस्थ हो सकती हैं?”
इस सोच के साथ उन्होंने अपने 40 एकड़ के खेत में प्राकृतिक खेती की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने गेहूं, मक्का, सब्जियां, दालें, फल और कपास जैसी फसलें उगाईं, वो भी बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशक के. उनका लक्ष्य साफ था—मिट्टी की सेहत को बेहतर बनाना और ऐसा पौष्टिक भोजन तैयार करना जो लोगों को स्वस्थ रखे.

किसानों को जोड़ना और सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा देना
लखन यादव को इस बात का एहसास था कि खेती में बदलाव अकेले संभव नहीं है. इसलिए उन्होंने स्थानीय किसानों को जोड़ना और प्रशिक्षित करना शुरू किया. वे लगातार गांव-गांव जाकर किसानों को प्राकृतिक खेती के फायदों के बारे में बताते हैं.
आज वे कई FPOs (Farmer Producer Organizations) और FPCs (Farmer Producer Companies) बनाने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. इन संगठनों के ज़रिए किसान एकजुट होकर प्रशिक्षण ले सकते हैं, संसाधनों को साझा कर सकते हैं और बाजार में उचित मूल्य प्राप्त कर सकते हैं. इससे किसानों की आय में इजाफा होता है और वे आत्मनिर्भर बनते हैं.

बाजार की चुनौती और SS Amrutva की शुरुआत
लखन यादव को बहुत जल्द यह समझ आ गया कि केवल अच्छी खेती करने से बात नहीं बनेगी. अगर बाजार में प्राकृतिक खेती की उपज को उचित मूल्य नहीं मिलेगा, तो किसान कभी इसे अपनाने के लिए प्रेरित नहीं होंगे. यही सोचकर उन्होंने अपने व्यापारिक अनुभव का उपयोग करते हुए SS Amrutva नामक एक नया ब्रांड शुरू किया.
इस ब्रांड का मकसद था:
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मध्यस्थों (बिचौलियों) को हटाना,
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किसानों की उपज सीधे ग्राहकों तक पहुंचाना,
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किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य दिलवाना.
SS Amrutva ने 'फार्म-टू-फोर्क' यानी खेत से सीधे उपभोक्ता तक का मॉडल अपनाया. इसके जरिए न केवल ग्राहकों को शुद्ध और स्वस्थ खाना मिलने लगा, बल्कि किसानों को उनकी उपज का सही दाम भी मिलने लगा. आज SS Amrutva के जरिए लखन यादव का एग्रो-बिजनेस सालाना लगभग ₹2 करोड़ का टर्नओवर कर रहा है.

सम्मान और उपलब्धियां
लखन यादव को उनके नवाचार और नेतृत्व के लिए कई मंचों से सम्मानित किया गया है. उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs), राज्य कृषि विभाग, और कई अन्य संस्थानों द्वारा सम्मानित किया गया. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि रही “Millionaire Farmer of India Award 2023”, जिसे Krishi Jagran द्वारा दिया गया. यह पुरस्कार न केवल उनके व्यापार की सफलता का प्रमाण है, बल्कि उनके सामाजिक योगदान और किसानों के सशक्तिकरण के लिए भी एक बड़ी मान्यता है.
भविष्य की ओर: एक नई सोच, एक नई दिशा
लखन यादव की कहानी केवल एक व्यक्ति की सफलता नहीं है, बल्कि यह पूरे कृषि क्षेत्र के लिए एक नई सोच और दिशा प्रस्तुत करती है. उन्होंने यह साबित कर दिया कि जब परंपरागत ज्ञान को आधुनिक तकनीक और व्यापारिक समझ के साथ जोड़ा जाए, तो खेती सिर्फ जीवनयापन का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक समृद्धि का स्रोत बन सकती है.
NOTE: अगर आप भी कृषि जागरण की पहल “ग्लोबल फार्मर बिजनेस नेटवर्क” का हिस्सा बनाना चाहते हैं तो लिंक- https://millionairefarmer.in/gfbn/ पर क्लिक करें या 9891443388 पर कॉल या व्हाट्सएप्प करें.
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