शिवाकांत मध्यप्रदेश के सतना जिले के रहने वाले हैं. ये एक गरीब परिवार से संबंध रखते हैं. शिवाकांत के पिता सब्जी का ठेला लगा कर अपने घर का खर्चा चलाया करते थे. और साथ ही शिवाकांत की माँ भी काम किया करती थीं. शिवाकांत तीनों भाई बहन में दूसरे नंबर के थे. घर की आर्थिक स्तिथि ख़राब होने के कारण शिवाकांत ने 12वीं के बाद अपने पिताजी के साथ कम करना चालू कर दिया लेकिन पढ़ाई में लगन होने के कारण इन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा.
आज बड़ी कठिन तपस्या के बाद उन्होंने यह मुकम हासिल किया है.आज भी शिवाकांत कच्चे घर में रहते हैं.
शिवाकांत ने क्या कहा
शिवाकांत कहते हैं कि मैं सब्जी का ठेला लगाता था और जब कहता था कि एक दिन जज बनकर दिखाऊंगा तो लोग मुझे पागल कहते थे. लेकिन शिवाकांत का कहना है कि मेरी अंतरआत्मा कहती थी कि मुझे सफलता मिलेगी.और इसी अंतरआत्मा की आवाज़ को में सुनकर चलता गया और सफलता के इस मुकाम पर पहुँच गया.
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एक जज ने दी थी वकालत करने की सलाह
शिवाकांत का कहना है कि 2007 में वे गन्ने की एक जूस की दुकान पर कम किया करते थे. तभी वहां पर आने वाले एक जज ने उन्हें सलाह दी कि एलएलबी क्यों नहीं कर लेते? और उसके बाद मेहनत करने के बाद जज बन जाना. उसी के बाद शिवाकांत रीवा के ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय से एलएलबी करने लगे और बाद में उन्होंने कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की और साथ ही साथ सिविल जज की तैयारी भी करने लगे. नौ बार शिवाकांत को असफलता हाथ लगी लेकिन हार नहीं मानी और 10वें प्रयास में आखिरकार वो सफल हो ही गए.
शिवाकांत की पत्नी भी करती थीं मदद
शिवाकांत की पत्नी पेशे से टीचर हैं. उनका कहना है कि शुरुआत में वे शिवाकांत की मदद नहीं कर पाती थीं. लेकिन जब शिवाकांत की मुख्य परीक्षा शुरू हुई तब वो शिवाकांत की कॉपियों को जाँच कर उनमें गलतियां निकाला करती थीं. जिससे शिवाकांत को काफी सहायता मिली.
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