
करीब 20 साल पहले, नीतुबेन पटेल (जिन्हें नीताबेन कर्णानी भी कहा जाता है) ने अपनी यात्रा की शुरुआत की थी. उन्होंने एक बिज़नेसवुमन के रूप में नहीं, बल्कि एक साधारण किसान के रूप में काम शुरू किया, जिन्हें प्रकृति से बहुत लगाव था. वे गुजरात के राजकोट जिले के हर्थकोट गांव की रहने वाली हैं. शुरुआत से ही उन्हें मिट्टी, पानी, पेड़-पौधे, जानवरों और प्रकृति के बीच के संतुलन को समझने की गहरी रुचि थी.
उन्हें प्रेरणा अपने गुरु, स्वर्गीय श्री दीपकभाई सचदे से मिली. उनके मार्गदर्शन में नीतुबेन ने एक प्रकृति-आधारित जीवनशैली अपनाई. उन्होंने पारंपरिक तरीकों से अलग हटकर, मिट्टी की "बातें सुनना" सीखा. उनका मानना था कि खेती को प्रकृति के साथ मिलकर करना चाहिए, उसके खिलाफ नहीं. यही सोच आगे चलकर उनके कृषि आंदोलन की नींव बनी.
प्राकृतिक खेती: एक जीवनशैली
नीतुबेन सिर्फ फसलें नहीं उगाती थीं, वे मिट्टी की सेहत को भी सुधारती थीं. उन्होंने "अमृत कृषि" और "मैजिकल मिट्टी" जैसे तरीके अपनाए, जिनका मकसद जैविक कचरे को पौधों के लिए खाद में बदलना था. इससे जमीन को नई जिंदगी मिली और उसकी उर्वरता लंबे समय तक बनी रही. उनकी इस पद्धति से न सिर्फ एक सफल खेत तैयार हुआ, बल्कि एक संपूर्ण और टिकाऊ पारिस्थितिकी तंत्र भी बना. नीतुबेन को औषधीय पौधों की बहुत अच्छी जानकारी है, और उन्होंने इसका उपयोग प्राकृतिक चिकित्सा (नैचुरोपैथी) में किया है. उन्होंने इन पौधों से कई स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद तैयार किए हैं.

वृक्षारोपण और मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने के अनुभव के बाद, अब वे झीलों के पुनर्जीवन, कार्बन क्रेडिट, ESG (पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासनिक सुधार) और अवांछित पौधों से बायोचार बनाने जैसे प्रोजेक्ट्स में भी मदद कर रही हैं. उनका खेत, जिसे उन्होंने 20 वर्षों की मेहनत से तैयार किया है, इस तरह से बना है कि वह बिना किसी इंसानी मदद के 20 साल तक खुद ही चल सकता है.
सजीवन लाइफ प्राइवेट लिमिटेड: हजारों को सशक्त बनाने की पहल
नीतुबेन Sajeevan Life Pvt. Ltd. की संस्थापक हैं. यह एक पंजीकृत गैर-लाभकारी संस्था है, जो प्राकृतिक खेती और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिए काम करती है. उनके इस प्रयास से पूरे गुजरात राज्य में बड़ा बदलाव आया है. सजीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है - सिर्फ 45 दिनों में 84 किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) का पंजीकरण कराना. ये FPOs न केवल किसानों को सरकारी योजनाओं से जोड़ते हैं, बल्कि उन्हें सस्ती, टिकाऊ और लाभकारी खेती के तरीकों की जानकारी भी देते हैं.

इस संस्था ने गुजरात सरकार के साथ मिलकर Internal Cluster System (ICS) की भी शुरुआत की. इसका मकसद था जैविक किसानों को प्रमाणपत्र दिलाने की प्रक्रिया को आसान बनाना, खासकर आदिवासी और पहाड़ी इलाकों में. नीतुबेन के नेतृत्व में गुजरात के डांग ज़िले के 13,500 किसानों को जैविक प्रमाणपत्र मिल चुका है, और अब यह जिला पूरी तरह ऑर्गेनिक (जैविक) बन गया है जो कि राज्य में पहली बार हुआ है.
फार्म टू प्लेट मॉडल और ऑनलाइन उपस्थिति
नीतुबेन ने राजकोट में एक कारगर "फार्म टू प्लेट" मॉडल शुरू किया है, जहां किसान अपनी ताज़ा उपज सीधे ग्राहकों को बेचते हैं, बिना किसी बिचौलिए के. इससे किसानों को उनकी मेहनत का अच्छा दाम मिलता है, और ग्राहकों को स्वस्थ व ताज़ा भोजन मिलता है.

एक किसान दिल वाली अग्रिप्रेन्योर
नीतुबेन भारत की सबसे सफल किसानों में से एक हैं. लेकिन वे कभी पुरस्कार या शोहरत के पीछे नहीं भागीं. उन्हें पहली बार पहचान "कृषि जागरण" और "खोज" प्रोग्राम के ज़रिए मिली. दो साल पहले तक उन्हें प्रचार-प्रसार की कोई ज़रूरत नहीं लगती थी. लेकिन जब उनके गुरु ने कहा कि अपने काम को ज्यादा लोगों तक पहुँचाने के लिए इसे साझा करना ज़रूरी है, तब उन्होंने अपनी जीवन कहानी बतानी शुरू की. आज भी वे SanJeevan Life Pvt. Ltd. के ज़रिए पूरी निष्ठा से काम कर रही हैं और प्राकृतिक खेती की भावना को बनाए हुए हैं.
GFBN में भूमिका और भविष्य की सोच
नीतुबेन हाल ही में Global Farmer Business Network (GFBN) से जुड़ी हैं, जो कृषि जागरण द्वारा शुरू की गई एक देशव्यापी पहल है. इसका उद्देश्य पूरे भारत के प्रगतिशील और टिकाऊ किसानों को सशक्त बनाना है. GFBN में नीतुबेन एक मार्गदर्शक (मेंटोर) की भूमिका निभा रही हैं. वे प्राकृतिक खेती, मिट्टी की सेहत और समावेशी ग्रामीण विकास के बारे में अपने अनुभव और ज्ञान नए और उभरते हुए अग्रिप्रेन्योर किसानों को सिखा रही हैं.

उनका सपना है - ज्यादा से ज्यादा महिला किसानों को प्रशिक्षित करना, प्राकृतिक खेती को अन्य राज्यों तक फैलाना, और पूरे देश में स्वच्छ और जैविक भोजन की एक मज़बूत आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) बनाना.
नई पीढ़ी के किसानों के लिए एक सीख
नीतुबेन की कहानी सिर्फ पैसे कमाने की नहीं, बल्कि एक उद्देश्य से जुड़ी हुई है. उनका तरीका यह दिखाता है कि खेती लाभदायक भी हो सकती है और टिकाऊ भी, कि महिलाएं भी आगे बढ़कर नेतृत्व कर सकती हैं, और कि प्रकृति एक किसान की सबसे अच्छी साझेदार हो सकती है.

उनकी यात्रा जो राजकोट की मिट्टी से शुरू हुई थी, आज हजारों लोगों के लिए प्रेरणा बन चुकी है. वे यह साबित करती हैं कि अगर इरादा सही हो, तो खेती सिर्फ जीने का जरिया नहीं, बल्कि प्रकृति, समाज और आने वाली पीढ़ियों की सेवा भी हो सकती है.
जैसा कि नीतुबेन कहती हैं- "अगर हम मिट्टी का ध्यान रखें, तो मिट्टी सब कुछ संभाल लेती है."
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