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Success Story: कॉरपोरेट नौकरी छोड़ नेहा ल्यूक बनीं जैविक किसान, सालाना टर्नओवर पहुंचा 60 लाख रुपये!

नेहा ल्यूक ने कॉर्पोरेट करियर छोड़कर "माला फार्म्स" की शुरुआत की, जो जैविक और टिकाऊ खेती का सफल मॉडल है. यहां गाय, बकरी, मुर्गियां, मधुमक्खियां और अनाज मिलकर एक आत्मनिर्भर इकोसिस्टम बनाते हैं. माला फार्म्स ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाता है और शुद्ध, भरोसेमंद उत्पाद बाजार में पहुंचाता है.

KJ Staff
Farmer Neha Luke
माला फार्म्स की संस्थापक नेहा ल्यूक

हरियाणा के अंबाला की रहने वाली नेहा ल्यूक की ज़िंदगी की राह किसी अनजान मुक़ाम तक पहुंचने की कहानी नहीं, बल्कि मकसद, ईमानदारी और सच्ची लगन से अपना पक्ष बदलने की कहानी है. नेहा ल्यूक ने दो दशकों तक एक प्रतिष्ठित वित्तीय संस्था में सफल करियर बनाया. उनके पति भी कॉर्पोरेट फाइनेंस की दुनिया में काम कर रहे थे. लेकिन उनकी इस चमकदार प्रोफेशनल लाइफ के पीछे एक साझा सपना छिपा था - एक ऐसा जीवन जो प्रकृति, जानवरों और गांव की सरलता से जुड़ा हो.

जब साल 2020 में कोरोना महामारी पूरी दुनिया में फैली, तो इसने उनकी जिंदगी की नींव हिला दी. नेहा के परिवार को भी इस दौरान नौकरी जाने का झटका लगा. लेकिन उन्होंने इसे निराशा के रूप में नहीं, बल्कि एक नए अवसर के रूप में देखा – खुद की पहचान और असली मकसद को फिर से खोजने का मौका. पूरे विश्वास और हिम्मत के साथ उन्होंने कॉर्पोरेट जिंदगी को अलविदा कहकर अपनी सारी बचत एक सार्थक और टिकाऊ पहल में निवेश कर दी.

यही सपना बना माला फार्म्स, जिसका नाम नेहा ने अपनी दिवंगत मां "माला" के नाम पर रखा - एक ऐसा नाम जो गांव की सादगी, शुद्धता और आत्मिक जुड़ाव का प्रतीक है. नेहा की बचपन की यादें अपनी मां के साथ बगीचे में बिताए समय की हैं, जब वे मिलकर सब्जियां उगाया करती थीं. माला फार्म्स, उनकी मां के प्रति एक श्रद्धांजलि है.

इस सफर की शुरुआत 15 अगस्त 2021 को गुरुग्राम के पास सिर्फ दो एकड़ जमीन से हुई थी. लेकिन आज माला फार्म्स 50 एकड़ से ज्यादा में फैला एक सफल, जैविक, टिकाऊ और समन्वित खेती का मॉडल बन चुका है. यह सिर्फ एक फार्म नहीं है, बल्कि संघर्ष, उद्देश्य और नए सिरे से शुरुआत की ताकत का उदाहरण बन गया है.

खेती के साथ-साथ नेहा को लोगों को जोड़ना और ज्ञान साझा करना भी बेहद पसंद है. हाल ही में वह ग्लोबल फार्मर बिजनेस नेटवर्क (GFBN) से जुड़ी हैं, जो कृषि जागरण की एक पहल है, जिसका मकसद है – किसानों को आत्मनिर्भर और सफल एग्री-उद्यमी बनाना.

एक पूरा इकोसिस्टम: गाय, बकरी, मुर्गियां, मधुमक्खियां और फसलें

माला फार्म्स सिर्फ अनाज उगाने की जगह नहीं है, बल्कि यह जीवन को संवारने की एक सोच है. इस फार्म की नींव एक खास विचारधारा पर रखी गई है - प्रकृति के साथ तालमेल में जीना, जहां हर जानवर, पौधा और इंसान मिलकर पर्यावरण को सहारा देते हैं.

इस फार्म में 25 से ज़्यादा गिर नस्ल की गायें हैं, जो अपने A2 दूध के लिए जानी जाती हैं. ये देशी गायें माला फार्म्स की डेयरी गतिविधियों की मुख्य धुरी हैं, जिनसे दूध, दही, घी और छाछ तैयार किया जाता है. इनके साथ हरियाणवी देशी गायें भी हैं, जो इस दंपत्ति के स्थानीय नस्लों को संरक्षित रखने के संकल्प को दर्शाती हैं.

लेकिन डेयरी ही इस फार्म का एक पहलू है. यहां पर करीब 60 देशी बकरियां भी पाली जाती हैं, जो हरियाणा की जलवायु के अनुसार ढली हुई हैं. इन बकरियों से दूध और मांस मिलता है, और इनका गोबर खेतों की उर्वरता बढ़ाने में काम आता है.

कुक्कुट पालन के रूप में, माला फार्म्स में 700 से अधिक देसी मुर्गियां हैं, जिनमें कड़कनाथ और रोड आइलैंड रेड जैसी नस्लें शामिल हैं. ये सभी मुर्गियां खुले में घूमती हैं और प्राकृतिक आहार पर पाली जाती हैं. इनके अलावा बत्तखें, टर्की और हंस भी फार्म का हिस्सा हैं. टर्की और हंस खेतों में कीड़े भगाने का काम भी करते हैं.

खूबसूरती और संवेदनशीलता की मिसाल हैं दो घोड़े – एक मां और उसका बच्चा, जिन्हें इस दंपत्ति ने गोद लेकर बचाया है. ये अब माला फार्म्स में सुकून से रहते हैं और फार्म की देखभाल और करुणा को दर्शाते हैं.

जानवरों के अलावा, फार्म में 700 से अधिक मधुमक्खियों के छत्ते हैं, जो न सिर्फ कच्चा शहद देते हैं, बल्कि परागण (pollination) में भी बड़ी भूमिका निभाते हैं. यह पूरा सिस्टम एक स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और संतुलित फार्म की तरह काम करता है - एक जीवित उदाहरण कि प्रकृति के साथ मिलकर कैसे खेती की जा सकती है.

साफ-सुथरे और भरोसेमंद खाने का बाज़ार

माला फार्म्स के उत्पाद जितने विविध हैं, उतने ही शुद्ध और जैविक (ऑर्गेनिक) भी हैं. उनके कुछ खास प्रोडक्ट्स में शामिल हैं: A2 दूध, पनीर, छाछ, देसी घी, बकरी का दूध, कच्चा शहद, देसी अंडे और खुले में पाले गए देसी मुर्गों का मांस. ये सभी उत्पाद बिना किसी रसायन, एंटीबायोटिक या कृत्रिम पदार्थों के बनाए जाते हैं.

उनकी खेती की गई खापली गेहूं (जिसे एमर व्हीट भी कहा जाता है) एक पुरानी, कम ग्लूटेन वाली किस्म है. इसे पारंपरिक तरीकों से उगाया जाता है और हाथ से छीलकर तैयार किया जाता है, ताकि इसके पोषक तत्व पूरी तरह बरकरार रहें.

सरसों का तेल लकड़ी की घानी में ठंडा दबाकर निकाला जाता है, जिससे इसकी खुशबू और प्राकृतिक गुण बने रहते हैं. ऐसे लंबे समय तक टिकने वाले उत्पाद - जैसे घी, शहद, खापली गेहूं और पीली सरसों का तेल - अब अमेज़न जैसे बड़े ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर उपलब्ध हैं.

ताज़गी बनाए रखने के लिए, खासकर दूध, अंडे और सब्जियों जैसे जल्दी खराब होने वाले सामान की डिलीवरी खुद नेहा और उनकी टीम दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में करती है.
अगले महीने से माला फार्म्स त्वरित डिलीवरी सेवा (क्विक कॉमर्स) शुरू करने जा रही है, जिससे ताज़ा फार्म उत्पाद जल्दी ही ग्राहकों के घर तक पहुंच सकें. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर वे सिर्फ वही चीजें बेचने की योजना बना रहे हैं जो ज़्यादा समय तक सुरक्षित रह सकती हैं, जैसे घी, सरसों का तेल, शहद और खापली गेहूं.

यह मॉडल एक ऐसा बाज़ार खड़ा कर रहा है जहां खाद्य उत्पाद सिर्फ खाने के लिए नहीं, बल्कि सेहतमंद जीवन के लिए होते हैं - पूरी तरह भरोसेमंद और स्वच्छ.

महिलाओं को सशक्त बनाना और ग्रामीण जीवन को संवारना

खेती के अलावा, माला फार्म्स आज महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का एक सशक्त मंच बन चुका है. नेहा ने एक महिला-नेतृत्व वाला मधुमक्खी पालन मॉडल शुरू किया है, जिसमें ग्रामीण महिलाओं को अपने घरों में मधुमक्खियों के छत्ते पालने की ट्रेनिंग दी जाती है. नेहा उन्हें मधुमक्खियां और बॉक्स उपलब्ध कराती हैं और फिर उनसे निकाला गया शहद खरीद लेती हैं. इससे महिलाओं को उनके घरेलू कामों में रुकावट डाले बिना एक नियमित आय का साधन मिल जाता है.

अब तक इस मॉडल के तहत 500 से ज़्यादा मधुमक्खी के छत्ते बनाए जा चुके हैं. इस योजना ने सैकड़ों महिलाओं की ज़िंदगी में बदलाव लाया है, उन्हें सम्मान, हुनर और आत्मविश्वास से भर दिया है – एक -एक छत्ते के ज़रिए.

मार्गदर्शक और दृष्टिकोण वाली नेत्री

नेहा का मानना है कि खेती अब दूसरा विकल्प नहीं, बल्कि भविष्य है. वे वेबिनार, कार्यशालाओं और खेत पर आधारित ट्रेनिंग के ज़रिए खासतौर पर महिलाओं को एग्री-उद्यमिता (Agri-Entrepreneurship) के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित कर रही हैं. वे चाहती हैं कि नई पीढ़ी के लोग खेती को समझें, अपनाएं और उसमें विश्वास रखें.

चुनौतियां और सीख
नेहा मानती हैं कि खेती आसान काम नहीं है. इसमें अनुशासन, शारीरिक मेहनत और भावनात्मक धैर्य की ज़रूरत होती है. जानवरों की देखभाल 24 घंटे करनी पड़ती है, और फसलें छुट्टियों का इंतज़ार नहीं करतीं. कई बार उन्हें सप्लाई चेन की समस्याएं, कम बारिश या बीमारियों का सामना करना पड़ा.

लेकिन हर चुनौती ने उन्हें कुछ नया सिखाया. नेहा अक्सर कहती हैं,
"
खेती को अक्सर खूबसूरत और सरल दिखाया जाता है, लेकिन असलियत में यह बहुत कठिन है. इसमें पूरी तरह समर्पित रहना पड़ता है - इसे जीना पड़ता है - और कभी भी छुट्टी नहीं होती.”

एक बढ़ता हुआ सपना

माला फार्म्स, गुड़गांव के रायसीना गांव के रकबा 23 में स्थित है. यह अब सिर्फ एक खेत नहीं है, बल्कि एक जीवंत उदाहरण है पुनर्योजी (regenerative), लाभदायक और समावेशी कृषि का. नेहा का अगला लक्ष्य है - पारंपरिक अनाजों की उपज को बढ़ाना, एक छोटा प्रोसेसिंग यूनिट शुरू करना, और आगे चलकर एक फार्म स्कूल की स्थापना करना, जहां बच्चों को असली खेती की जानकारी दी जा सके.

जैसे-जैसे माला फार्म्स फास्ट कॉमर्स के युग में प्रवेश कर रहा है और ऑनलाइन दुनिया में अपनी पहुंच बढ़ा रहा है, नेहा का संदेश स्पष्ट है - भोजन ऐसा हो जो पोषण दे, खेती ऐसी हो जो जीवन को ठीक करे, और सफलता ऐसी हो जो सबके साथ बांटी जा सके.

 NOTE: अगर आप भी कृषि जागरण की पहल ग्लोबल फार्मर बिजनेस नेटवर्कका हिस्सा बनाना चाहते हैं तो लिंक – https://millionairefarmer.in/gfbn/ पर क्लिक करें या 9891443388 पर कॉल या व्हाट्सएप करें.

English Summary: success story of neha luke ambala haryana left corporate job became organic farmer annual turnover 60 lakh rupees Published on: 19 June 2025, 04:20 PM IST

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