
रीवा सूद, जिन्हें आज पूरे हिमाचल प्रदेश में 'ड्रैगन फ्रूट लेडी' के नाम से जाना जाता है, ने 2016 में एक अलग ही राह पर चलने का फैसला किया. दिल्ली में रहने वाली रीवा का जीवन उस समय एक कठिन दौर से गुज़र रहा था, जब उनके पति प्रो. (डॉ.) राजीव सूद को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का पता चला. इस दुखद मोड़ ने उन्हें सोचने पर मजबूर किया कि हमारी सेहत का सीधा संबंध हमारे खानपान से है.
इसी सोच ने उन्हें अपने जीवन का उद्देश्य बदलने की प्रेरणा दी. रीवा सूद ने दिल्ली छोड़कर हिमाचल प्रदेश के ऊना ज़िले के ग्रामीण इलाकों का रुख किया और “जहर मुक्त खेती” को अपनाया. उन्होंने 70 एकड़ बंजर और पथरीली ज़मीन पर बिना रसायन के खेती शुरू की, जिसमें ड्रिप सिंचाई, जीवामृत और वर्मी कम्पोस्ट जैसी पर्यावरण-हितैषी तकनीकों का इस्तेमाल किया. उनका सपना था - खेती को सेहत और सशक्तिकरण का ज़रिया बनाना.
हाल ही में रीवा सूद “ग्लोबल फार्मर बिजनेस नेटवर्क” (GFBN) से जुड़ी हैं, जो कि कृषि जागरण की एक राष्ट्रीय पहल है. इसका उद्देश्य भारत में टिकाऊ और सफल कृषि उद्यमिता को बढ़ावा देना है. अब चलिए रीवा सूद की सफलता की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं–
ड्रैगन फ्रूट की शुरुआत: एक नई क्रांति
2018 में रीवा सूद ने एक ऐसा कदम उठाया, जिसने हिमाचल में खेती की दिशा ही बदल दी. उन्होंने ऊना ज़िले में पहली बार ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की. उस समय यह फल ना ही स्थानीय लोगों के लिए जाना-पहचाना था और ना ही किसी ने यह सोचा था कि सूखी ज़मीन पर इसकी खेती संभव है. लेकिन रीवा ने 30,000 से ज़्यादा ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए और साबित किया कि अगर सोच और मेहनत सच्ची हो, तो बंजर ज़मीन भी सोना उगल सकती है.
उनकी खेती ने ना सिर्फ आय बढ़ाई, बल्कि ज़मीन की सेहत भी सुधारी. उन्होंने ड्रैगन फ्रूट के साथ-साथ अश्वगंधा, तुलसी, कालमेघ, सर्पगंधा, मोरिंगा, काली गेहूं और हल्दी जैसी औषधीय और हर्बल फसलों की मिश्रित खेती भी शुरू की, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ी और किसानों को कई फसलों से आमदनी हुई.
एग्रीवा नेचुरली: खेत से प्रोसेसिंग तक
रीवा सूद ने सिर्फ खेती तक ही सीमित न रहकर एक कदम और आगे बढ़ाया. उन्होंने 2022 में ‘Agriva Naturally’ नाम से एक फलों और औषधीय उत्पादों की प्रोसेसिंग यूनिट शुरू की, जो विश्व बैंक की ग्रांट योजना से सहायता प्राप्त थी. इस यूनिट की लागत ₹1.65 करोड़ थी और यह ऊना के बेहड़-बिठल गांव में स्थित है. इसमें ड्रैगन फ्रूट जूस, अंजीर और अश्वगंधा से बने हर्बल ब्लेंड्स, सूखे अंजीर और हर्बल अर्क बनाए जाते हैं, जो ‘Dragona’ ब्रांड के तहत बेचे जाते हैं.
इस यूनिट की वार्षिक प्रोसेसिंग क्षमता 153 मीट्रिक टन है और यह 100 से अधिक स्थानीय किसानों को रोज़गार और फसल खरीद-बिक्री की गारंटी देता है. 2024-25 में इसका टर्नओवर ₹90 लाख हुआ और कुल कारोबार ₹3 करोड़ पार कर गया.
महिलाओं को सशक्त बनाना: Him 2 Hum FPO
रीवा सूद का एक और बड़ा सपना था - गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना. 2021 में उन्होंने ‘Him 2 Hum Farmers Producer Company Ltd.’ नाम से एक महिला संचालित एफपीओ शुरू किया, जिसे NABARD और आयुष मंत्रालय की औषधीय पादप बोर्ड का सहयोग मिला. इस एफपीओ के अंतर्गत महिलाएं पॉलीहाउस, नर्सरी, औषधीय फसलें उगाना, पैकेजिंग और मार्केटिंग जैसे कई कार्यों में लगी हैं.
आज 300 से अधिक महिलाएं इस एफपीओ से जुड़ी हैं और अश्वगंधा, तुलसी, मोरिंगा और ड्रैगन फ्रूट की खेती में सक्रिय हैं. यह पहल अब हिमाचल, पंजाब, हरियाणा तक फैल चुकी है और एक तरह से महिलाओं का क्रॉस-स्टेट कोऑपरेटिव आंदोलन बन गया है. ऊना में लगभग 40 परिवार भी मनरेगा और एग्रीवा के खरीद-बिक्री समझौतों के तहत खेती कर रहे हैं.
सामाजिक कार्य की जड़ें: INDCARE ट्रस्ट
रीवा सूद की सामाजिक सोच सिर्फ खेती तक सीमित नहीं है. 1989 में उन्होंने दिल्ली में ‘INDCARE Trust’ की स्थापना की थी, जो महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करता है. उन्होंने कई स्वयं सहायता समूह (SHG) बनाए, महिला स्वास्थ्य, पोषण और कौशल प्रशिक्षण के प्रोग्राम चलाए और 350 से अधिक महिलाओं को सिलाई, ब्यूटी, और फूड प्रोसेसिंग में प्रशिक्षित किया.
इस ट्रस्ट ने वर्ल्ड बैंक, UNDP, NABARD, USAID, DFID जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर जमीनी स्तर पर काम किया है. रीवा ने ग्रामीण किशोरियों और महिलाओं को प्रेरित करने के लिए ‘उम्मीद का दिया’ जैसे गीत और IEC सामग्री भी तैयार की है.
शिक्षा में नेतृत्व: INDCARE कॉलेज ऑफ लॉ
महिलाओं को कानून और अधिकारों की जानकारी देना भी रीवा सूद की सोच का हिस्सा है. इसी मकसद से उन्होंने 2013 में ग्रेटर नोएडा में INDCARE College of Law की स्थापना की. यह कॉलेज सिर्फ कानून की पढ़ाई ही नहीं कराता, बल्कि रिसर्च, जेंडर जस्टिस और सामाजिक जागरूकता पर भी काम करता है. कई विद्यार्थी रीवा से प्रेरित होकर सामाजिक बदलाव के रास्ते पर चल पड़े हैं.
सम्मान और पुरस्कार
रीवा सूद को उनके कार्यों के लिए कई मंचों पर सम्मानित किया गया है, जिनमें प्रमुख हैं:
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NBT बिजनेस आइकन अवॉर्ड - फूड और एग्रो इंडस्ट्री में योगदान के लिए
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WHO डायमंड जुबली अवॉर्ड 2023 - ‘नेशनल हेल्थ ICON’ के रूप में
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BFUHS महिला चेंजमेकर अवॉर्ड 2025 - अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर
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गेस्ट ऑफ ऑनर सम्मान - राष्ट्रीय औषधीय पौधों अभियान में भागीदारी के लिए
पारिवारिक समर्थन
रीवा सूद की इस पूरी यात्रा में उनका परिवार हमेशा उनके साथ रहा. उनके पति, पद्मश्री प्रो. (डॉ.) राजीव सूद, आज बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज (BFUHS), पंजाब के वाइस-चांसलर हैं. उनकी बेटियां डॉ. तन्वी सूद (ऑन्कोलॉजिस्ट) और एर. कनीका (गिलियड, USA में असिस्टेंट डायरेक्टर) हैं, जबकि बेटा डॉ. ईशान सूद बेल्जियम के KU Leuven से पीएचडी कर चुके हैं.
ऐसे में हम यह कह सकते हैं कि रीवा सूद ने यह साबित कर दिया है कि सच्ची लगन, सामाजिक सोच और परिश्रम से कोई भी बदलाव संभव है. उन्होंने न केवल बंजर ज़मीन को हरा-भरा किया है, बल्कि उस पर एक ऐसा एग्रो-इकोसिस्टम खड़ा कर दिया है, जो सालाना ₹90 लाख का टर्नओवर देता है और 300 से अधिक महिलाओं को रोज़गार भी. उनकी कहानी हमें सिखाती है कि कृषि सिर्फ आजीविका नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का माध्यम भी हो सकती है.
NOTE: अगर आप भी कृषि जागरण की पहल “ग्लोबल फार्मर बिजनेस नेटवर्क” का हिस्सा बनाना चाहते हैं तो लिंक – https://millionairefarmer.in/gfbn/ पर क्लिक करें या 9891443388 पर कॉल या व्हाट्सएप करें.
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