बांसवाडा, दक्षिणी राजस्थान का पूर्वी हिस्सा एक पहाड़ी क्षेत्र है, जो मुख्य रूप से वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर है. हालांकि, यहां पर उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें कपास, मक्का, अरहर, उड़द, मूंग और चावल आदि हैं. किसान निचले इलाकों में धान की खेती भी करते हैं. पानी की कमी के कारण उक्त फसलें कुछ परिवारों के लिए दो-तीन महीनों के लिए भोजन एवं आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करती थीं, लेकिन जीवनयापन के लिए पर्याप्त नहीं होती थी. बांसवाडा जिले के कुशलगढ तहसील, गांव- झिकली के कई अन्य लोगों की तरह, छोटे संसाधनों से सरिता देवी भी जीवन जी रही थीं.
अपनी 4 बीघा जमीन पर सुबह से शाम तक काम करने के अलावा, दूसरों के खेतों में मजदूरी के लिए भी जाती थीं. लेकिन आर्थिक आवश्यकताओं के पूरा नहीं होने के कारण सविता देवी भी अपने पति रूपलाल के साथ पलायन पर गुजरात के सुरत शहर में मजदूरी करने जाती थी, वहां भी पर्याप्त मजदूरी नहीं मिलने के कारण वो गांव वापस आ गईं और आजीविका के अन्य विकल्प जैसे बकरी पालन और पशुपालन को छोटे पैमाने पर किया, लेकिन उचित प्रबंधन की जानकारी नही होने से आजीविका में कोई बढ़ोतरी नहीं हो रही थी. भले ही यह क्षेत्र हमेशा प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध रहा, परंतु अस्थिर प्रथाओं के कारण समुदायों को अपर्याप्त आय होती थी.
सविता देवी ने बचपन से अपने माता-पिता के साथ खेती के काम में सहयोग किया और शादी के बाद भी पति के साथ खेती कर रही थीं, पर परिस्थिति में कोई बदलाव नही आ रहा था. अब 45 तक साल की उम्र में, उन्होंने अपने जीवन के दो दशक से अधिक दिन गरीबी में गुजारीं. लेकिन 2018 में चीजें धीरे-धीरे बदलनी शुरू हुईं जब सविता देवी वागधारा द्वारा गठित सक्षम समूह में शामिल हुईं, जो महिलाओं की हर क्षेत्र में समान कार्य, समान भागीदारी और उनकी भूमिका की वकालत करता है.
वागधारा के सहयोग से "बहु उद्देशीय पौध रोपण कार्यक्रम" के तहत पूरे गांव में 'वाड़ी' मॉडल को दोहराने के लिए समुदाय के साथ काम करने का एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किया. सक्षम समूह के सहयोग से चार से पांच प्रकार की किस्म के कुल 40 पौधों की वाड़ी सरिता देवी के यहां भी लगाई गयी. इस कार्यक्रम के सहयोग से उन्हें फलदार पौधरोपण के लाभों के बारे में बताया गया और इससे अधिक लाभ प्राप्त कर, उनके और उनके पांच लोगों के परिवार की आजीविका सुनिश्चितता के लिए उनकी आजीविका में सुधार के लिए कैसे लागू किया जा सकता है इसके बारे में बताया गया.
सरिता देवी अंतर–फसल प्रणाली पर आयोजित प्रशिक्षण में शामिल हुईं, और अपनी कृषि भूमि पर खेती के लिए उच्च गुणवत्ता वाले पारंपरिक बीज, बांस, आम, नींबू और अमरूद जैसे पेड़ की प्रजातियां प्राप्त कीं. उक्त कार्यक्रम में मेड़बंदी के माध्यम से मृदा संरक्षण पद्धतियों पर केंद्रित कार्य किया गया, साथ ही सिंचाई के लिए कृषि विभाग से सबमर्सिबल पंप लगाया गया. इससे उन्हें पोषण वाड़ी में सब्जियां उगाने और खेती में सिंचाई के लिए मदद मिली और जल्द ही उनकी यह कोशिश उनके परिवार के लिए आय का एक विश्वसनीय स्थाई स्रोत बन गयी. इस तरह की खेती से जमीन के नाइट्रोजन स्तर में सुधार हुआ और मिट्टी की नमी में भी बढ़ोतरी हुई, परिणामस्वरुप खेती की लागत में कमी हुई और उत्पादन भी बढ़ने लगा.
इसके तुरंत बाद उन्होंने अपने खेत में वर्षा जल संचयन प्रणाली स्थापित की, जो सिंचाई के लिए पानी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करती है और यह सुनिश्चित करती है कि बढ़ती उत्पादकता आने वाले वर्षों तक स्थाई बनी रहेगी. आज वह सब्जियां एवं फल बेचकर सालभर में 65000-/ रुपये की कमाई करती हैं. खेती की इस तकनीक से पहले की तुलना में केवल दो वर्षों के भीतर आमदनी में वृद्धि हुई है. धीरे-धीरे सरिता देवी ने अपनी कमाई को और बढ़ाने के लिए आजीविका के अन्य स्रोत जैसे- पशु पालन आदि भी अपनाई.
सरिता कटारा बताती हैं कि उन्होंने महात्मा गांधी नरेगा में अपना आवेदन किया, नरेगा के माध्यम से जो आमदनी हुई उससे उन्होंने एक गाय खरीदी, गाय के दूध के पैसों से उनकी आजीविका बढ़ी, उनके पति दूध को बाजार में 50 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बेचकर उन्हें 200 रुपये की प्रतिदिन की आमदनी होने लगी, इन पैसों से उन्होंने अपने परिवार की आजीविका को बढाया और बचत करके एक भैंस खरीदी, भैंस से भी उनको 3 लीटर सुबह और 3 लीटर शाम को दूध मिलने लगा. इससे उनकी आमदनी में बढ़ोतरी होने लगी तो उन्होंने एक ओर भैंस खरीदी, अभी वर्तमान में सरिता देवी के पास चार भैंस, दो बैल, एक गाय है, जिनसे प्रतिदिन 30 लीटर दूध की प्राप्ति हो जाती है. वही, दूध 50 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बिक जाता है.
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इस आमदनी से सरिता देवी के दो बच्चे वर्तमान में जयपुर के एक कालेज से बी.एड कर रहे हैं. बहुउद्देशीय पौध रोपण व सब्जी उत्पादन एवं उन्नत पशु पालन की पहल के कारण उन्होंने अपने परिवार की आय और खेती में अद्वितीय विकास देखा, साथ ही प्रशिक्षण और एक्सपोज़र विजिट के साथ और अधिक सीखने के लिए उत्साहित रहती हैं और गांव की अन्य महिलाओं को भी प्रेरित करती रहती हैं. आज सरिता देवी के पास आय के कई स्रोत हैं और वह आर्थिक रूप से सुरक्षित हैं. एक साल में सविता देवी लगभग तीन लाख पचास हजार रूपये की आमदनी प्राप्त कर रही हैं.
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