भारतीय कृषि आज एक ऐसे दौर से गुजर रही है, जहां उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण और मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखना अनिवार्य हो गया है. पंजाब और हरियाणा के किसान इस दिशा में उल्लेखनीय उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं. पंजाब के रणसिंह कलां गांव के किसान पिछले छह वर्षों से एक भी बार पराली नहीं जला रहे, जबकि हरियाणा के सोनीपत जिले के मुंगेशपुर गांव के युवा प्रगतिशील किसान मोहित आर्य आधुनिक खेती और सफल पराली प्रबंधन का आदर्श मॉडल बन चुके हैं.
लगभग 25 एकड़ अपनी जमीन और सीजन के अनुसार लीज पर जमीन लेकर वे धान, गेहूं, गन्ना और सब्जियों की खेती करते हैं तथा हर साल लगभग 25 लाख रुपये का टर्नओवर उत्पन्न करते हैं. उनका पराली प्रबंधन पूरी तरह जीरो-बर्निंग पर आधारित है, जिसमें पराली का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है और अतिरिक्त पराली को अन्य किसानों को बेचकर आर्थिक लाभ भी कमाया जाता है.
केंद्रीय मंत्री द्वारा पराली प्रबंधन की सराहना
27 नवंबर को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पंजाब के मोगा जिले के रणसिंह कलां गांव का दौरा किया. यह वह गांव है जिसने पराली को समस्या नहीं बल्कि संसाधन के रूप में समझकर पिछले 6 वर्षों से एक भी बार पराली नहीं जलाई. केंद्रीय मंत्री ने किसानों, ग्रामवासियों और स्थानीय हितधारकों से मुलाकात की और उनकी उपलब्धियों की प्रशंसा की.
उन्होंने कहा कि पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में इस वर्ष 83 प्रतिशत की कमी आई है. जहां पहले लगभग 83 हजार खेतों में पराली जलाई जाती थी, अब यह संख्या घटकर लगभग 5 हजार रह गई है. यह बदलाव किसानों की जागरूकता, तकनीकी अपनाने और सामुदायिक प्रयास के कारण संभव हुआ है.
पराली जलाने की चिंता और समाधान
मीडिया से बात करते हुए केंद्रीय मंत्री ने बताया कि पराली जलाने की घटनाओं ने पूरे देश को चिंतित किया था. खेत जरूर साफ हो जाते थे, लेकिन मित्र कीट जल जाते थे. साथ ही पराली जलाने से प्रदूषण की समस्या भी पैदा होती थी. किसानों के मन में हमेशा यह सवाल रहता था कि अगर वे पराली न जलाएं तो बुवाई समय पर कैसे होगी.
इसी समस्या को गांवों ने अपने स्तर पर समाधान के रूप में लिया और प्रयोग किए गए मॉडल अब पूरे देश के लिए उदाहरण बन रहे हैं. रणसिंह कलां गांव का मॉडल इसी दिशा में अग्रणी है, जहां किसान पराली को खेत में मिलाकर डायरेक्ट सीडिंग तकनीक अपनाते हैं, जिससे मिट्टी की सेहत सुधरती है और खेत जल्दी तैयार हो जाते हैं.
रणसिंह कलां गांव का जीरो-बर्निंग मॉडल
रणसिंह कलां गांव ने पिछले 6 वर्षों में पराली न जलाकर एक ऐसी कृषि प्रणाली विकसित की है, जिसे आज पूरे देश में अपनाने की आवश्यकता है. यहां के किसान पराली को खेत में ही मिलाते हैं और डायरेक्ट सीडिंग तकनीक से बुवाई करते हैं. इससे मिट्टी का जैविक तत्व संरक्षित रहता है, उर्वरा शक्ति बढ़ती है, उर्वरकों की लागत में कमी आती है और फसल की पैदावार पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इस मॉडल ने यह साबित कर दिया है कि पराली जलाना मजबूरी नहीं, बल्कि आदत है जिसे बदला जा सकता है.
किसान मोहित आर्य- खेत से जुड़े एक दशक, मजबूत आर्थिक मॉडल
हरियाणा के सोनीपत जिले का मुंगेशपुर गांव भी पराली प्रबंधन का एक मजबूत उदाहरण बनकर सामने आया है. यहां के 32 वर्षीय प्रगतिशील किसान मोहित आर्य पिछले एक दशक से आधुनिक और वैज्ञानिक खेती का मॉडल विकसित कर रहे हैं. भले ही मोहित का निवास दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र में है, लेकिन कृषि उनका मुख्य व्यवसाय है. उनके पास 25 एकड़ अपनी जमीन है और सीजन के अनुसार लीज पर कुछ जमीन लेकर वे खेती के क्षेत्रफल को बढ़ाते हैं. धान, गेहूं, गन्ना और सब्जियों की खेती इनके फार्मिंग पैटर्न का मुख्य हिस्सा है.
मोहित मुख्य रूप से धान की दो लोकप्रिय उन्नत किस्में- Pusa 1509 और Pusa 1121 की खेती करते हैं. यह दोनों किस्में बासमती वर्ग में आती हैं, लेकिन उनकी विशेषताएं अलग-अलग हैं. Pusa 1509 जल्दी पकने वाली और कम पानी में बेहतर उत्पादन देने वाली किस्म है, इसलिए इसकी बुवाई और कटाई समय पर पूरी हो जाती है और दूसरी फसल की तैयारी आसान हो जाती है.
दूसरी ओर Pusa 1121 अपने लंबे दाने, सुगंध और बाजार में उच्च मांग के लिए जानी जाती है. हालांकि यह पकने में समय अधिक लेती है, लेकिन अच्छी कीमत मिलने के कारण किसान इसे प्राथमिकता देते हैं. मोहित बताते हैं कि वे धान की कटाई आमतौर पर दिवाली से पहले कर लेते हैं, जबकि बुवाई अप्रैल के आखिरी सप्ताह तक कर दी जाती है, जिससे खेत समय पर तैयार हो जाते हैं और अगले सीजन की फसल योजना व्यवस्थित रहती है.
मुंगेशपुर गांव का पराली प्रबंधन मॉडल
मोहित आर्य का पराली प्रबंधन मॉडल पूरी तरह व्यवहारिक और लाभकारी है. उनके पास कुल 15 पशुधन हैं, जिनमें देसी गाय और भैंसें शामिल हैं. धान की पराली का बड़ा हिस्सा पशुओं के चारे के रूप में उपयोग हो जाता है, जिससे उन्हें बाजार से चारा खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती. जो पराली उनके यहां उपयोग में नहीं आती, उसे आसपास के गांव के पशुपालक सीधे खेत से उठाकर ले जाते हैं और इसके बदले कीमत चुकाते हैं.
इस प्रकार पराली उनके लिए समस्या नहीं बल्कि अतिरिक्त आय का स्रोत बन जाती है. कुछ इसी प्रकार मुंगेशपुर के गांव अन्य सभी किसान भी पराली प्रबंधन करते हैं.
पशुपालन और खेती का मजबूत तालमेल
मोहित आर्य की खेती में पशुपालन एक अहम भूमिका निभाता है. पराली का उपयोग चारे के रूप में करने से न केवल उनकी लागत कम होती है, बल्कि गोबर खाद के रूप में खेतों को प्राकृतिक उर्वरक भी मिलता है. इससे मिट्टी की सेहत सुधरती है और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है. इस तरह खेती और पशुपालन एक-दूसरे को पूरक बनकर संपूर्ण कृषि मॉडल को मजबूत करते हैं.
25 लाख रुपये का वार्षिक टर्नओवर
मोहित आर्य बताते हैं कि धान, गेहूं, गन्ना और सब्जियों की खेती से उन्हें हर वर्ष लगभग 25 लाख रुपये का टर्नओवर प्राप्त होता है. यह आय उनके विविधीकृत कृषि मॉडल, बड़े रकबे में खेती, उन्नत किस्मों के उपयोग, समय पर फसल प्रबंधन और पराली के सही उपयोग का परिणाम है.
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