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केले के कचरे से बनाया इको-फ्रेंडली क्राफ्ट, होती है लाखों की कमाई

मेहुल श्रॉफ, जो एक एमबीए ग्रेजुएट हैं. जो केले के तने और पत्तों से इको-फ्रेंडली क्राफ्ट बना लाखों की कमाई कर रहे हैं.

रवींद्र यादव
केले के पेड़
केले के पेड़

मध्य प्रदेश में बुरहानपुर जिले में बड़ी मात्रा में केले का व्यवसाय होता है. यहां पर लगभग 16,000 हेक्टेयर भूमि पर फल का उत्पादन किया जाता है. यहां के स्थानीय किसानों को  नई फसल लगाने से पहले अपने खेतों से केले के तनें और पत्तियों को हटाने के लिए मजदूरों की आवश्यकता होती है और बचे हुए केले कचरे या फिर गड्ढों में फेंक दिये जाते हैं. जो एक अच्छी खासी खाद पूरी तरह से कचरा बन जाती है.

मेहुल श्रॉफ जो एक एमबीए ग्रेजुएट हैं और बुरहानपुर के ही रहने वाले हैं. वह इन केले के पत्तों की बर्बादी काफी समय से देख रहें थे. इसके बाद उन्होंने इस कचरे के जरिए एक सफल बिजनेस खड़ा करने का फैसला लिया.

उन्होंने बताया "जब मैं छोटा बच्चा था तब से मैंने अपने क्षेत्र में किसानों को फसल के बाद केले के कचरे को फेंकते हुए देखता था. किसानों की तरह मैं भी कृषि अपशिष्ट के रूप में खत्म हो रहे केले की विशाल क्षमता से अनजान था. ऐसे में किसानों का समर्थन करने और इन केले के छिलकों से खुद का एक व्यवसाय शुरु करने की प्रेरणा मुझे मिली.

मेहुल ने अपना यह स्थायी व्यवसाय 2018 में स्थापित किया और केले के तने को फाइबर में बदल कर उसका उपयोग कागज, कपड़ा और सजावटी सामान तथा घर की अन्य उपयोगी वस्तुओं को बनाने के लिए किया जाने लगा. इस व्यवसाय के माध्यम से वह हर महीने तीन से पांच टन केले के रेशे बेचकर सालाना करीब 30 लाख रुपये की कमाई करते हैं.

शुरुआत

मेहुल ने वर्ष 2016 में अपना एमबीए पूरा किया और परिवार की ज्वैलरी की कंपनी के लिए काम करना शुरू कर दिया था, लेकिन उन्हें हमेशा से अपना खुद का एक व्यवसाय शुरू करने की लालसा थी.

उन्होंने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रयास शुरु कर दिया. इस दौरान उनकी मुलाकात बुरहानपुर के जिलाधिकारी से हुई तो उन्होंने मेहुल को अपने स्थानीय क्षेत्र में व्यवसाय शुरु करने की बात बताई. मेहुल ने बुरहानपुर में जिला सरकार और नवसारी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक सत्र में भी भाग लिया और जहां उन्होंने व्यवसाय के बारे में जानकारी हासिल की. कार्यशाला में उन्हें केले के तने से फाइबर उत्पन्न करना और इसका उपयोग कपड़ा, कागज और हस्तकला क्षेत्रों में कैसे किया जा सकता है, आदि के बारे में जानकारियां मिली.

मेहुल ने बताया कि केले के छिलकों को बार-बार कृषि अपशिष्ट के रूप में देखे जाने के बाद मैंने अपने शोध से पता लगाया कि केले के तने में महत्वपूर्ण मात्रा में सेलूलोज़ और प्राकृतिक फाइबर होते हैं, जिन फाइबर को कपड़े के उद्योग मे भी उपयोग में लाया जा सकता है.

मेहुल ने यह सुनिश्चित किया कि वह अपने उद्यम को शुरू करने से पहले कठिनाइयों और बाजार के आकार सहित व्यापार के विवरण को पूरी तरह से समझेंगे. उन्होंने आईसीएआर-नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर बनाना, तिरुचिरापल्ली, जो केले के रेशों और इसके उपयोगों को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, इसके द्वारा आयोजित प्रशिक्षण में भी भाग लिया. इसके अलावा उन्होंने बुरहानपुर के किसानों से बात कर उनको इसके महत्व के बारे में समझाया.

काफी रिसर्च और खोजबीन के बाद वर्ष 2018 में मेहुल ने अपना बीजनेस शुरु किया और बुरहानपुर में एक प्रसंस्करण सुविधा स्थापित कर आसपास के किसानों से केले के तने खरीदना शुरू कर दिया.

बाजार

मेहुल के मुताबिक, केले के रेशों के लिए बाजार तलाशना उनके लिए सबसे बड़ी मुश्किलों में से एक था. “विपणन के दौरान भी केले के रेशों की क्षमता के बारे में कपड़ा क्षेत्र के लोगों को राजी करना उनके लिए थोड़ा चुनौतीपूर्ण था. लोग कुछ भी नया और जैविक प्रयास करने के लिए इच्छुक नहीं थे. इसलिए मैंने अपना लाभ कम करके उनके सामने रेशे की पेशकश की. जब उनको परिणाम अनुकूल लगा, तो वे आश्वस्त हो गए और आखिरकार इन रेशों से हस्तशिल्प बनाने की क्षमता का पता लगा. इसने पूरे बुरहानपुर की ग्रामीण महिलाओं को विभिन्न हस्तशिल्प क्षेत्रों में रोजगार देना शुरु कर दिया.

उन्होंने बताया कि वर्तमान में इस हस्तशिल्प के व्यवसाय में 50 से अधिक महिलाओं को रोजगार मिलता है. इसके अतिरिक्त प्रसंस्करण इकाई में भी 10 लोग कार्यरत हैं. इन हस्तशिल्पों में दीवार घड़ियां, योग मैट, पूजा मैट, रस्सी, बैग, प्लांटर्स, टोकरी और अन्य सामान शामिल हैं. बाजार में इनकी कीमत 100 रुपये से लेकर 2,000 रुपये तक की है.

किसानों की बढ़ी आमदनी

बुरहानपुर के किसानों को भी केले के पत्तों से अब अच्छी आमदनी होने लगी है. केले के पत्तों के फेंकने की बजाय वह अब इसे उचित मात्रा में बेच पा रहें हैं. मेहुल कहते हैं कि वह क्षेत्र के 50 से 100 किसानों से नियमित रूप से तना खरीदते हैं. ऐसे में किसान तनों को काटने और खेत को साफ करने के लिए अनावश्यक श्रम के खर्च से काफी बचत कर लेते हैं.

English Summary: Eco-friendly craft made from banana waste earns lakhs rupees Published on: 20 January 2023, 03:09 PM IST

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