उत्तरी भारत में फसल अवशेषों (पराली) को जलाना एक प्रमुख पर्यावरणीय समस्या बन चुकी है। इसके परिणामस्वरूप दिल्ली एवं आसपास के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रतिवर्ष नवंबर और दिसंबर माह में वायु प्रदूषण गंभीर स्तर पर पहुंच जाता है। इस समस्या के समाधान हेतु भारत सरकार द्वारा “फसल अवशेषों का यथा-स्थान प्रबंधन परियोजना” आरंभ की गई है।
KVK दिल्ली द्वारा आयोजित जागरूकता अभियानों, प्रशिक्षणों, एवं प्रदर्शन कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप किसानों में इन मशीनों के प्रति रुचि तेजी से बढ़ी है। कृषि विज्ञान केन्द्र (KVK), दिल्ली के निरंतर प्रयासों से अनेक किसानों ने पराली जलाने की बजाय नवीनतम मशीनों जैसे सुपर सीडर, मल्चर, रोटावेटर एवं शर्ब मास्टर को अपनाकर मिसाल पेश की है। इन मशीनों की मदद से किसान बिना पराली जलाए सीधे गेहूं की बुवाई कर रहे हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, डीजल, श्रम और समय की बचत होती है, तथा वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय कमी आई है। नई तकनीकों के प्रयोग से किसानों को लागत में कमी और पैदावार में वृद्धि का लाभ मिल रहा है।
डॉ डी.के. राणा, अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केन्द्र, दिल्ली ने बताया कि “राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के किसानों में फसल अवशेष प्रबंधन एवं गेहूं की प्रत्यक्ष बुवाई हेतु सुपर सीडर मशीन की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। केन्द्र द्वारा निरंतर आयोजित जागरूकता कार्यक्रमों और प्रशिक्षणों के परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में किसान पारंपरिक पद्धति के बजाय सुपर सीडर अपना रहे हैं।
कैलाश, विषय विशेषज्ञ (कृषि प्रसार) ने कहा कि “कृषि विज्ञान केन्द्र, दिल्ली किसानों को कस्टम हायरिंग सेंटर के माध्यम से सुपर सीडर, मल्चर, रोटावेटर एवं शर्ब मास्टर जैसी मशीनें उपलब्ध करा रहा है। किसान इन मशीनों का उपयोग करके पराली प्रबंधन करते हुए बड़े पैमाने पर गेहूं की सीधी बुवाई कर रहे हैं। इससे न केवल पराली प्रबंधन की समस्या का समाधान हुआ है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बनी हुई है।
KVK दिल्ली के वैज्ञानिकों का कहना है कि फसल अवशेषों का उचित प्रबंधन न केवल खेतों की सेहत सुधार रहा है बल्कि यह दिल्ली में स्वच्छ पर्यावरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, सुपर सीडर के माध्यम से की गई गेहूं की बुवाई से मिट्टी की नमी संरक्षित रहती है, कार्बन स्तर में वृद्धि होती है और फसल का विकास बेहतर होता है। कई प्रगतिशील किसान इस तकनीक को अपनाकर लाभान्वित हो रहे हैं और अन्य किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं।
यह तकनीक पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को रोकने में एक प्रभावी कदम सिद्ध हो रही है, जो पर्यावरण संरक्षण और कृषि की स्थिरता—दोनों को मजबूती प्रदान कर रही है।
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