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भारत की किसान समर्थक निति पर अमेरिका ने चिंता जताई

भारत का निर्यात अमेरिका व विश्व के दूसरे देशों में होता रहता है. विश्व वयापार संगठन में भी भारत के निर्यात की चर्चा होती रहती है. चावल हो या चीनी, या फिर रुई, खाने में आम हो या मछली सभी के लिए बेचने और खरीदने के मानक बने हुए हैं. लेकिन मानकों से हट कर यदि अमेरिका भारत के अंदरूनी राजनैतिक निर्णयों पर टिप्पणी करने लगे और किसानो को सब्सिडी इत्यादि पर उसे चिंता होने लगे तो यह सोचने की बात है.

भारत का निर्यात अमेरिका व विश्व के दूसरे देशों में होता रहता है. विश्व वयापार संगठन में भी भारत के निर्यात की चर्चा होती रहती है. चावल हो या चीनी, या फिर रुई, खाने में आम हो या मछली सभी के लिए बेचने और खरीदने के मानक बने हुए हैं. लेकिन मानकों से हट कर यदि अमेरिका भारत के अंदरूनी राजनैतिक निर्णयों पर टिप्पणी करने लगे और किसानो को सब्सिडी इत्यादि पर उसे चिंता होने लगे तो यह सोचने की बात है.

अमेरिका का अनुमान है कि भारत अपने चावल उत्पादक किसानों को लागत में 74 से 84.2 प्रतिशत तक का सहयोग देता है। पिछले पांच साल में भारत ने 5.3 अरब डॉलर (38 हजार करोड़ रुपये) से आठ अरब डॉलर (57,500 करोड़ रुपये) के चावल का निर्यात किया है। वह चावल निर्यात करने वाला दुनिया का सबसे अग्रणी देश है। जबकि इसी दौरान भारत ने 1.9 अरब डॉलर (13,658 करोड़ रुपये) तक गेहूं का निर्यात किया है।

अमेरिका के कृषि कारोबार संबंधी मंत्रालय के सहायक मंत्री टेड मैकिनी ने हाल ही में भारत का दौरा कर खाद्य सुरक्षा नीति पर चर्चा की। इससे भारत से खाद्य पदार्थो का अमेरिका के लिए निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी। माना जा रहा है कि ट्रंप प्रशासन अमेरिकी किसानों के लिए अवसर बढ़ाने के वास्ते लगातार कार्य कर रही है। इसीलिए वह अन्य देशों में कृषि उत्पादों पर दी जाने वाली सब्सिडी की समीक्षा कर रही है।

अमेरिका ने एक बार फिर भारत पर चावल और गेहूं की पैदावार करने वाले किसानों को भारी मात्रा में सब्सिडी देने का आरोप लगाया है। साथ ही कहा कि किसानों पर भारत की घरेलू नीति को लेकर चावल और गेहूं का उत्पादन करने वाले अन्य देशों को चिंतित होने की जरूरत है। अमेरिका ने किसानों को लेकर भारत की नीति को दुनिया के लिहाज से व्यापार नीति बर्बाद करने वाला बताया है।

अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि के चीफ एग्रीकल्चर निगोशिएटर ऑफिस ग्रेगरी डाउड ने बृहस्पतिवार को संसद में कहा, ‘चावल या गेहूं का उत्पादन करने वाले हर देश को भारत की सब्सिडी वाली नीति को लेकर चिंतित होना चाहिए।’ इस साल मई में ग्रेगरी ने स्विट्जरलैंड के जिनेवा स्थित विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भी भारत नीति पर अपना विरोध दर्ज कराया था। 

यह व्यापारिक झगड़ा तब और ज्यादा तूल पकड़ेगा जब भारत की हालिया उस कृषि नीति को लेकर डब्ल्यूटीओ  में सवाल उठाए जाएंगे, जिसमें 23 फसलों पर लागत मूल्य का डेढ़ गुना बतौर न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को देना तय किया गया है।

अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटथाइजर ने हाल ही में घोषणा की थी कि वह भारत को डब्ल्यूटीओ में घसीटने की सोच रहे हैं, क्योंकि पेश किए गए आंकड़ों में गेहूं और चावल पर दी जाने वाली न्यूनतम समर्थन मूल्य की मात्रा अधिकृत 10 प्रतिशत से बहुत ज्यादा यानी 60 और 70 प्रतिशत बनती है।

अमेरिका ने आरोप लगाया है कि भारत अपने चावल और गेहूं उत्पादक किसानों को बड़ी सब्सिडी दे रहा है। ऐसा करके वह व्यापार की नीति को विकृत कर रहा है।

कांग्रेस की समिति के समक्ष अमेरिका के चीफ एग्रीकल्चरल नेगोशिएटर ऑफिस के प्रतिनिधि ग्रेगरी दाउद ने यह टिप्पणी की। भारत की इस नीति से पूरी दुनिया के चावल और गेहूं उत्पादक देश चिंतित हैं। वह भारत के घरेलू किसानों के समर्थक रवैये से परेशान हैं।

मई में दाउद जिनेवा जाकर विश्व व्यापार संगठन के समक्ष इस बात पर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं।

 

चंद्र मोहन

कृषि जागरण

English Summary: US expressed concerns over India's peasant supporters policy Published on: 16 September 2018, 11:33 PM IST

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