कृषि विज्ञान केन्द्र पन्ना के डॉ0 बी.एस. किरार, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख तथा डॉ. आर. के. जायसवाल वैज्ञानिक द्वारा कृषकों को खरीफ फसलों के विपुल उत्पादन हेतु समसाममिकी सलाह दी जा रही है। कृषक अपनी भूमि के प्रकार एवं उसकी स्थिति के अनुसार फसलों का चयन करें और जिन कृषकों के खेतों का मृदा स्वास्थ कार्ड नहीं बना है वह कृषक भी अपने क्षेत्रीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी से सम्पर्क कर मृदा का नमूना देकर मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनवायें और कार्ड में फसल के लिए उर्वरक की अनुसंशानुसार खादों (उर्वरक) की व्यवस्था कर ली जाएं।
इसी के साथ ही घर पर उपलब्ध बीजों की सफाई एवं अंकुरण का परीक्षण देशी विधि से अवश्य कर लें, साथ ही साथ फसलों की उन्नत किस्में सोयाबीन की अल्पाविधि किस्में जे. एस 20-29, जे. एस. 20-34, जे. एस. 93-05 तथा मध्यम अवधि जे. एस. 20-69, जे.एस. 20-98, जे. एस. 97-52, एन. आर. सी. 37, एन. आर. सी 7, एन. आर. सी. 12 आर. वी. एस. 2001-4, उड़द फसल की प्रमुख किस्में आई. पी. यू. 2-43, आई दृ यू. 94-1, शेखर 2, विराट तथा धान की अति अल्पावधि, जे. आर. 75, वंदना, अल्पावधि जे.आर. 201, जे. आर. एच 8, दन्तेश्वरी, सहभागी, मध्यम अवधि एम. टी. यू. 1010, एम. आर 219, डब्लू जी. एल. 32100, आई. आर. 64, पूसा सुगंधा 3, पूसा सुगन्धा 5, अरहर की उन्नत किस्में टी. जे. टी. 501 (145-150 दिन) आई. सी. पी. एल. 87 प्रगति, अवधि 125-135 दिन तथा तिल की उन्नत किस्में टी. के. जी. 308, टी. के. जी. 306, टी. के. जी. 14, पी. के. डी. एस. 12 तथा पी. के. डी. एस. - 14 आदि प्रमुख उन्नतशील प्रजातियां हैं।
फसलों की लागत कम करने के लिए जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय आधारताल जबलपुर में जैव उर्वरक इकाई से जैविक फफूंदनाशक भूमि एवं बीज उपचार हेतु ट्रायकोडर्मा बिरड़ी, तथा जैव उर्वरक में राइजोबियम, एजोटोवेक्टर, एजोस्पीरिलम, पी. एस. बी. कल्चर तथा स्यूडोमोनास फ्लोरेंसिस आदि की पहले से आवश्यकतानुसार व्यवस्था कर ली जाये। जिससे रासायनिक उर्वरक की बचत होने से लागत में कमी आयेगी।
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