कोरोना महामारी के बाद देश में दोनों तरह की खबरें आई. लाखों लोग बेरोजगार हो गए, तो हजारों हाथ उन्हें सहारा देने के लिए आगे भी बढ़े. लोगों का काम धंधा बंद हुआ तो नए व्यवसायों का जन्म भी हुआ. सामाजिक कामों से 2020 के अखबार भरे रहे. लॉकडाउन में नए बिजनेस की एक कहानी हैदराबाद से भी आई. यहां के रहने वाले एक आदमी ने लोगों की जरूरतों को देखते हुए राइस एटीएम का निर्माण किया. इस एटीएम ने लाखों लोगों को उस समय सहारा दिया, जब वो हर तरफ से बेसहारा हो गए थे. चलिए आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं.
खास है राइस एटीएम
हैदराबाद के रहने वाले रामू डोसापटी हमेशा से अपना कोई बिजनेस करना चाहते थे, लेकिन वो काम कुछ ऐसा करना चाहते थे, जो मार्केट में बिलकुल नया और अलग हो. लॉकडाउन के समय जब हजारों लोग भोजन के संकट से जूझ रहे थे, उस समय लोगों का पेट भरने के लिए उन्होंने राइस एटीएम यानी कि चावल एटीएम का निर्माण किया.
अप्रैल से चल रहा है एटीएम
रामू डोसापटी ये एटीएम अप्रैल माह से चला रहे हैं, जिसमें अब उन्हें कुछ मुनाफा होने लगा है. लेकिन वो हमेशा कहते हैं कि इस काम को उन्होंने मुनाफे के लिए नहीं शुरू किया था. रामू कहते हैं कि 'राइस एटीएम' बनाने का मकसद गरीबों और वंचितों को अनाज उपलब्ध कराना है.
सेवा भाव से शुरू किया बिजनेस
लॉकडाउन में प्रदेश के कई दुर्गम स्थान शहरों से कट गए थे, जिस कारण वहां अनाज का संकट शुरू हो गया था. इसी तरह लाखों लोग अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे थे, जिस कारण वो अनाज खरीदने में सक्षम नहीं थे. इन सभी बातों को देखते हुए इस एटीएम को शुरू किया गया था, ताकि हर स्थान पर अनाज आराम से पहुंच जाए.
50 लाख की लागत से बना एटीएम
किसी आम एटीएम की तरह रामू की राइस एटीएम भी 24 घंटे खुली रहती है. यहां वो बहुत कम कीमत में लोगों को अनाज मुहैया करावा रहे हैं. रामू कहते हैं कि इसे बनाने में कुछ 50 लाख से अधिक का खर्चा आया था, उस समय लोगों ने कहा कॉन्सेप्ट नया है, लेकिन मार्केट में चलेगा नहीं. मुझे कॉन्सेप्ट के चलने न चलने से फर्क नहीं पड़ रहा था, क्योंकि मेरा लक्ष्य पैसा कमाना नहीं बल्कि सेवा देना था.
देश में मिली पहचान
आज इस मशीन की वजह से उन्हें देशभर में नई पहचान मिली है. राष्ट्रीय मीडिया ने उन्हें कवर किया है. फिलहाल रामू के साथ कई बड़ी कंपनियां इस कॉन्सेप्ट को लेकर उनके संपर्क में हैं और उनसे साझा करना चाहती है.
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