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ये किसान तो चलती फिरती प्रयोगशाला है

धान या चावल के बारे में तो आप सभी जानते होंगे लेकिन अगर हम आपसे पूछे कि चावल की कितनी और कौन-कौन सी प्रजातियां होती हैं तो शायद ही आपके पास इसका कोई जवाब हो। खैर, इस वक्त हम चावल की प्रजाति के बारे में नहीं बता रहें है बल्कि एक ऐसे किसान की उपलब्धि के बारे में बता रहें है, जिसे चलता-फिरता रिसर्च सेंटर कहा जाता है। पिछले 23 वर्षों से कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई छेड़े हुए इस किसान के पास एक-दो नहीं बल्कि धान की पूरी 426 प्रजातियां हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं टेंगनमार गांव (बालौद, बिलासपुर, छत्तीसगढ़) निवासी 40 वर्षीय होमप्रकाश साहू की।

धान या चावल के बारे में तो आप सभी जानते होंगे लेकिन अगर हम आपसे पूछे कि चावल की कितनी और कौन-कौन सी प्रजातियां होती हैं तो शायद ही आपके पास इसका कोई जवाब हो। खैर, इस वक्त हम चावल की प्रजाति के बारे में नहीं बता रहें है बल्कि एक ऐसे किसान की उपलब्धि के बारे में बता रहें है, जिसे चलता-फिरता रिसर्च सेंटर कहा जाता है। पिछले 23 वर्षों से कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई छेड़े हुए इस किसान के पास एक-दो नहीं बल्कि धान की पूरी 426 प्रजातियां हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं टेंगनमार गांव (बालौद, बिलासपुर, छत्तीसगढ़) निवासी 40 वर्षीय होमप्रकाश साहू की।

वैसे तो होमप्रकाश बिलासपुर से 19 किलोमीटर दूर कोटा के गनियारी में कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में काम करते हैं। इसके बावजूद भी वह स्वयं कृषि करने के साथ-साथ दूसरों को भी सिखाते हैं। इतना ही नहीं प्रतिवर्ष अस्पताल की ओपीडी में किसानों को मुफ्त में धान के बीज बांटना और अधिक उत्पादन लेने के तरीकों की जानकारी देना उनके खून में शामिल है।

हेल्थ सेंटर कैंपस में ही चार एकड़ के खेत को होमप्रकाश ने अपनी प्रयोगशाला (लैब) बना रखा है। तरह-तरह के अधिक आयरन और मिनरल्स वाले धान के बीज लाकर उन्हें पैदावार में बदलना एवं बांटना, यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है।

ओमप्रकाश का कहना है कि हमारे क्षेत्र में कुपोषण बहुत बड़ी समस्या है। सही किस्म का चावल खाकर इसे दूर किया जा सकता है। अतः मैं ऐसी प्रजातियां खोजता रहता हूं, जिनमें आयरन और बाकी तत्व तो हों ही, पैदावार भी खूब हो।

होमप्रकाश की माने तो सन् 2000 में रायपुर की एक प्राइवेट रिसर्च संस्था में कृषि के तौर-तरीकों को सीखा। साथ ही जाना कि धान में कुपोषण दूर करने कई तत्व पाए जाते हैं। तभी से मुझे यह बात सताने लगी कि धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में धान की अनेक वैरायटीज गुम होने की कगार पर आ पहुंची हैं। ऐसे में मैंने बिलासपुर, अंबिकापुर, रायगढ़, उत्तराखंड, ओडिशा आदि राज्यों से अलग-अलग किस्म के धान इकट्ठे करने शुरू किए। इसीलिए आज अनेक लोगों का कहना है कि मेरा छप्पर का मकान पैरलल एग्रीकल्चर साइंस सेंटर में परिवर्तित हो चुका है।

धान की यह ओपीडी हर शुक्रवार को किसानों के लिए खुलती है, जहां पर डॉक्टर भी बैठते हैं। यही वजह है कि जानकारियां लेने दूसरे राज्यों से भी सैकड़ों किसान यहां आते हैं। होमप्रकाश की इच्छा है कि ग्रामीण लोगों को कुपोषण के प्रति जागरूक ही नहीं किया जाए बल्कि कृषि संबंधी सारी जानकारियां भी दी जाएं।

मजे की बात तो यह है कि जब कुछ वर्ष पहले कृषि विज्ञान केंद्र के कार्यक्रम संयोजक श्री के. आर. साहू ने होमप्रकाश का नाम दिल्ली भेजकर कृषि संबंधी विशेष कार्य करने पर 25 लाख का पुरस्कार दिलवाने की कोशिश की तो होमप्रकाश ने साफ मना करते हुए कहा कि ऐसे में यह सारी किस्में सरकार की हो जाएगी तो ऐसे में मैं किसानों को कैसे प्रेरित करूंगा।

English Summary: This farmer is a moving laboratory Published on: 26 August 2017, 02:34 AM IST

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