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बंजर जमीन ने नहीं दिया साथ तो किसान भाई ने नारियल के बुरादे पर कर डाली खेती...

राजस्थान की बंजर भूमि ने जब एक किसान का खेती में साथ नहीं दिया तो उसने जमीन के बजाय नारियल के बुरादे पर ही खीरे की खेती करने की ठानी और अब वह इससे प्रति माह औसतन सवा लाख रुपये कमा रहा है। झीलों के शहर उदयपुर से सटे महाराजा की खेड़ा गांव में एक किसान ने अपनी बंजर जमीन की सफाई के बाद भी सब्जियों की खेती में सफल नहीं हुआ तो उसने बाहर की मिट्टी अपनी जमीन में डाली और उस पर सब्जियों की खेती की शुरुआत की लेकिन कीड़ों का ऐसा प्रकोप हुआ कि पूरी फसल बर्बाद हो गई।

राजस्थान की बंजर भूमि ने जब एक किसान का खेती में साथ नहीं दिया तो उसने जमीन के बजाय नारियल के बुरादे पर ही खीरे की खेती करने की ठानी और अब वह इससे प्रति माह औसतन सवा लाख रुपये कमा रहा है। झीलों के शहर उदयपुर से सटे महाराजा की खेड़ा गांव में एक किसान ने अपनी बंजर जमीन की सफाई के बाद भी सब्जियों की खेती में सफल नहीं हुआ तो उसने बाहर की मिट्टी अपनी जमीन में डाली और उस पर सब्जियों की खेती की शुरुआत की लेकिन कीड़ों का ऐसा प्रकोप हुआ कि पूरी फसल बर्बाद हो गई। बाद में उसे पता चला कि इस जमीन पर खेती नहीं की जा सकती है।

खेती में भारी घाटा होने पर किसान नंदलाल डांगी ने महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की सलाह ली और उसके बाद उसने पॉली हाउस में खीरे की वैज्ञानिक खेती की शुरुआत की। पॉली हाऊस के अंदर जमीन से ऊपर क्यारी बनाई गई और उसमें नारियल के बाहरी आवरण के बुरादे को पॉलीथीन के बैग में डालकर चाइनीज खीरे की खेती शुरु की गई। कम पढ़े-लिखे डांगी ने बताया कि दो एकड़ जमीन पर उन्होंने तीन पॉलीहाउस का निर्माण कराया जिस पर नारियल के बैग में खीरे के 9500 बीज बोए गए। प्रत्येक बैग में करीब डेढ़ किलो नारियल का बुरादा डाला गया और उसमें खीरे के बीज को अंकुरित कराया गया।

बीज के अंकुरण के बाद बूंद-बूंद सिंचाई विधि से फसल की सिंचाई की जाने लगी। सिंचाई के माध्यम से ही पौधों को पानी में घुलनशील पोषक तत्व दिया जाने लगा । इसमें नाइट्रोजन, फास्फेट और पोटाश के अलावा सल्फर, मैग्नेशियम, कापर, फेरस, जिंक आदि तत्व शामिल थे। इस विधि से खेती पर प्रति दिन नजर रखनी पड़ती है और किसी समस्या के नजर आने पर उसका तुरंत समाधान किया जाता है। डांगी ने बाद में एक एकड़ जमीन पर दो ओर पाली हाउस का निर्माण कराया।

तीनों पॉली हाउस में इस प्रकार से खीरे की खेती की जाती है कि पूरे वर्ष खीरे की पैदावार होती है। खीरा की एक फसल में प्रति पौधा पांच से छह किलो पैदावार आसानी से मिल जाती है। स्थानीय स्तर पर ही इसकी बिक्री हो जाती है। थोक में खीरे का मूल्य दस से 35 रुपये प्रति किलो तक मिल जाता है। डांगी को पॉलीहाउस में सब्जियों की खेती को बढावा देने के लिए राजस्थान सरकार ने उन्हें 70 प्रतिशत अनुदान दिया। उन्होंने अपना सारा कर्ज चुका दिया है और अपनी अन्य जमीन पर उन्नत खेती की योजना तैयार कर रहे हैं।

साभार : पंजाब केसरी 

English Summary: The barren land did not give up, and the farmer farmed on the coconut fodder ... Published on: 05 December 2017, 03:43 AM IST

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