हर साल धान और गेहूं जैसी फसलों की कटाई के बाद लाखों टन पराली (फसल अवशेष) भारत में जला दी जाती है. इससे होने वाला धुआं वायु प्रदूषण और पर्यावरणीय संकट का एक बड़ा कारण बनता है. पराली जलाने से न केवल हमारी वायु गुणवत्ता पर असर पड़ता है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी घटती है.
इन दिनों पराली का मुद्दा गर्माया हुआ है. सियासी दल भी इस गर्म तवे पर अपनी अपनी रोटी सेंकने में लगे हैं. पराली को लेकर सरकार तथा किसान आमने-सामने हैं. हरियाणा सरकार ने पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कठोर कार्यवाही करते हुए
13 किसानों की गिरफ्तारी, 18 किसानों के खिलाफ एफआईआर, और 653 मामलों में 368 किसानों की "रेड-एंट्री" कर दी है, जिससे ये किसान अब आने वाले दो सालों तक अपनी फसल को मंडियों में नहीं बेच पाएंगे. सरकार के ऐसे दमनकारी कदमों से यह समस्या सुलझने के बजाय और उलझ जाएगी.
आज जरूरत है किसानों के साथ मिल बैठकर इस समस्या के असल कारणों की जांच पड़ताल कर उनका व्यावहारिक समाधान ढूंढने की. इस लेख में हम किसान भाइयों और सरकार दोनों को इस समस्या के व्यावहारिक समाधान सुझाने का प्रयास कर रहे हैं.
सबसे पहले नजरिया बदलें:
सबसे पहली बात यह है कि पराली को एक समस्या के बजाय समाधान के रूप में देखा जाए. नजरिया बदलते ही आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि पराली के इतने सारे सकारात्मक उपयोग है जो कि किसानों के लिए भी लाभकारी हैं और पर्यावरण को भी सुरक्षित रखते हैं सकारात्मक उपयोग सामने आते हैं, जो न केवल किसानों के लिए लाभकारी हैं, बल्कि पर्यावरण सुरक्षा में भी मददगार हैं. इस लेख में हम पराली के 11 सकारात्मक उपयोगों को जानेंगे, जो इसे प्रदूषण की समस्या से निकालकर संभावनाओं के नए द्वार खोलते हैं.
पराली जलाने के नकारात्मक प्रभाव:
पराली जलाने से बड़े पैमाने पर कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जो जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देते हैं. दिल्ली और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में पराली जलाने से वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है, जिससे श्वसन संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ता है. साथ ही, इससे मिट्टी की उपजाऊ परत भी नष्ट हो जाती है, जिससे खेती की गुणवत्ता पर असर पड़ता है.
'भूमिर्माता पुत्रोऽहं पृथिव्या:' (ऋग्वेद) – अर्थात्, "पृथ्वी हमारी माता है, और हम उसके पुत्र हैं," हमें धरती की रक्षा करनी चाहिए और उसके संसाधनों का सदुपयोग करना चाहिए. पराली के सदुपयोग के कई तरीकों से हम इस दायित्व को निभा सकते हैं.
पराली के सकारात्मक उपयोग के 11 सुझाव
1. जैविक खाद (कम्पोस्ट) के रूप में पराली का उपयोग:
पराली को जैविक खाद (कम्पोस्ट) में बदलकर मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाया जा सकता है. कम्पोस्टिंग प्रक्रिया में पराली के पोषक तत्व मिट्टी में मिल जाते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है. कम्पोस्टिंग से न केवल खेतों की उर्वरता बनी रहती है, बल्कि रासायनिक खादों की जरूरत भी कम होती है, जिससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
2. बायोगैस उत्पादन में पराली का उपयोग:
पराली से बायोगैस का उत्पादन करके स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है. बायोगैस उत्पादन की प्रक्रिया में पराली को कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है, जिससे ऊर्जा की मांग पूरी की जा सकती है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, भारत में पराली का सही ढंग से उपयोग करके50% तक ऊर्जा जरूरतें पूरी की जा सकती हैं.
3. मशरूम उत्पादन में पराली का उपयोग
पराली का उपयोग मशरूम की खेती के लिए भी किया जा सकता है. इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्व मशरूम की वृद्धि के लिए उपयुक्त होते हैं. यह विधि न केवल किसानों के लिए एक अतिरिक्त आय का स्रोत बनती है, बल्कि पराली के उपयोग का एक व्यावसायिक तरीका भी प्रदान करती है.
4. पशु आहार के रूप में पराली
पराली को पशुओं के लिए चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. इसे खाद्य पदार्थों में मिलाकर पशुओं के आहार के रूप में उपयोग किया जाता है. यह खासकर उन क्षेत्रों में फायदेमंद होता है, जहां पशुओं के लिए प्राकृतिक चारे की कमी होती है.
5. पराली से पेपर और पैकेजिंग सामग्री का निर्माण:
पराली से कागज और पैकेजिंग सामग्री बनाई जा सकती है. इसमें मौजूद सेल्यूलोज का उपयोग कागज, कार्डबोर्ड और अन्य पैकेजिंग उत्पादों के निर्माण में किया जाता है. इससे प्लास्टिक पर निर्भरता कम होती है और पर्यावरणीय दृष्टि से बेहतर विकल्प मिलता है.
6. बायोचार उत्पादन में पराली का उपयोग:
बायोचार एक चारकोल जैसा पदार्थ होता है, जिसे पराली से बनाया जाता है और इसे मिट्टी में मिलाने से उसकी उर्वरता बढ़ती है. बायोचार मिट्टी की जल धारण क्षमता को बढ़ाता है और उसमें स्थायी रूप से कार्बन को संरक्षित करता है, जो जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में सहायक है.
7. फाइबर और निर्माण सामग्री का उत्पादन:
पराली से फाइबर तैयार किया जा सकता है, जिसका उपयोग ईको-फ्रेंडली निर्माण सामग्री जैसे ईंट और ब्लॉक्स के निर्माण में किया जाता है. यह तरीका पराली के अपशिष्ट को एक टिकाऊ उत्पाद में बदलने का बेहतर तरीका है.
8. बायोएथेनॉल उत्पादन:
पराली से बायोएथेनॉल का उत्पादन किया जा सकता है, जो एक स्वच्छ और नवीकरणीय ईंधन है. बायोएथेनॉल के उपयोग से न केवल पारंपरिक ईंधन पर निर्भरता कम होगी, बल्कि यह पर्यावरण को भी स्वच्छ बनाए रखेगा. इससे किसानों के लिए नई आर्थिक संभावनाएं खुलती हैं.
9. जैव-ऊर्जा उत्पादन:
बायोमास ऊर्जा उत्पादन में पराली का उपयोग करके बिजली पैदा की जा सकती है. भारत में कई बायोमास पावर प्लांट्स में पराली का इस्तेमाल हो रहा है. इससे न केवल ऊर्जा की जरूरतें पूरी हो रही हैं, बल्कि पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण से भी बचा जा सकता है.
10.पराली से गत्ता (कार्डबोर्ड) का उत्पादन:
पराली से कार्डबोर्ड और गत्ता जैसे औद्योगिक उत्पाद भी बनाए जा सकते हैं. इसका उपयोग पैकेजिंग उद्योग में किया जाता है, जो प्लास्टिक की जगह एक इको-फ्रेंडली विकल्प प्रदान करता है.
11. मृदा संरक्षण के लिए मल्चिंग में पराली का उपयोग:
मल्चिंग की विधि में पराली का उपयोग करके फसल की जड़ों को ढंका जाता है, जिससे मिट्टी की नमी बनी रहती है और खरपतवारों की वृद्धि कम होती है. यह विधि विशेष रूप से पानी की कमी वाले क्षेत्रों में उपयोगी है, जिससे खेती की लागत घटती है और फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है.
अब जरा आंकड़ों की भी सुन लें:
भारत में हर साल लगभग 500 मिलियन टन फसल अवशेष उत्पन्न होता है, जिसमें से लगभग 100 मिलियन टन पराली जलाई जाती है. यदि इसका सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो उत्पादन में 20-30% तक वृद्धि हो सकती है और 50% तक ऊर्जा की मांग भी पूरी की जा सकती है. यह सचमुच में गेम चेंजर है.
पर्यावरणविदों ने भी पराली के सकारात्मक उपयोगों पर जोर दिया है. प्रसिद्ध पर्यावरणविद अल गोर का मानना है, “फसल अवशेषों का उचित प्रबंधन पर्यावरण को सुधारने और कृषि की उत्पादकता बढ़ाने में सहायक हो सकता है.” डॉ. वंदना शिवा का कहना है, “कृषि में फसल अवशेषों का उचित उपयोग हमारे जलवायु और मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है.”
हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी पर्यावरण और धरती की रक्षा पर जोर दिया गया है-
'समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमंडले, विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे.'
इस श्लोक में धरती माता से क्षमा मांगने की बात कही गई है, जब हम उसे पैरों से छूकर अपवित्र अथवा प्रदूषित करते हैं. इसका सीधा अर्थ यही है कि हमें अपनी धरती का सदुपयोग करते हुए उसकी सर्वविध रक्षा करनी चाहिए.
अंततः हमारे किसान भाइयों को भी समझना होगा कि पराली जलाना पराली के निराकरण का सही तरीका कतई नहीं है, और इसे आज नहीं तो कल आपको बंद करना ही होगा. पराली जलाने की समस्या का समाधान उसके सकारात्मक उपयोगों में छिपा है. यदि हम पराली को सही ढंग से प्रबंधित करें और उसके विभिन्न उपयोगों को अपनाएं, तो यह प्रदूषण की समस्या को दूर कर सकता है और कृषि को अधिक लाभदायक बना सकता है.
पराली न केवल ऊर्जा, खाद और फाइबर के रूप में उपयोगी हो सकती है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए एक वरदान साबित हो सकती है. अंततः, पराली के सही उपयोग से हम एक स्थायी और हरित भविष्य की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं.
'पृथ्वीं धारयती इति भूमिः' – जो हमें धारण करती है, वही भूमि है. हमें अपनी धरती का सम्मान करना और उसे सुरक्षित रखना चाहिए.
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