केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री, राधा मोहन सिंह ने कहा कि देश के दुग्ध उत्पादन में हुई प्रगति, ग्रामीण डेरी सहकारी समितियों की मेहनत का नतीजा है। उन्होंने यह बात कृषि मंत्रालय में एनडीडीबी की स्वर्ण जयंती कॉफी टेबल बुक शीर्षक ‘’50 इयर्स – द ग्रेट इंडियन मिल्क रिवोल्यूशन’’ के विमोचन के अवसर पर कही। कृषि मंत्री ने कहा कि छोटे ओैर सीमांत दूध उत्पादकों ने मिलकर 1998 से देश को विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बनाने में योगदान दिया है । सभी सफलताएं रातोंरात नहीं प्राप्त हुईं हैं, बल्कि यह ग्रामीण क्षेत्रों में दूध उत्पादकों के लगातार श्रम, प्रतिबद्ध पेशेवरों द्वारा प्राप्त सहायता तथा राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की दूर दृष्टि तथा विशेषज्ञता के परिणामस्वरूप हासिल हुई हैं।
कृषि मंत्री ने इस मौके पर बताया कि आपरेशन फ्लड तथा वर्तमान राष्ट्रीय डेरी योजना के माध्यम से एनडीडीबी के निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप, भारतीय डेरी क्षेत्र ने निरंतर विकास बनाए रखने में सफलता प्राप्त की है। कृषि जीडीपी में पशुधन का योगदान तथा डेरी उद्योग में पशुधन की हिस्सेदारी में पिछले कई वर्षों से निरंतर वृद्धि हुई है। मूल्य की दृष्टि से, दूध भारत का सबसे बड़ा कृषि उत्पाद है ।
सिंह ने कहा कि भारत का दूध उत्पादन 155 करोड़ टन के स्तर को पार कर चुका है। इसके परिणामस्वरूप भारत में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता में 337 ग्राम/दिन की वृद्धि हुई है। पिछले 10 वर्षों में दूध उत्पादन में प्रति वर्ष लगभग 4.5% की तुलना में पिछले 2 वर्षों में दूध उत्पादन में वार्षिक लगभग 6.5% की वृद्धि हुई है जो कि विश्व दूध उत्पादन वृद्धि की तुलना में लगभग दुगुनी वृद्धि है। देशभर की लगभग 1.7 लाख डेरी सहकारिताएं लगभग 1.58 करोड़ दूध उत्पादकों की सेवा में कार्यरत हैं, जिनमें से एक तिहाई महिलाएं हैं । यह उन्हें बाजार की पहुंच उपलब्ध कराकर तथा इनपुट सेवाएं प्रदान करके उनकी आजीविका सुदृढ़ बना रही हैं ।
कृषि मंत्री ने कहा कि साथ एनडीडीबी के प्रयासों ने देश में पोषण सुरक्षा लाने, दूध की आत्मनिर्भरता लाने तथा उपभोक्ताओं को किफायती दर पर सुरक्षित तथा पौष्टिक दूध एवं दूध उत्पाद उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । एनडीडीबी ने देश में डेरी उद्योग के भावी विकास हेतु अनुकूल परिस्थिति का निर्माण करने के लिए पिछले कई वर्षों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा व्यवस्थित प्रक्रियाओ को स्थापित किया है । एनडीडीबी के प्रयासों का लक्ष्य हमेशा से उत्पादकता में सुधार, लाभप्रदता, स्थिरता लाने पर केंद्रित है जिसके द्वारा लघु धारक दूध उत्पादकों की आजीविका में सुधार होगा ।
सिंह ने कहा कि यह पुस्तक एनडीडीबी की 50 वर्षों की उल्लेखनीय यात्रा की झलक दिखाती है साथ-साथ इसमें देश के लाखों डेरी किसानों के लिए सृजित मूल्य का वर्णन है । यह पुस्तक एनडीडीबी की उन मान्यताओं के बारे में मिसाल प्रस्तुत करती है कि सहकारी सिद्धांत आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना पहले था तथा जो संस्थाएं इन मान्यताओं का पालन करेंगी वे भविष्य में डेरी उद्योग को संचालित करने के लिए संरचनात्मक ढांचे का निर्माण करेंगी । यह पुस्तक ग्रामीण भारत में सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाने में डेरी बोर्ड के प्रयासों को भी रेखांकित करती है ।
उन्होंने कहा कि हम सभी का यह सामूहिक उत्तरदायित्व है कि हम सफल व्यावसायिक उद्यम के रूप में सहकारी डेरी उद्योग की विशेषताओं के बारे में जागरूकता फैलाएं । हमें लघुतम तथा दूरतम दूध उत्पादकों तक पहुंचने का कठोर प्रयास करना चाहिए ताकि वे आत्म निर्भर बन सकें । एनडीडीबी की स्थापना सहकारिता के माध्यम से किसानों को सेवा प्रदान करने के लिए हई थी।
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