प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसानों की रुचि कम होती जा रही है। यदि हाल फिलहाल के आंकड़ों की बात करें तो 2016-17 ( 5.9 करोड़ हैक्टे.) के मुकाबले 2017-18 ( 4.76 करोड़ हैक्टे.) में बीमा के अंतर्गत रकबे में कमी आई है। यानि कि सीधे-सीधे 20 प्रतिशत की कमी आई है। सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य की बात करें तो योजना के अंतर्गत कुल जमीन को फसल बीमा योजना में लाना बड़ी बात लगने लगी है।
उल्लेखनीय है कि किसान को बैंक तक सही पहुंच नहीं हो पा रही है। भुगतान के लिए सरल प्रक्रिया नहीं है। चाहें सरकारी हो या फिर प्राइवेट बैंक किसानों तक पहुंच नहीं हो पा रही है। इस दौरान बीमित फसल का सही तरीके से कवरेज नहीं किया जा रहा है।
इस बीच सरकार पर विपक्ष ने योजना के सही क्रियान्वयन को लेकर ताने मारने शुरु कर दिए हैं। किसान संगठनों ने भी सरकार पर जमकर निशाना साधा है। बिहार जैसे राज्य ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के बजाए राज्य द्वारा दूसरी बीमा योजना लागू करना स्वीकार किया है।
इस दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय में इस योजना के लिए विचार-विमर्श भी हुआ है जिसमें स्वयं कृषि मंत्री राधामोहन सिंह भी शामिल हुए। गौरतलब है कि इस वर्ष योजना के अधीन आधे रकबे को शामिल करना था लेकिन गिरावट के दौरान अब यह लक्ष्य मुश्किलों में है। किसानों को भुगतान आदि में आ रही समस्याओं के मद्देनज़र सरकार विचाराधीन है।
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