दिल्ली में आलू 20 से 30 रुपये किलो बिक रहा है. लोग नाक-मुंह सिकोड़कर ही सही आलू खरीद रहे हैं. माने यहां तो आलू लोगों को सोने जैसा ही लग रहा है. मगर दिल्ली से 230 किलोमीटर दूर आलू फ्री में बंट रहा है और किसान लुट रहा है. सोना तो छोड़िए किसानों ने लागत तक निकलने का सपना देखना छोड़ दिया है. आलू सड़क पर फेंक दिया गया है. 5, 10 रुपये में ही 50 किलो का पैकेट बेच दिया जा रहा है. माने एक किलो की कीमत हुई 10, 20 पैसा प्रति किलो. और ये आलू किसान नहीं फेंक रहे हैं, कोल्ड स्टोरेज वाले फेंक रहे हैं. किसानों को तो ये 10-20 पैसे भी नहीं मिल रहे हैं.
वजह दिमाग खराब कर देने वाली है
कोल्ड स्टोरेज ये आलू इसलिए बाहर फेंक रहे हैं क्योंकि किसान अपना आलू लेने ही नहीं आ रहा है. जबकि आलू रखने का टाइम खत्म हो चुका है. अब सवाल उठता है कि किसान क्यों नहीं आ रहे हैं. इसके कई कारण हैं. पहला मंडी का भाव. माने किसानों को आलू का सही मूल्य नहीं मिल रहा है. उनकी लागत तक नहीं निकल पा रही.
अब आप सोचेंगे कि आलू जो भाव बिके, ले तो लेना ही चाहिए. नहीं जनाब. कोल्ड स्टोरेज वाले फ्री में आलू नहीं देते हैं. आलू लेने के बदले रखरखाव की कीमत चुकानी पड़ती है. 50 किलो के एक बोरे के बदले करीब 110 रुपये. ये पैसा किसान कहां से लाए.
फिर आलू को मंडी तक ले जाने के लिए गाड़ी-घोड़ा का पैसा लगता है. और इस खर्चे के बाद उसे मंडी पर मिलना कुछ है नहीं. ऐसे में किसान हिम्मत करे भी तो कैसे. नुकसान और ना हो, इसलिए किसान फसल छोड़ने को मजबूर है. वो कोल्ड स्टोरेज और भाड़े का खर्चा देकर खुद को और नहीं मारना चाहता.
अब किसान आलू लेने आ नहीं रहा. तो नुकसान से बचने के लिए आगरा की 240 कोल्ड स्टोरेज यूनिट्स ने अपनी प्रेजरवेशन मशीन भी बंद कर दी है. इससे आलू सड़ने लगा. और अब उसे सड़क पर फेंका जा रहा है या कौड़ियों के भाव बेचा जा रहा है. कोल्ड स्टोरेज वालों को अगले साल की फसल रखने की भी तैयारी करनी है.
155 लाख टन आलू हुआ था यूपी में
कोल्ड स्टोरेज असोसिएशन ऑफ इंडिया के सेक्रेटरी राजेश गोयल ने बताया कि इस साल उत्तर प्रदेश में आलू भारी मात्रा में हुआ था. करीब 155 लाख टन. इसमें से 124 लाख टन कोल्ड स्टोरेज में जमा हो गया था. ये आलू भी तीन तरह या कह लें तीन साइज का होता है. बड़ा, मंझला और सबसे छोटा. एक जो सबसे बड़ा आलू होता है, उसके तो लागत भर दाम किसानों को मिल जाते हैं. मीडियम भी निकल ही जाता है. मगर सबसे छोटा वाला आलू मुश्किल से बिक पाता है. और इस बार फसल ज्यादा होने के कारण हर तरह का आलू फंस गया. किसान को आलू की सही कीमत ना मंडी में मिली और ना वो आलू लेने आया. कोल्ड स्टोरेज वाले भी कहां तक नुकसान झेलें. मजबूरन जो आलू जिस भाव बिक रहा है बेचकर बाकी फेंकना पड़ रहा है. उन्होंने तो अपना कोल्ड स्टोरेज खाली करवाने के लिए 5 रुपये में 50 किलो के पैकेट बेचे हैं. राजेश का कहना है कि इसमें सरकारों की गलती है. किसानों से आलू खरीदने की कोई सही व्यवस्था ही नहीं है. ना ही इस पर पॉलिसी बनाने की दिशा में कोई काम हो रहा है. यही कारण है कि दिल्ली में आलू 20 रुपये किलो बिकता है और किसानों को उनकी लागत भी नहीं मिलती.
पीएम नरेंद्र मोदी ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात कही है. जो हालात हैं, उसमें ये लक्ष्य मुश्किल भी नहीं है. अभी किसानों का आलू 20 पैसे प्रति किलो में बिक रहा है. सरकार जुगाड़ करके इसे 40 पैसे में तो बिकवा ही देगी. सिंपल. हो गई आमदनी दोगुनी. ये मजाक कड़ुआ लग सकता है. मगर हालात इससे भी ज्यादा कड़ुए हैं. यूपी में आगरा ही इकलौता जिला नहीं है, जहां इस तरह आलू फेंके जा रहे हैं. कई और जिलों का भी यही हाल है. रोज खबरें छप रही हैं. मगर राज्य सरकार और केंद्र सरकार को क्यों ये नहीं दिखता, सबसे बड़ा सवाल यही है.
स्त्रोत : लल्लनटॉप
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