पर्यावरण संरक्षण को लेकर केंद्र सरकार हमेशा एक्टिव नजर आती है. वहीं, अलग-अलग नियम और अधिनियमों को लागू कर इस पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार लम्बे समय से कोशिश करती आ रही है. ऐसे में दिल्ली एनसीआर सहित देश भर में कई पोल्ट्री फार्म भी कार्रवाई के दायरे में आ चुके हैं.
दरअसल, सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ पोल्लुशण ने पांच हजार से ज्यादा और एक लाख से कम पक्षी रखने वाले पोल्ट्री फार्मों को प्रदूषण रहित-हरित श्रेणी से बाहर कर दिया है. ऐसे में अब बड़े पोल्ट्री फार्म संचालकों की तरह छोटे और मझौले संचालकों को भी पोल्ट्री से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए कदम उठाने होंगे.
दरअसल, वर्ष 2015 की संक्षिप्त गाइडलाइंस के बाद पहली बार सीपीसीबी ने विविध पक्षों को शामिल करते हुए हाल ही में विस्तृत गाइडलाइंस जारी की थी. नई गाइडलाइंस में कहा गया है कि पांच हजार से एक लाख पक्षियों तक की संख्या वाले पोल्ट्री फार्म को स्थापित और संचालित करने के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या समिति से जल संरक्षण कानून 1974 और वायु संरक्षण कानून 1981 के तहत कंसेट टू इस्टेबलिशमेंट (सीटीई) या कंसेट टू आपरेट (सीटीओ) का प्रमाण-पत्र लेना होगा.
आपको बता दें कि केंद्र के पशु पालन विभाग द्वारा 2020 में किए गए लाइवस्टाक सेंसेस से देशभर में पॉल्ट्री (पक्षियों) की संख्या 851.809 मिलियन दर्ज की गयी है.
नई गाइड लाइन के मुताबिक अब पोल्ट्री फॉर्म के लिए प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से एनओसी लेनी पड़ेगी. जिसके तहत नई हिदायतों के अनुसार पोल्ट्री फॉर्म रिहायशी क्षेत्र से 500 मीटर की दूरी पर होना चाहिए. प्रमुख वाटर संस्थान से 200 मीटर, पानी पीने के स्थान से 1000 मीटर, दैनिक उपयोग की वस्तुएं बनाने वाले उद्योगों से 500, पब्लिक रोड से 200 मीटर दूर, मृत मुर्गियों को खुले में जलाने के बजाए बिजली की भट्टियों में डाला जाए, इतना ही नहीं पोल्ट्री फार्म के आसपास ग्रीन बेल्ट का निर्माण होना चाहिए.
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गौरतलब है कि सीपीसीबी ने पोल्ट्री, हेचरी और पिगरी यानी पक्षियों, अंडे और सूअर पालन को हरित श्रेणी में रखा हुआ था, लेकिन एक पर्यावरण कार्यकर्ता की आपत्ति के बाद अब एनजीटी ने 16 सितंबर 2020 को सीपीसीबी को आदेश दिया कि पोल्ट्री फार्म को हरित श्रेणी में रखने और वायु, जल और पर्यावरण संरक्षण कानून से मुक्त रखने वाली गाइडलाइंस का संशोधित होना जरुरी है.
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