मध्य प्रदेश के जिला सहकारी केंद्रीय बैको के संबद्ध 76 साख सहकारी समितियों द्वारा बांटे गए फर्जी ऋण वितरण ने सबको हैरानी में डाल दिया है. आपको ये बात सूनकर जरूर हैरानी होगी. एक वकील (वरणदेव शर्मा) का परिवार जो पिछले 25 साल से शहर में रह रहे हैं, उनका खेती से दूर-दूर तक वास्ता नहीं है फिर भी उनके चारों भाई और उनका नाम ऋण माफी सूची में शामिल है. उन्हें इस बात की जानकारी गांव वालों ने दी. वही दूसरी तरफ आंदोलन के साथ जुड़े किसानों का भी वैरीफिकेशन शुरू कर दिया गया है.
वकील शर्मा को बनवार गांव छोड़े 25 वर्ष से ज्यादा हो गए है. बड़े भाई भूदेव, रविदेव व विश्वदेव भी गांव नहीं रहते. इन भाइयों ने समिति से कभी ऋण नहीं लिया, लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि गांव में ऋण माफी की जो सूची में चारों भाइयों के साथ दिवंगत मां काशीबाई का भी नाम शामिल है. सूची में हमपर 50 हजार से एक लाख रुपये तक का ऋण दिखाया गया है. वरणदेव का कहना है कि उनके पूरे परिवार के नाम से ऋण किसने लिया और बिना किसी प्रमाण के पैसा कैसे निकला. जब इस संबंध में सहकारिता विभाग की उपायुक्त अनुभा सूद से संपर्क किया गया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया.
ऐसे दी जाती है लोन की स्वीकृति
यदि किसी किसान को समिति से कर्ज दिया जा रहा होता है, तो उस समिति क्षेत्र में किसान की जमीन के साथ ही समिति का सदस्य होना भी आवश्यक होता है लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है. जिन किसानों का आवेदन ऋण के लिए आता है, उनका प्रस्ताव जिला सहकारी बैंक की ऋण कमेटी के सामने रखना होता है. कमेटी इस प्रस्ताव पास कर देती है, उसके बाद ऋण देने की प्रक्रिया शुरू चालू की जाती है. बैंक का शाखा प्रबंधक total effective equipment productivity (टीप) जारी करता है और बॉन्ड भरता है. इस प्रक्रिया के बाद जमीन गिरवी रखी जाती है. ऋण स्वीकृत होने के बाद किसान के कर्ज की राशि किसान के खाते में जमा बैक द्वारा भेज दी जाती है लेकिन किसान ने बैंक में खाता ही नहीं खुलवाया और दस्तावेज भी नहीं दिए. बावजूद इसके उन्हें कर्जदार बना दिया.ऋण माफी के चलते यह खुलासे हो रहे हैं.
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