बिहार के कृषि मंत्री डॉ प्रेम कुमार की अध्यक्षता में मक्का फसल में फॉल आर्मी वर्म (पतन सैन्य कीट) के प्रकोप से बचाव के लिए जागरूकता-सह-प्रशिक्षण कार्यक्रम का बामेती, पटना के सभागार में आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में फॉल आर्मी वर्म के पहचान, उसके एक खेत से दूसरे खेत में प्रवास की प्रवृत्तिए नये क्षेत्रों में इसका फैलाव, होस्ट प्लांट, इसके रोक-थाम, प्रबंधन आदि के लिए विस्तृत चर्चा की गयी.
उन्होंने कहा कि इस जागरूकता एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य किसानों को फॉल आर्मी वर्म से मक्का फसल को बचाने के लिए पौधा संरक्षण के पदाधिकारियों एवं कर्मियों को प्रशिक्षित करना है. फॉल आर्मी वर्म के लिए अद्र्घ उष्णकटिबन्धीय और उष्णकटिबन्धीय जलवायु अनुकूल परिस्थितियां है. इस कीट का प्रकोप दक्षिण अफ्रिका से प्रारम्भ होकर कैमरुन, घाना, इपिओपिया, केन्या, उगाण्डा, बरुण्डी, रुआण्डा तथा भारत में कर्नाटक एवं बिहार में बेगूसराय जिले में छिटपुट रुप से होने की सूचना प्राप्त हुई है.
उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम फॉल आर्मी वर्म तथा सामान्य सैन्य कीट में अंतर को किसानों को बताना पड़ेगा. फॉल आर्मी वर्म की पहचान यह है कि इसका लार्वा भूरा, धूसर रंग का होता है, जिसके शरीर के साथ अलग से टयूबरकल दिखता है. इस कीट के पीठ के नीचे तीन पतली सफेद धारियाँ और सिर पर एक अलग सफेद उल्टा अंग्रेजी शब्द का ‘वाई’ दिखता है.
यह कीट फसल के लगभग सभी चरणों को नुकसान पहुँचाता है, लेकिन मक्का के पत्तों के साथ-साथ बाली को विशेष रूप से प्रभावित करता है. इस कीट का लार्वा मक्के के छोटे पौधा के डंठल आदि के अंदर घुसकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं.
उन्होंने कहा कि यह कीट बहुभोजी कीट है एवं लगभग 80 फसलों को नुकसान पहुँचाता है, जिसमें मुख्य रूप से खाद्यान्न फसलों यथा मक्का, मिलेट, ज्वार, धान, गेहूं तथा गन्ना फसल प्रमुख है. इनके अतिरिक्त चारेवाली घास फसलए सागवाली फसलें/लूसर्न घास, सूर्यमुखी, गेहॅूं, बन्धागोभी एवं आलू को भी प्रभावित करता है.
इस कीट का प्रबंधन समेकित कीट प्रबंधन के तहत प्रारम्भिक अवस्था में अत्यधिक कारगर है. अन्त में, रासायनिक उपचार के लिए बीज उपचार करते हुए फसल उपचार इण्डोक्साकार्ब, थायोमेथाक्सन, लैम्बडा-सायलोहेल्थ्रिन आदि रसायन से किया जाना चाहिए. ध्यान रहे, रसायन की अनुशंसित मात्र के अनुरुप ही दिया जाना चाहिए.
उन्होंने निर्देश दिया कि यह एक अंतर्राष्ट्रीय कीट है, जिसके प्रबंधन के लिए जिला से लेकर पंचायत स्तर तक इसकी पहचान एवं रोकथाम के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाये. इसके अतिरिक्त इस कार्यक्रम में गेहूँ फसल में ? प्रभावी कदम उठाने हेतु प्रमंडल एवं जिला के पदाधिकारियों को प्रशिक्षित कर प्रचार-प्रसार का कार्य किया जाये.
उन्होंने कहा कि विभाग ने आकस्मिक कीट व्याधि नियंत्रण योजना अंतर्गत 36500 लाख रुपये मात्र की लागत पर योजना कार्यान्वयन एवं व्यय की स्वी़ति दी है, यदि आवश्यकता होगी तो अन्नदाता किसान भाई एवं बहनों के फसलों को कीट व्याधि से होने वाले नुकसान के लिए सरकार और राशि की व्यवस्था करेगी.
इस कार्यक्रम में निदेशक, भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान, लुधियाना के डॉ सुजय रक्षित, कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक, केन्द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केन्द्र, पटना के पौधा संरक्षण पदाधिकारी एवं पटना प्रमण्डल के उप निदेशक द्वारा विस्तृत चर्चा की गयी एवं सुझाव दिये गये. इस कार्यक्रम में संयुक्त निदेशक, पौधा संरक्षण, मक्का उत्पादक सभी प्रमण्डलों के संयुक्त निदेशक(शष्य) एवं जिलों के जिला कृषि पदाधिकारी तथा प्रमण्डलों के सभी उप निदेशक, पौधा संरक्षण एवं जिला के सभी सहायक निदेशक, पौधा संरक्षण पदाधिकारी भाग लिए.
संदीप कुमार
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