बुंदेलखंड के चित्रकूट किसानों के लिए मददगार साबित हो रहा है चित्रकूट का कृषि विज्ञान केन्द्र। केवीके अपने फार्म में केले की खेती कर रहा है जिससे किसानों के लिए केले की खेती आसान हो रही है।
कृषि विज्ञान केन्द्र पिछले कई सालों से चित्रकूट के गनीवां में किसानों को उन्नत खेती के गुर सिखा रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र पिछले कई वर्षों से किसानों की व्यवसायिक खेती की ओर रुझान बढ़ाने का हर संभव प्रयास कर रहा है। आज यहां कई किसान केवीके द्वारा दी गई औषधीय खेती को अपना रहे हैं। अब कृषि विज्ञान केन्द्र के द्वारा केले की खेती की शुरुआत भी कर दी गई है।
भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में केले की खेती की बात करें तो प्रदेश के पूर्वी, तराई और मध्य क्षेत्र में केले की खेती सबसे ज्यादा की जाती है। यहां कुल 48698 हेक्टेयर में केले की खेती होती है। जबकी प्रति हेक्टेयर अगर कहें तो 47.101 मीट्रिक टन ही औसत केला का उत्पादन हो रहा है।
एक वक्त ऐसा भी था जब उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों जैसे सीतापुर, लखनऊ, बाराबंकी, कौशाम्बी में केला दूसरे प्रदेशों से मंगवाया जाता था लेकिन, आज इन सभी जिलों में बड़े मात्रा पर केले की खेती होती है और यहां से अन्य जगहों पर केला भेजा जाता है। चित्रकूट के लिए भी ऐसा ही देखा जा रहा है और यहां की मिट्टी भी केले की खेती के लिए उपर्युक्त है।
प्रयोग के तौर पर पहले कृषि विज्ञान केन्द्र के फार्म पर इस बार बीघा खेत में लगभग 450 पौधे लगाए थे, जिनमें अब फल भी लग गए हैं।
चित्रकूट के गनीवां में दीन दयाल शोध संस्थान के साथ कृषि विज्ञान केन्द्र काम कर रहा है। दयाल शोध संस्थान के हरेश्याम मिश्रा बताते हैं, "अभी तक चित्रकूट में मध्य प्रदेश से केला आता है, जब यहां के किसान केला की खेती करने लगेंगे, तब यहां की बाजार में यहीं के किसानों का केला आएगा।"
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