किसान के विकास के लिए सरकार खासा ज़ोर दे रही है, ताकि किसानों की आय में बढ़ोतरी हो सके और उन्हें नुकसान का सौदा ना करना पड़े. किसान हमेशा ही मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के साथ फसलों के उत्पादन में बढ़ोतरी होने करने की कोशिश करते हैं. अब ऐसे में अगर वो जैविक खाद (Organic Fertilizer) का इस्तेमाल करें तो उनकी फसल भी बेहतर उगेगी और मुनाफा भी अधिक होगा.
क्या है सागरिका जैविक खाद (What is Sagarika Organic Fertilizer)
इफको ने एक ऐसी जैविक खाद बनाया है, जिससे किसानों को उत्पादन और मिट्टी की गुणवत्ता दोनों में बढ़ोतरी मिल सकेगी. बता दें कि यह जैविक खाद समुद्री शैवाल से तैयार किया गया है, इसलिए इसका नाम सागरिका (Sagarika Organic Fertilizer) रखा गया है.
सागरिका जैविक खाद की कीमत (Sagarika organic fertilizer price)
किसान मिट्टी की उर्वरता और फसल की गुणवत्ता को लेकर चिंतित रहते हैं ऐसे में इफको ने सागरिका को 2 साल तक रिसर्च करने के बाद तैयार किया है. खास बात यह है की सागरिका शत प्रतिशत एक जैविक खाद है.
किसानों की सुविधा के अनुसार सागरिका को तरल (Liquid) और ठोस (Solid), दोनों ही रूप में बाजार में लाया गया है. इफको का कहना है कि 1 लीटर लिक्विड बोतल की कीमत 500 रुपए है और ठोस रूप में 10 किलो जैविक खाद की कीमत 415 रुपए है. यह किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है.
सागरिका जैविक खाद का उपयोग (Use of Sagarika organic fertilizer)
इफको मिट्टी की उर्वरता और फसल की गुणवत्ता के मद्देनज़र इस जैविक खाद के इस्तेमाल को काफी सरल तरह से बनाया है. आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि तरल वाले सागरिका जैविक खाद को एक लीटर पानी में 250 मिली लीटर घोलकर पुरे एक एकड़ खेत में छिड़काव कर सकते हैं. वहीं बात अगर ठोस सागरिका की करें तो 8 किलो तक इसका उपयोग एक एकड़ जमीन पर किया जा सकता है.
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कंद वाली सब्जियों के लिए उपयोगी (Useful for tuberous vegetables)
बता दें कि सागरिका जैविक खाद का सब्जी वाली फसलों पर छिड़काव करने से किसानों को उच्चतम फसल प्राप्त होगी. ज्यादातर जो कंद वाली सब्जियां (tuberous vegetables) हैं जैसे- प्याज़, अरबी, आलू, लहसुन आदि के लिए इस जैविक खाद का इस्तेमाल कर किसान भारी मुनाफा कमा सकते हैं.
जैविक खाद सागरिका का निर्माण करने वाले एक्वाएग्री के मैनेजिंग डायरेक्टर अभिराम सेठ के मुताबिक, "हम शैवाल से कॉस्मेटिक और अन्य चीजों में इस्तेमाल होने वाले उत्पादों को तैयार करते थे. इस दौरान जो वेस्ट निकलता था, उसकी जांच की गई तो पता चला कि यह काफी काम का है और किसानों के लिए लाभकारी है. तब शैवाल से सागरिका बनाने का काम शुरू हुआ."
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